'जिला अदालतों में दुर्भावना तेजी से फैल रही है': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महिला जज को आपत्तिजनक संदेश भेजने के आरोपी एडवोकेट की जमानत रद्द की
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को जिला अदालत के एक एडवोकेट की जमानत को रद्द कर दिया। उसे एक स्थानीय अदालत ने जमानत दी थी। उस वकील पर एक महिला जज को आपत्तिजनक संदेश भेजने और उत्पीड़न करने का आरोप लगाया गया था। जज ने कहा कि ऐसे मामलों में जीरो टॉलरेंस की नीति अनिवार्य हो गई है।
मामले में महिला जज ने खुद जमानत रद्द करने की मांग के लिए याचिका दायर की थी, जिस पर जस्टिस सिद्धार्थ की पीठ ने कहा कि सेशन कोर्ट को इस तथ्य पर विचार करना चाहिए कि अभियुक्त के इस तरह के आचरण से न्यायिक प्रणाली के कामकाज पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।
इसके अलावा, इस बात पर जोर देते हुए कि आवेदक के खिलाफ अभियुक्तों के आचरण से यौन उत्पीड़न के कृत्यों का सामना करने वाली जिला अदालत की महिला पीठासीन अधिकारियों के मन में भय पैदा होता है, पीठ ने कहा कि इस तरह के मामले को आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करते हुए सख्ती से निपटा जाना चाहिए।
न्यायालय ने यह भी नोट किया कि एक और जिले में ऐसा ही एक मामला सामने आया था और यह बुराई जिला अदालतों में तेजी से फैल रही है, जिससे सख्ती से निपटा जाना चाहिए।
मामला
विचाराधीन घटना के समय पीड़िता, एक महिला जज, जिला न्यायालय महराजगंज में सिविल जज (जूनियर डिवीजन)/न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में तैनात थीं। आरोपी उसी अदालत में प्रैक्टिस करने वाले एक वकील है, जिसने उन्हें आपत्तिजनक संदेश भेजने शुरू कर दिए। उसने आवेदक के फेसबुक अकाउंट पर कुछ टिप्पणियां भी कीं।
उसने महिला जज का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया और उस पर मैसेज भेजने लगा। वह बिना किसी काम के उनके कोर्ट में जाता और उन्हें लगातार देखता रहता था।
जब आरोपी की गतिविधियों को बर्दाश्त करना असंभव हो गया तब महिला जज ने नवंबर 2022 में थाना कोतवाली महराजगंज में एफआईआर दर्ज कराई और वकील के खिलाफ धारा 186, 228, 352, 353, 354, 354-D, 506, 509 आईपीसी और धारा 67 आईटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज कराई।
नतीजतन, उसे 23 नवंबर, 2022 को गिरफ्तार किया गया था। हालांकि, उसे सत्र न्यायाधीश ने 17 दिसंबर, 2022 को जमानत दे दी थी। जमानत आदेश को चुनौती देते हुए, पीड़िता ने जमानत रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया।
मामले में खुद बहस करते हुए, महिला जज ने हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि आरोपी की गतिविधियों के कारण, वह अपने काम पर ध्यान केंद्रित करने की स्थिति में नहीं थी और अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित थी।
उन्होंने आगे कहा कि उन्हें लगातार डर था कि अभियुक्त उन्हें बदनाम कर सकते हैं और चूंकि उनकी शादी तय हो गई है, इसलिए ये संदेश भविष्य में उनके वैवाहिक जीवन को नष्ट कर सकते थे।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि आरोपी खतरनाक प्रवृत्ति स्थापित कर रहा था और उसके साथ सख्ती से निपटा जाना चाहिए और उसे दी गई जमानत रद्द कर दी जानी चाहिए। उनका यह भी मामला था कि ट्रायल कोर्ट ने सतेंद्र कुमार अंतिल के फैसले पर भरोसा करते हुए उसे जमानत देने में गलती की थी, क्योंकि जब उसे जमानत दी गई थी तब अभियुक्त के खिलाफ आरोप पत्र दायर नहीं किया गया था।
पीड़िता की दलीलों को सुनने के बाद, अदालत ने कहा कि सत्र न्यायाधीश ने आरोपी को जमानत देते समय न तो मामले की सही, कानूनी और तथ्यात्मक स्थिति पर विचार किया और न ही महिला पीठासीन अधिकारी के खिलाफ इस तरह के अपराध करने में शामिल आरोपी को जमानत देने पर होने वाले भविष्य के नतीजों पर ध्यान दिया।
इसके अलावा यह रेखांकित करते हुए कि यह एक महिला न्यायाधीश से संबंधित मामला था, अदालत ने जमानत आदेश रद्द कर दिया और 6 महीने में सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया।
गौरतलब है कि अदालत ने यह भी कहा कि अभियुक्त का कृत्य अदालत की आपराधिक अवमानना के दायरे में आता है क्योंकि इस तरह की हरकतें न्याय के रास्ते में हस्तक्षेप और न्याय के प्रशासन में बाधा बनती हैं और इसलिए, अदालत ने निम्नलिखित आदेश जारी किया, "इस न्यायालय की रजिस्ट्री को निर्देशित किया जाता है कि इस मामले को दो सप्ताह के भीतर उपयुक्त पीठ के समक्ष रखा जाए ताकि विरोधी पक्ष संख्या 2, अभय प्रताप द्वारा की गई आपराधिक अवमानना का स्वत: संज्ञान लिया जा सके।"
केस टाइटल- ईशा अग्रवाल बनाम यूपी राज्य और अन्य [CRIMINAL MISC. BAIL CANCELLATION APPLICATION No. - 36 of 2023]
केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 103