मजिस्ट्रेट मैकेनिकली तरीके से जांच का निर्देश नहीं दे सकते, विवेक का इस्तेमाल जरूरी: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2023-12-01 08:44 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 156(3) के तहत जांच का निर्देश किसी मजिस्ट्रेट द्वारा यांत्रिक रूप से जारी नहीं किया जा सकता। इसे केवल विवेक का इस्तेमाल करने के बाद ही दिया जाना चाहिए।

जस्टिस रजनीश भटनागर ने कहा कि मजिस्ट्रेट पुलिस को जांच का निर्देश देने के लिए बाध्य नहीं है, भले ही शिकायत में लगाए गए सभी आरोप संज्ञेय अपराध की सामग्री का खुलासा करते हों।

इस बात पर जोर देते हुए कि प्रत्येक मामले को तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर देखा जाना चाहिए, अदालत ने कहा:

“किसी दिए गए मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में मजिस्ट्रेट यह निर्णय ले सकता है कि शिकायतकर्ता पुलिस की सहायता के बिना शिकायत में कथित तथ्यों को साबित कर सकता है। ऐसे मामलों में मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 200 के तहत शिकायत पर आगे बढ़ सकता है और शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत गवाहों की जांच कर सकता है। यदि पुलिस की सहायता से साक्ष्य एकत्र करने की आवश्यकता है तो मजिस्ट्रेट को पुलिस द्वारा जांच का निर्देश देना चाहिए।

सीआरपीसी की धारा 156(3) किसी भी मजिस्ट्रेट को धारा 190 के तहत पुलिस द्वारा जांच कराने का आदेश देने की शक्ति प्रदान करती है।

जस्टिस भटनागर ने अपने पड़ोसियों के खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने की मांग करने वाली व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। उसका मामला यह है कि आरोपी व्यक्तियों ने उसके साथ धोखाधड़ी की है।

मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने मामले में जांच का निर्देश देने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ता द्वारा दायर आवेदन खारिज कर दिया। सेशन जज ने पुनर्विचार में आदेश बरकरार रखा।

जस्टिस भटनागर ने वर्तमान याचिका खारिज करते हुए कहा कि सभी तथ्य और सबूत याचिकाकर्ता की जानकारी में है, जिन्हें वह सीआरपीसी की धारा 200 के तहत मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा की गई पूछताछ के दौरान पेश कर सकते हैं।

अदालत ने कहा,

“इसलिए इस न्यायालय का विचार है कि सीआरपीसी की धारा 482, या भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने असाधारण क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने के लिए इस न्यायालय के लिए कोई विशेष मामला नहीं बनाया गया। दो निचली अदालतों द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण में न्याय का कोई उल्लंघन या अवैधता नहीं है और न ही याचिकाकर्ता द्वारा ऐसा कुछ बताया गया है।”

याचिकाकर्ता के वकील: जय सुभाष ठाकुर और प्रतिवादियों के वकील: सरकारी वकील संजय लाओ, एडवोकेट प्रियम अग्रवाल, शिवेश कौशिक और अभिनव कुमार आर्य के साथ।

केस टाइटल: अंजुरी कुमारी बनाम राज्य सरकार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली एवं अन्य, डब्ल्यू.पी.(सीआरएल) 1210/2023

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