मद्रास हाईकोर्ट ने अधिकारियों के पांच साल बाद भी प्रतिबंधित पदार्थ की जांच करने में विफल रहने पर एनडीपीएस की कार्यवाही रद्द की
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में व्यक्ति के खिलाफ गांजा रखने के लिए नारकोटिक्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट 1985 (एनडीपीएस) के तहत दर्ज एफआईआर यह देखते हुए रद्द कर दी कि जांच अधिकारी की ओर से गंभीर चूक हुई है।
जस्टिस जी जयचंद्रन ने कहा कि जब्त किए गए प्रतिबंधित पदार्थ की सामग्री के लिए पांच साल बाद भी जांच नहीं की गई। इसके अलावा, अदालत के निर्देशों के बावजूद, जांच अधिकारी ने अंतिम रिपोर्ट की संख्या के लिए कदम नहीं उठाए।
मामला दर्ज करने वाले जांच अधिकारी का यह रवैया स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि मामला सही तथ्यों के आधार पर दर्ज नहीं किया गया। अदालत ने कहा कि सीनियर अधिकारी का इस मामले को देखना, शिकायत दर्ज करने के लिए उचित कार्रवाई नहीं करना और कानून के अनुसार आगे नहीं बढ़ना दिखाता है।
यह देखते हुए कि अपराध एक वर्ष की सीमा तक दंडनीय है और एक वर्ष की अवधि के भीतर अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने में विफलता है, कोर्ट का विचार था कि मामला सीआरपीसी की धारा 468 के तहत निर्धारित सीमा के कानून से प्रभावित है।
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि शिकायत दर्ज करने के बाद एक वर्ष से अधिक समय बीत चुका है और 0.650 ग्राम गांजा रखने की अधिकतम सजा एक वर्ष है, शिकायत दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 468 के तहत निर्धारित सीमा से ग्रस्त है।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता को पुलिस सुपरिटेंडेट ने स्वत: आपराधिक शिकायत के आधार पर गिरफ्तार किया था। उसके द्वारा ले जाया जा रहा पॉलीथिन बैग जब्त किया गया और जांच के बाद पता चला कि याचिकाकर्ता के पास लगभग 0.650 ग्राम वजनी गांजा की पत्तियां और फूल की कलियां हैं।
मामला जब झूठा होने का आरोप लगाते हुए एफआईआर रद्द करने के लिए पिछला आवेदन दायर किया गया तो अदालत को सूचित किया गया कि पुलिस ने पहले ही जांच पूरी कर ली है और अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी है। हालांकि इसे अभी फाइल में लिया जाना है और इसे क्रमांकित किया जाना है। अदालत ने इस प्रकार प्रतिवादी पुलिस को दो सप्ताह के भीतर अंतिम रिपोर्ट क्रमांकित करने का निर्देश दिया। भले ही यह निर्देश 2018 में बहुत पहले पारित किया गया, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आज तक अंतिम रिपोर्ट दाखिल नहीं की गई। यह प्रस्तुत किया गया कि जब्त की गई प्रतिबंधित सामग्री की भी पेश नहीं की गई।
इस प्रकार, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि मामला दुर्भावनापूर्ण इरादे से दर्ज किया गया।
अदालत संतुष्ट है कि नमूने को न तो जांच के लिए प्रयोगशाला में भेजा गया, भले ही मजिस्ट्रेट ने इसके लिए आदेश दिया और न ही उन्हें फॉर्म 95 के तहत अदालत के सामने पेश किया गया।
इस प्रकार, जांच में खामियां पाते हुए अदालत ने कार्यवाही रद्द कर दी।
केस टाइटल: मुरली बनाम पुलिस सुपरिटेंडेंट
केस नंबर: सीआरएल ओपी नंबर 4980/2019
याचिकाकर्ता के वकील: बी राजा
प्रतिवादी के लिए वकील: एन एस सुगंथन, सरकारी वकील (आपराधिक पक्ष)
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