मद्रास हाईकोर्ट ने गेहूं का आटा मानकर 1.5 किलोग्राम हेरोइन रखने वाले व्यक्ति को बरी किया
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में उस व्यक्ति को रिहा करने का निर्देश दिया, जिसे कुवैत ले जाने के लिए जानबूझकर 1.5 किलोग्राम हेरोइन रखने के लिए दस साल के कठोर कारावास और 1,00,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी।
जस्टिस जी इलांथिरैयन की पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता ने यह मानकर सामग्री ली थी कि यह गेहूं का आटा और इमली है और प्रतिबंधित पदार्थ नहीं है।
हालांकि सभी मामलों में वाहक दोष की अनुपस्थिति की दलील नहीं दे सकता, लेकिन जैसा कि इस मामले में ऊपर बताया गया है कि प्रतिबंधित पदार्थ रखने के आरोपी के ज्ञान के आभाव में उसे इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। उसके बयान के माध्यम से यह संभव है कि उसने वेंकटेश्वर राव द्वारा दिया गया पार्सल ले लिया था, यह जाने बिना कि यह निषिद्ध पदार्थ है। संभावना की प्रबलता से अभियुक्त ने ज्ञान के अभाव को सिद्ध कर दिया।
अदालत ने इस प्रकार विशेष न्यायालय द्वारा पारित दोषसिद्धि का आदेश रद्द कर दिया और भुगतान की गई किसी भी जुर्माना राशि को वापस करने का निर्देश दिया।
अपीलकर्ता को अधिकारियों द्वारा टेलीफोन पर सूचना मिलने के बाद गिरफ्तार किया गया था कि चित्तौड़ का वेंकटेश्वर राव (फरार होने के बाद से) अपीलकर्ता के माध्यम से फ्लाई एमिरेट्स फ्लाइट द्वारा 1 1/2 किलोग्राम हेरोइन भेजने की योजना बना रहा है। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि इसके पीछे कोई आपराधिक मानसिक नहीं थी, क्योंकि वह सामग्री को फरार आरोपी द्वारा दिए गए गेहूं का आटा और इमली मानकर ले गया है।
दूसरी ओर पीड़ित पक्ष ने प्रस्तुत किया कि अपीलकर्ता और फरार अभियुक्तों के बीच टेलीफोन पर बातचीत से स्पष्ट रूप से साबित होगा कि वे लगातार संपर्क में थे।
अदालत ने पाया कि पीड़ित द्वारा पेश किए गए कॉल रिकॉर्ड को स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65 बी के तहत प्रमाणित नहीं है। साथ ही कॉल रिकॉर्ड एकत्र करने वाले अधिकारी भी नहीं है। इसके अलावा यह साबित करने के लिए कोई दस्तावेज पेश नहीं किया गया कि सेल्युलर नंबर अपीलकर्ता का है। ट्रायल कोर्ट ने इस अस्वीकार्य दस्तावेज को आरोपी की आपराधिक मानसिक स्थिति मानने के लिए संदर्भित करने में गलती की।
अदालत ने यह भी कहा कि फरार अपराधी को पेश करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। इस प्रकार, अदालत ने माना कि पीड़ित पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि अपीलकर्ता को उसे दिए गए पार्सल में हेरोइन की मौजूदगी के बारे में पता था। नतीजतन, अदालत ने अपील की अनुमति दी।
केस टाइटल: आनंदम गुंडलुरु बनाम पुलिस निरीक्षक
केस नंबर: पराधिक अपील नंबर 118/2017
साइटेशन: लाइव लॉ (मैड) 395/2022
अपीलकर्ता के वकील: टी.एस.शशिकुमार
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