'अनुचित कानूनी सलाह के लिए वकील आपराधिक रूप से उत्तरदायी नहीं': कलकत्ता हाईकोर्ट ने वकील के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द की
कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में एक वकील के खिलाफ कथित रूप से गलत और अनुचित कानूनी सलाह देने के आरोप में शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। उक्त कानूनी सलाह एक कंपनी को बैंक ऋण स्वीकृत कराने में सहायक थी, जिसे बाद में गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) घोषित कर दिया गया। लोन की बकाया राशि 2.57 करोड़ रुपये थी।
जस्टिस आनंद कुमार मुखर्जी ने कहा कि केवल इसलिए कि वकील की राय स्वीकार्य नहीं थी, उसके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती, विशेष रूप से किसी भी ठोस सबूत के अभाव में कि वह अन्य साजिशकर्ताओं से जुड़ा था।
कोर्ट ने कहा,
"इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक वकील अपने मुवक्किल के हितों के लिए "निरंतर वफादारी" रखता है और उसकी जिम्मेदारी है कि वह ऐसे कार्य करे जो मुवक्किल के हित को सर्वोत्तम रूप से आगे बढ़ाए। केवल इसलिए कि उसकी राय स्वीकार्य नहीं हो सकती है, उस पर आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, विशेष रूप से ठोस सबूत के अभाव में कि वह अन्य साजिशकर्ताओं से जुड़ा था। वह घोर लापरवाही या पेशेवर कदाचार के लिए उत्तरदायी हो सकता है, यदि यह स्वीकार्य साक्ष्य द्वारा स्थापित किया जाता है, हालांकि उसे अन्य साजिशकर्ताओं के साथ आईपीसी की धारा 420 और 109 के तहत, साजिशकर्ताओं और उसके बीच उचित और स्वीकार्य लिंक के बिना, अपराध के लिए आरोपित नहीं किया जा सकता है।"
अदालत ने आगे कहा कि अगर सबूत के लिए अन्य साजिशकर्ताओं के साथ उसे जोड़ने के लिए लिंक है तो निस्संदेह संस्था को नुकसान पहुंचाने के लिए आपराधिक अभियोजन के तहत आगे बढ़ा जा सकता है, हालांकि इस तरह के ठोस सबूत मौजूदा मामले में अनुपस्थित हैं।
इस मामले में वकील पर आईपीसी की धारा 420, 468, 471 और 120बी के तहत आपराधिक दायित्व तय किया गया है, जिसके बाद उन्होंने संबंधित मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष सीबाआई, इनफोर्समेंट ऑफेंस विंग, कोलकाता द्वारा शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए एक आवेदन दायर किया था।
रिकॉर्ड को देखने के बाद कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता का नाम एफआईआर में नहीं था और अगर शिकायत को उसकी फेस वैल्यू पर लिया जाता है और उसकी संपूर्णता में स्वीकार किया जाता है, तो मामला बनाने के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है।
कोर्ट ने आगे कहा कि जांच में ऐसी कोई सामग्री सामने नहीं आई, जिससे कंपनी को ऋण देने के लिए बैंक को धोखा देने में मुख्य आरोपी के साथ याचिकाकर्ता के किसी भी तरह के संबंध और संलिप्तता को स्थापित किया जा सके।
यह भी नोट किया गया कि चार्जशीट में ऐसा कोई आरोप या सामग्री नहीं है कि याचिकाकर्ता ने सह-आरोपी व्यक्तियों से कोई गलत लाभ कमाया या कंपनी के पक्ष में झूठी सर्च रिपोर्ट तैयार करने पर उसे कोई आर्थिक लाभ हुआ।
अदालत ने आगे कहा कि यह निर्विवाद है कि ऋण आरोपी कंपनी के पक्ष में स्वीकृत किया गया था और संपत्ति से संबंधित टाइटल डीड्स और अन्य जाली दस्तावेज संबंधित बैंक को मुख्य आरोपी व्यक्ति ने दिलवाए थे। इसमें कंपनी के निदेशक भी शामिल थे, जिन्होंने ऋण के लिए आवेदन किया था।
कोर्ट ने यह माना कि याचिकाकर्ता को टाइटल डीड्स की वास्तविकता का पता लगाने में अधिक सावधानी बरतनी चाहिए थी। हालांकि, आगे कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट से यह अनुमान नहीं लगता है कि याचिकाकर्ता का ऋण जारी करने के लिए वास्तविक लाभार्थियों के साथ कोई संबंध था।
कोर्ट ने आगे यह भी कहा कि लगाए गए आरोप और जांच में याचिकाकर्ता के खिलाफ जुटाए गए सबूत प्रथम दृष्टया बैंक को धोखा देने के किसी भी अपराध का गठन नहीं करते हैं।
अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करते हुए कहा, "मुझे यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि..याचिकाकर्ता और अन्य सह-आरोपियों के बीच कोई संबंध या मिलीभगत स्थापित करने के लिए ठोस सबूत नहीं है।"
केस शीर्षक: भास्कर बनर्जी बनाम सीबीआई और अन्य
सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (Cal) 165