कॉलेजों को फिर से खोलने के बाद अनिवार्य रूप से सेमेस्टर परीक्षाएं करवाने के बीसीआई के दिशानिर्देशों के खिलाफ लॉ स्टूडेंट्स पहुंचे छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
एमिटी यूनिवर्सिटी, छत्तीसगढ़ के चार लॉ के छात्रों ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के निर्देशों के खिलाफ छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है। बीसीआई ने सभी लाॅ यूनिवर्सिटी को निर्देश दिया था कि वह संस्थानों को फिर से खोलने के एक महीने के अंदर इंटरमीडिएट सेमेस्टर परीक्षा आयोजित करवाए,जबकि यूजीसी ने कहा था कि सभी छात्रों को पिछले प्रदर्शन के आधार पर प्रमोट कर दिया जाए।
इन छात्रों का प्रतिनिधित्व वकील अभिषेक सिन्हा व विवेक वर्मा ने किया है।
याचिकाकर्ता इस समय 5-ईयर इंटेग्रेटिड लाॅ कोर्स के सातवें सेमेस्टर में प्रवेश कर चुके हैं। इन सभी को विश्वविद्यालय की ''प्रमोशन टू नेक्स्ट सेमेस्टर ऑफ नॉन फाइनल ईयर स्टूडेंट्स'' नीति के आधार पर अगले सेमेस्टर में प्रमोट किया गया है,जो 26 मई 2020 को जारी की गई थी।
उन्होंने बताया कि यहां तक कि यूजीसी ने भी COVID19 के कठिन के समय में एक दयालु दृष्टिकोण अपनाया है और विभिन्न विश्वविद्यालयों के इंटरमीडिएट सेमेस्टर के छात्रों को पदोन्नत करने के लिए पिछले सेमेस्टर के मूल्यांकन और वर्तमान सेमेस्टर के आंकलन को आधार बनाने के लिए कहा है।
इसलिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा 27 मई, 2020 को लिया गया निर्णय ''अत्यंत कठोर'' है क्योंकि इस निर्णय के तहत सभी लाॅ यूनिवर्सिटी को कहा गया है कि प्रभावित सेमेस्टर में पदोन्नति पाने वाले सभी छात्रों की परीक्षा आयोजित करवाए।
यह भी कहा गया कि,
''शिक्षा प्रणाली का अस्तित्व व उद्देश्य और परीक्षा आयोजित करवाना छात्रों के हित में है, जो देश का भविष्य हैं। इस प्रकार छात्रों का हित ,सभी निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में केंद्रीय और सर्वोपरि होना चाहिए। ऐसे में कोई भी निर्णय, नीति या अन्यथा, जो छात्रों के हित, भलाई, स्वास्थ्य, सुरक्षा और जीवन के विपरीत है, उसे खत्म कर दिया जाना चाहिए या रोक लगा दी जानी चाहिए।''
याचिकाकर्ताओं ने अदालत को सूचित किया है कि विश्वविद्यालय ने पहले ही वर्ष 2020-2021 के लिए अकादमिक कैलेंडर घोषित कर दिया है, जिसमें विभिन्न पाठयक्रम और सह-पाठयक्रम गतिविधियों के लिए पैक्ड शेड्यूल निर्धारित है। ऐसे में अब आगे करवाई जाने वाली किसी भी परीक्षा के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।
याचिका में कहा गया है कि,
'' अगले सेमेस्टर में पदोन्नत होने के बाद छात्रों को नए पाठ्यक्रम से परिचित होना आवश्यक है जिसमें नए विषय और प्रसंग, विभिन्न असाइंमेंट, मिड टर्म टेस्ट, प्री-एग्जामिनेशन फीडबैक, फिर से मिड टर्म टेस्ट, प्रैक्टिकल एग्जाम, अंतिम परीक्षा और बैकलॉग एग्जाम स्टे,इंटर्नशिप और अन्य प्रोजेक्ट सहित अन्य गतिविधियाँ शामिल हैं। यह भी प्रस्तुत किया गया है कि एक बार जब नया सेमेस्टर शुरू हो चुका है तो उसके बाद छात्रों के लिए अब अंतिम या फाइनल परीक्षा देना बेहद कठिन होगा।''
यह भी प्रस्तुत किया गया कि अन्य पेशेवर पाठ्यक्रम करने वाले छात्रों को भी पदोन्नत किया गया है और उनको किसी भी तरह की परीक्षा देने से छूट दे दी गई है। ऐसे में सिर्फ लॉ छात्रों को ही ''अकेले बाहर'' किया गया है और परीक्षा देने के लिए कहा जा रहा है।
इस प्रकार यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत उनके अधिकारों का घोर उल्लंघन है।
दलील दी गई है कि जब एक बार अगले सेमेस्टर में पदोन्नत करने के लिए पिछले शैक्षणिक वर्ष के मूल्यांकन और वर्तमान वर्ष के आंकलन को आधार बनाने का मानदंड /यार्डस्टिक तय कर दिया गया है और उसके आधार पर छात्रों को पदोन्नत भी कर दिया गया है,तो उसके बाद परीक्षा लेने का कोई भी निर्णय मूल्यांकन व आकंलन के लिए निर्धारित मानदंडों से ''विचलन'' के समान होगा। जबकि उन मानंदडों के आधार पर पहले ही छात्रों को अगले सेमेस्टर में पदोन्नत किया जा चुका है।
याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि बीसीआई को निर्देश दिया जाए कि वह एक दयालु दृष्टिकोण अपनाए और छात्रों को सेमेस्टर की अंतिम या फाइनल परीक्षा में उपस्थित होने के लिए मजबूर न करें।