सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में कई महत्वपूर्ण संदर्भ दिए। मौजूदा आलेख में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2022 में दिए गए महत्वपूर्ण संदर्भों का विववरण दिया गया है। यह वर्षांत की विशेष प्रस्तुति है।
1.हिजाब प्रतिबंध मामला: क्या कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध संवैधानिक है?
केस टाइटल: ऐशत शिफ़ा बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य | 2022 लाइवलॉ (एससी) 842
कोरम : जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक में शैक्षणिक संस्थानों में मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध के खिलाफ दायर अपीलों के एक बैच पर खंडित फैसला पारित किया। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर 26 अपीलों को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि हिजाब इस्लाम की एक अनिवार्य प्रथा नहीं है और राज्य में शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध की अनुमति दी। फैसले से भिन्न राय व्यक्त करते हुए, जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और कहा कि आवश्यक धार्मिक प्रथा की पूरी अवधारणा पर सवाल खड़ा करना आवश्यक नहीं है। मतों में भिन्नता के आलोक में, इस मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया गया।
2.मौत की सजा के मामले: क्या उसी दिन सजा देना कानूनी है?
केस टाइटल : संदर्भ में: मौत की सजा देते समय संभावित शमनकारी परिस्थितियों के संबंध में दिशानिर्देश तैयार करना | 2022 लाइवलॉ (एससी) 777
कोरम: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को मौत की सजा देने से पहले उसकी सुनवाई से जुड़ा मामला 5 जजों की बेंच को रेफर कर दिया। पीठ ने कहा कि एक अभियुक्त को मौत की सजा देने से पहले उसे सुनवाई देने के संबंध में परस्पर विरोधी निर्णय थे। अदालत ने नोट किया कि सजा के मुद्दे पर अभियुक्त/दोषी को औपचारिक सुनवाई के विपरीत, वास्तविक और सार्थक अवसर देने के सवाल पर एक समान दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए मामले में स्पष्टता होना आवश्यक था। नतीजतन, अदालत ने कहा कि इस उद्देश्य के लिए पांच न्यायाधीशों की एक बड़ी बेंच का संदर्भ आवश्यक था।
3.चुनावी रेवड़ी: क्या राजनीतिक दलों को चुनाव प्रचार में मुफ्त उपहार देने का वादा करने की अनुमति दी जानी चाहिए?
केस टाइटल : अश्विनी उपाध्याय बनाम यूनियन ऑफ इंडिया| 2022 लाइवलॉ (एससी) 717
कोरम: सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस हेमा कोहली, जस्टिस सीटी रविकुमार
सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों द्वारा किए गए वादों और चुनावी मुफ्त उपहारों से जुड़े मुद्दों को तीन जजों की बेंच को रेफर कर दिया। भाजपा की दिल्ली इकाई के पूर्व प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका में कोर्ट ने उक्त निर्णय दिया। याचिका में चुनाव आयोग (ECI) को राजनीतिक दलों को चुनाव प्रचार में मुफ्त उपहार देने का वादा करने की अनुमति नहीं देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
शामिल मुद्दों की जटिलता को देखते हुए, और सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य में न्यायालय की दो-न्यायाधीशों की खंडपीठ द्वारा दिए गए फैसले को रद्द करने की प्रार्थना को देखते हुए, न्यायालय ने याचिकाओं के सेट को तीन जजों की बेंच के समक्ष सेट करने का निर्णय दिया।
4.शिवसेना विवाद: महाराष्ट्र राज्य में राजनीतिक संकट
केस टाइटल: सुभाष देसाई बनाम प्रधान सचिव, राज्यपाल महाराष्ट्र और अन्य | 2022 लाइवलॉ (एससी) 697
कोरम: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य में राजनीतिक घटनाक्रम के संबंध में शिवसेना के प्रतिद्वंद्वी समूहों द्वारा दायर याचिकाओं को संविधान पीठ के पास भेज दिया। उद्धव खेमे की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल द्वारा एकनाथ शिंदे के दावे को आधिकारिक शिवसेना पार्टी के रूप में तय करने से भारत के चुनाव आयोग को रोकने के लिए की गई प्रार्थना पर, अदालत इस मामले को संविधान पीठ के समक्ष पोस्ट करने पर सहमत हुई। अदालत ने बाद में महाराष्ट्र राज्य में राजनीतिक संकट के संबंध में उद्धव ठाकरे गुट और एकनाथ गुट, दोनों द्वारा दायर याचिकाओं के बैच को निर्देश के लिए 13 जनवरी, 2023 को पोस्ट कर दिया।
5.दिल्ली सरकार बनाम एलजी: राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक सेवाओं को कौन नियंत्रित करता है?
केस टाइटल: एनसीटी दिल्ली सरकार बनाम यूनियन ऑफ इंडिया| 2022 लाइवलॉ (एससी) 459
कोरम: चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली
सुप्रीम कोर्ट की 3-जजों की पीठ ने राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण के संबंध में दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच कानूनी विवाद से संबंधित सीमित प्रश्नों को एक संविधान पीठ को संदर्भित किया। पीठ ने पाया कि अनुच्छेद 239एए 3ए में वाक्यांशों की व्याख्या से संबंधित मुख्य विवाद 'ऐसा कोई मामला यूटी पर लागू होता है' और 'इस संविधान के प्रावधानों के अधीन' है। हालांकि, यह नोट किया गया कि विचाराधीन मुद्दे को छोड़कर सभी मुद्दों को 2018 के अपने फैसले में संविधान पीठ द्वारा विस्तृत रूप से निपटाया गया है। इसलिए पीठ ने उन मुद्दों पर फिर से विचार करना आवश्यक नहीं समझा जो पिछली संविधान पीठों द्वारा सुलझाए गए थे।
6.धारा 23 POCSO: क्या पीड़ित की पहचान का खुलासा करने के लिए धारा 23 POCSO अपराध की जांच के लिए अदालत की अनुमति की आवश्यकता है?
केस टाइटल: गंगाधर नारायण नायक @ गंगाधर हिरेगुट्टी बनाम कर्नाटक राज्य | 2022 लाइवलॉ (एससी) 301
कोरम: जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर खंडित फैसला दिया कि क्या दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 155(2) यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो) की धारा 23 के तहत अपराध की जांच पर लागू होगी। धारा 155 (2) सीआरपीसी के अनुसार, एक पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना असंज्ञेय अपराध की जांच नहीं कर सकता है। POCSO की धारा 23 यौन अपराध के शिकार की पहचान के प्रकटीकरण के अपराध से संबंधित है। पीठ एक कन्नड़ अखबार के संपादक द्वारा दायर एक अपील पर विचार कर रही थी, जिस पर पॉक्सो अधिनियम की धारा 23 के तहत यौन अपराध की शिकार 16 वर्षीय लड़की की पहचान प्रकाशित करके अपराध करने का आरोप लगाया गया था। अपीलकर्ता ने इस आधार पर मजिस्ट्रेट के सामने आरोप मुक्त करने की मांग की थी कि पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 155 (2) का पालन किए बिना एफआईआर दर्ज की थी। मजिस्ट्रेट ने उनकी अर्जी खारिज कर दी। उन्होंने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें भी उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। इस तरह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
जबकि जस्टिस बनर्जी ने कहा कि धारा 23 POCSO के तहत अपराध की जांच के लिए पुलिस को मजिस्ट्रेट की अनुमति की आवश्यकता नहीं थी, हालांकि जस्टिस माहेश्वरी ने अन्यथा कहा। खंडित फैसले को देखते हुए, इस मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश को इस मुद्दे को हल करने के लिए एक उपयुक्त पीठ गठित करने के लिए भेजा गया।