केरल हाईकोर्ट ने रजिस्ट्री को दस्तावेजों का अंग्रेजी अनुवाद होने तक याचिका स्वीकार न करने का निर्देश दिया
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में व्यवस्था दी कि रिट याचिका दायर करने वाले एडवोकेट को स्थानीय भाषा में दिए गए दस्तावेजों का अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत करना चाहिए। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने रजिस्ट्री को ऐसे अनुवाद के बिना याचिका स्वीकार करने से रोक दिया।
जस्टिस अमित रावल स्थानीय भाषा में दस्तावेजों के साथ दायर याचिका सुनवाई कर रही थी। इस याचिका के साथ यह नोट लगाया कि अदालत द्वारा जब भी आवश्यकता होगी उक्त दस्तावेजों का अंग्रेजी अनुवाद पेश किया जाएगा।
न्यायाधीश ने कहा कि हाईकोर्ट के नियमों में वकील को याचिका में इस तरह के नोट को संलग्न करने का अधिकार देने का कोई प्रावधान नहीं है।
कोर्ट ने कहा,
"भारत के संविधान के अनुसार हाईकोर्ट की भाषा अंग्रेजी है। यही भाषा हाईकोर्ट के नियमों में भी है। यह न्यायालय लगभग ढाई साल से रिट साइड पर बैठा है, लेकिन दस्तावेजों के अनुवाद को दाखिल करने की प्रथा का पालन नहीं किया गया। लगभग 90% मामलों में स्थानीय भाषा में दस्तावेज दायर किए जाते हैं। रजिस्ट्री द्वारा इस रिट याचिका पर तब तक विचार नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि विशेष छूट देने के लिए एडवोकेट की ओर से विविध आवेदन दायर नहीं किया गया।"
यह आदेश दिया गया कि हाईकोर्ट के नियमों और भारत के संविधान में किसी प्रावधान के अभाव में रजिस्ट्री को इस तरह की रिट याचिकाओं को नोट के साथ लेने से प्रतिबंधित किया जाता है। इस आदेश की तत्काल अनुपालना के लिए रजिस्ट्रार (न्यायिक) को अवगत कराने का भी निर्देश दिया गया।
कोर्ट वाहन की खरीद को लेकर हुए विवाद के मामले की सुनवाई कर रहा था।
तीसरे प्रतिवादी ने 2020 में समझौते के तहत चौथे प्रतिवादी से कुल 24 लाख रुपये में वाहन खरीदा था। इसमें से तीसरे प्रतिवादी ने कथित तौर पर 10 लाख का भुगतान किया। हालांकि कोई रसीद संलग्न नहीं है। बाकी रकम किश्तों में देनी थी।
वाहन का कब्जा और मूल समझौता याचिकाकर्ता को सौंप दिया गया, जबकि फोटोकॉपी चौथे प्रतिवादी को सौंप दी गई। चौथे प्रतिवादी द्वारा केवल फॉर्म नंबर 29 और 30 को भी निष्पादित किया गया, जिसे स्वामित्व के हस्तांतरण को प्रभावित करने के लिए क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी को भेजा गया।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट शहनवाज़ खान ने प्रस्तुत किया कि खरीद के बाद तीसरे प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता को अवगत कराया कि केआरएस पार्सल सेवा से अनुबंध राशि प्राप्त करने के लिए मूल बिक्री समझौते की आवश्यकता है। आश्वासन के आधार पर याचिकाकर्ता ने मूल अनुबंध तीसरे प्रतिवादी को सौंप दिया।
इसके अलावा, यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता से संबंधित दो वाहनों को तीसरे प्रतिवादी की परिवहन कंपनी को उसके बदले पट्टे पर सौंप दिया गया, तीसरा प्रतिवादी याचिकाकर्ता को लाभ का 85% देने के लिए सहमत हो गया।
जब तीसरे प्रतिवादी ने राशि का भुगतान करने से इनकार कर दिया तो याचिकाकर्ता ने पुलिस महानिदेशक और जिला पुलिस अधीक्षक को भी शिकायत प्रस्तुत की।
चूंकि कोई कार्रवाई नहीं की गई, इसलिए उसने 2021 में याचिका दायर की, जिसके अनुसार तीसरे प्रतिवादी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420 के तहत अपराध दर्ज किया गया।
जांच के दौरान, तीसरे प्रतिवादी ने उसके और चौथे प्रतिवादी के बीच बिक्री समझौता प्रस्तुत किया, जहां चौथा प्रतिवादी उसे वाहन बेचने के लिए सहमत हुआ था।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि चौथा प्रतिवादी मनगढ़ंत समझौते के आधार पर वाहन के स्वामित्व को तीसरे प्रतिवादी को हस्तांतरित करने का प्रयास कर रहा है। इस संबंध में उसने राज्य परिवहन आयुक्त के समक्ष अभ्यावेदन प्रस्तुत किया।
चौथे प्रतिवादी की ओर से एडवोकेट जी. हरिहरन पेश हुए। उन्होंने प्रस्तुत किया कि वाहन का कब्जा चौथे प्रतिवादी के पास है, यहां तक कि वाहन का रजिस्ट्रेशन भी चौथे प्रतिवादी के नाम पर है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता और तीसरे प्रतिवादी के बीच निजी विवाद हैं, इसलिए उक्त याचिका जुर्माना के साथ खारिज किए जाने योग्य है।
कोर्ट ने पाया कि रिकॉर्ड पर रखे गए दस्तावेजों से पता चलता है कि वाहन का रजिस्टर्ड मालिक चौथा प्रतिवादी है। मामले को वैकल्पिक नागरिक उपचार के माध्यम से सुलझाया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा,
"याचिकाकर्ता द्वारा चौथे प्रतिवादी के साथ किए गए कुछ समझौते और तीसरे प्रतिवादी को पट्टे पर देने के लिए पेश किया जा रहा है। यदि इसका उल्लंघन होता है तो याचिकाकर्ता के पास निपटान के लिए स्वतंत्र नागरिक उपचार का लाभ उठाया जा सकता है। निजी विवाद भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका प्रस्तुत करने वाले किसी अन्य व्यक्ति के पक्ष में वाहन को स्थानांतरित करने की धमकी की आड़ में नहीं हो सकता।"
इस प्रकार, याचिका को अदालत की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग और सुनवाई योग्य नहीं पाया गया। केरल हाईकोर्ट ने दस हजार रुपए के जुर्माना के साथ याचिका खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने उक्त जुर्माना राशि को बार एसोसिएशन को भुगतान करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: केएम मोहम्मद कुट्टी बनाम राज्य परिवहन आयुक्त और अन्य।
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केरल) 406
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