[पीएमएलए की धारा 50] अभियुक्त के बयान दर्ज करने के लिए अर्जी केवल सत्र / स्पेशल कोर्ट के समक्ष किया जा सकता है, मजिस्ट्रेट के समक्ष नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि धनशोधन निवारण अधिनियम के वैधानिक ढांचे के आलोक में, किसी आरोपी/संदिग्ध के बयान दर्ज करने के लिए अर्जी केवल अधिनियम के तहत मामलों की सुनवाई के लिए नामित स्पेशल कोर्ट के समक्ष ही की जा सकती है।
न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा,
"पीएमएलए इस बात को अनिवार्य बनाता है कि पीएमएलए से उत्पन्न किसी भी मुद्दे पर केवल स्पेशल कोर्ट द्वारा विचार किया जाएगा।"
पीठ ने पीएसआई भर्ती घोटाले के एक आरोपी हर्षा डी. की ओर से दायर याचिका की अनुमति देते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसने अधिनियम की धारा 50(3) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दायर अर्जी की अनुमति दी थी। ईडी ने याचिकाकर्ता सहित पांच आरोपियों के लिखित बयान दर्ज करने की अनुमति मांगी, जो उसकी हिरासत में थे।
निष्कर्ष :
शुरुआत में, पीठ ने कहा कि पीएमएलए की धारा 43 एक स्पेशल कोर्ट या एक निर्दिष्ट कोर्ट के गठन और ऐसे कोर्ट को सेशन कोर्ट बनाने का निर्देश देती है। इसलिए, धारा 43 के संदर्भ में पीएमएलए के तहत दंडनीय अपराध की सुनवाई के लिए नामित कोर्ट सेशन कोर्ट होता है। इसके अलावा, पीएमएलए की धारा 50 के तहत अधिकारियों को सम्मन करने, दस्तावेज पेश करने और सबूत देने के संबंध में अधिकार देती है। पीएमएलए की धारा 71 पीएमएलए के प्रावधानों को उस समय लागू किसी भी अन्य कानून पर अधिभावी प्रभाव प्रदान करती है, भले ही कोई असंगत बात क्यों न हो।
ईडी द्वारा दायर अर्जी का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा,
"ईसीआईआर की जांच के लिए नियुक्त जांच अधिकारी का इरादा धारा 50 की उपधारा (2) और (3) के संदर्भ में बयान दर्ज करना था। इसलिए, पीएमएलए के प्रावधान याचिकाकर्ता के खिलाफ लागू किये गये थे और ऐसे में जांच के दौरान धारा 3 और 4 के तहत अपराध निर्धारित किये जाते हैं तथा बयान दर्ज करने की मांग की जाती है।"
इसने कहा कि यदि ईडी धारा 3 के तहत अपराध की पहचान करने के लिए पीएमएलए के प्रावधानों को लागू करना चाहता है, तो नामित कोर्ट ही सेशन कोर्ट है, जिसके पास पीएमएलए के प्रावधानों से उत्पन्न किसी भी अर्जी पर विचार करने की शक्ति है।
"सिर्फ इसलिए कि हिरासत का आदेश मजिस्ट्रेट द्वारा दिया जाता है, उसे सेशन कोर्ट की शक्तियां नहीं दी जा सकती। सेशन कोर्ट उस तरह के किसी भी आवेदन पर विचार करने की शक्ति रखता है जो मजिस्ट्रेट के समक्ष रखा गया था।"
इसने कहा,
"मजिस्ट्रेट पीएमएलए की धारा 50 के तहत दायर एक आवेदन से निपट रहे थे। पीएमएलए की धारा 50 के तहत दायर आवेदन पर विचार करना मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र से पूरी तरह बाहर था। इसे बयान दर्ज करने की अनुमति लेने के लिए पहले संबंधित कोर्ट के समक्ष रखा जाना चाहिए था, क्योंकि यह सामान्य प्रावधान है कि स्पेशल कोर्ट के पास हमेशा मजिस्ट्रेट की शक्ति हो सकती है, न कि अलग तरीके से, क्योंकि यह अधिकार क्षेत्र का मसला है। "
पीठ ने कहा,
"आरोपी के कृत्यों के परिणामस्वरूप आईपीसी, विशेष अधिनियमों के तहत या किसी अन्य कानून के तहत के तहत कई कार्यवाही हो सकती है, जो ऐसे आरोपी को नियंत्रित करेगा और उन अधिनियमों के लिए आरोपी को स्पेशल कोर्ट के समक्ष मुकदमा चलाने की आवश्यकता हो सकती है। यदि कथित अपराध आईपीसी के तहत अपराधों का मिश्रण है, जिसे एक मजिस्ट्रेट के समक्ष सुना जाना है और अन्य अपराधों को एक विशेष न्यायाधीश के समक्ष पेश किया जाना है, तो अभियोजन यदि कोई भी कार्यवाही विशेष अधिनियम के तहत शुरू करना चाहता है, वह केवल स्पेशल कोर्ट के समक्ष होगी।"
तदनुसार इसने याचिका को अनुमति दे दी।
केस टाइटल: हर्ष डी. बनाम हाई ग्राउंड पुलिस स्टेशन के जरिये सरकार
केस नंबर: रिट याचिका संख्या 19042/2022
साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (कर्नाटक) 419
आदेश की तिथि: 17 अक्टूबर, 2022
पेशी: याचिकाकर्ता के लिए संदेश जे.चौटा, सीनियर एडवोकेट ए/डब्ल्यू अरुण जी, एडवोकेट; प्रतिवादी संख्या 1 और 2 के लिए के.एस.अभिजीत, एचसीजीपी; प्रतिवादी संख्या 3 के लिए मधुकर देशपांडे, विशेष पी पी
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