बार एसोसिएशनों से प्रैक्टिस करने वाले वकीलों का विवरण मांगने का मामला : कर्नाटक हाईकोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया के निर्देश को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार किया
कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए कि ''इस मामले में पीड़ित पक्ष (वकील) असहाय नहीं हैं और कोई भी असमर्थता उन्हें उनका बचाव करने से रोक नहीं रही है'', डॉ केबी विजयकुमार(पार्टी-इन-पर्सन ) की तरफ से दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) का निपटारा कर दिया। इस जनहित याचिका में मांग की गई थी कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) द्वारा 24 जुलाई को जारी एक पत्र की सामग्री को अवैध और अमान्य घोषित किया जाए।
24 जुलाई को बीसीआई ने एक पत्र जारी किया था, जिसमें देश भर के सभी जिला और तालुका बार एसोसिएशनों से अनुरोध किया गया था कि वे भारत के सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति के अवलोकन के लिए उन सभी अधिवक्ताओं का विवरण प्रस्तुत करें जो प्रैक्टिस करते हैं और संबंधित बार एसोसिएशनों के सदस्य हैं।
इस प्रैक्टिस को अनिवार्य बताया गया था। साथ ही कहा गया था कि जो अधिवक्ता अपने संबंधित बार एसोसिएशन को अपेक्षित जानकारी प्रस्तुत करने में विफल रहेंगे(जो बीसीआई को डेटा अग्रेषित करेंगे) ,उन्हें ''काउंसिल द्वारा नाॅन-प्रैक्टिसिंग एडवोकेट'' के रूप में माना जाएगा।''
बीसीआई के निर्देश को चुनौती देते हुए, पीआईएल में कहा गया था कि यह हर व्यक्ति का विशेषाधिकार है कि वह किसी भी राज्य/जिला बार एसोसिएशनों के साथ खुद को पंजीकृत करे या न करें। वहीं अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के प्रावधानों के अनुसार भी यह अनिवार्य नहीं है। याचिकाकर्ता की दलील थी कि एक वकील को बार एसोसिएशन का सदस्य बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
याचिकाकर्ता के अनुसार,''बीसीआई के पत्र में कहा गया है कि जो अधिवक्ता किसी भी बार एसोसिएशन के सदस्य नहीं हैं, उन्हें फलस्वरूप काउंसिल द्वारा नाॅन-प्रैक्टिसिंग एडवोकेट'' के रूप में माना जाएगा। जबकि इस तरह का निर्देश मनमाना, गैरकानूनी, व्यर्थ और अमान्य है और अधिवक्ताओं अधिनियम 1961 का उल्लंघन है। चूंकि उसके अनुसार, देश की किसी भी अदालत में प्रैक्टिस करने के लिए राज्य बार काउंसिल के साथ नामांकन ही एकमात्र आवश्यकता है।''
मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति ई एस इंदिरेश की खंडपीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि-
''अगर किसी को भी उक्त सर्कुलर/पत्र से कोई परेशानी है तो उसे बार का सदस्य होना चाहिए। जो निश्चित रूप से कानून के अनुसार उचित कार्यवाही करके अपनी शिकायतों या परेशानियों को दूर करने में सक्षम हैं। इसलिए, हम इस रिट याचिका पर पीआईएल के तौर पर विचार नहीं करना चाहते हैं। इसी के साथ इस रिट याचिका का निपटारा किया जाता है।''