फेसबुक पर पवित्र कुरान की तुलना कोरोना वायरस से की थी, कर्नाटक हाईकोर्ट ने दी अग्रिम जमानत
कर्नाटक हाईकोर्ट ने 32 वर्षीय एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत दी है। उस व्यक्ति ने अप्रैल महीने में अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक संदेश पोस्ट किया था, जिसमें कथित रूप से कोरोनोवायरस की तुलना पवित्र कुरान के साथ की गई थी। इस प्रकार, पवित्र कुरान का अपमान किया गया था और मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को आहत किया गया था।
जस्टिस के नटराजन ने जांच अधिकारी की संतुष्टि के लिए एक निश्चित सीमा के साथ 25,000 रुपए के निजी मुचलके पर कुसुमधारा कनियूर @ कुसुमधारा एच को अग्रिम जमानत दी। साथ ही उन्हें निर्देश दिया गया कि आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से पंद्रह दिनों के भीतर जांच आधिकारी के समक्ष आत्मसमर्पण करें, और इस प्रकार के अपराधों में लिप्त नहीं रहें।
बेल्लारे पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 153A और 505 (2) के तहत मोहम्मद साहीर की ओर से दायर एक शिकायत के आधार पर आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज किया था। आरोपी ने पहले मंगलौर में सत्र अदालत में अग्रिम जमानत की मांग की थी, जिसे खारिज कर दिया गया। जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट सचिन बीएस ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता निर्दोष है और उसके खिलाफ झूठा मामला दर्ज किया गया है। यहां तक कि आईपीसी की धारा 153A और 505 (2) के तहत अपराधों को आकर्षित करने का कोई घटक भी मौजूद नहीं है। उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल ने समाज के विभिन्न वर्गों के बीच किसी भी तरह की दुश्मनी का कारण पैदा करने का प्रयास नहीं किया है। याचिकाकर्ता एक लोक सेवक है और अनुमति प्राप्त किए बिना शिकायत दर्ज करने और संज्ञान लेने का सवाल ही नहीं उठता।
राज्य सरकार की ओर से पेश वकील महेश शेट्टी ने याचिका का विरोध करते हुए कहा, "याचिकाकर्ता ने अपने फेसबुक में एक संदेश पोस्ट किया, जिसमें कहा गया कि पवित्र कुरान भारत के लिए कोरोना से अधिक खतरनाक है, जो आईपीसी की धारा 153A और 505 (2) के तहत दंडनीय है।" शिकायत के पंजीकरण के बाद से याचिकाकर्ता फरार है और अगर जमानत दी जाती है, तो वह मामले से फरार हो सकता है। इसके अलावा, उसकी हिरासत पूछताछ के लिए आवश्यक है।
पीठ ने कहा "विद्वान सरकारी वकील ने यह प्रदर्शित करने के लिए किसी भी प्रकार की सामग्री पेश नहीं की है कि क्या पुलिस ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने की अनुमति प्राप्त की है? मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेने के लिए मंजूरी आवश्यक है। हालांकि, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंज़र सईद खान के मामले में तय किए गए सिद्धांत और याचिकाकर्ता द्वारा पोस्ट किए गए संदेश को देखते हुए, इस स्तर पर, यह नहीं कहा जा सकता है कि, याचिकाकर्ता के खिलाफ किसी कथित अपराध को करने का प्रथम दृष्टया मामला है, जहां यह समाज के दो समूहों के बीच सांप्रदायिक हिंसा या तनाव को बढ़ावा देता है। "
ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें