कर्नाटक हाईकोर्ट का निर्देश, सांसदों/विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों के निस्तारण के लिए स्वत संज्ञान याचिका दायर की जाए

Update: 2020-09-21 07:37 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार को कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए निर्देशों के मद्देनजर, जिसमें हाईकोर्टों के मुख्य न्यायाधीशों से कहा गया है कि वे विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के युक्तिसंगत निस्तारण के लिए एक कार्य योजना तैयार करें, स्वत संज्ञान याचिका दायर करें।

चीफ जस्टिस अभय ओका और जस्टिस अशोक एस किनागी की खंडपीठ ने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि यचिका को सुनवाई के लिए 23 सितंबर को पेश किया जाए। जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग के नवादगी को राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करने का निर्देश दिया गया है, या उन्हें राज्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक अतिरिक्त महाधिवक्ता को नामित करने की अनुमति दी गई है। वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य सोंधी को अदालत की सहायता के लिए एमिकस क्यूरिया के रूप में नियुक्त किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 17 सितंबर को दिए अपने आदेश में कहा था कि कार्ययोजना में निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए:

a. प्रत्येक जिले में लंबित मामलों की कुल संख्या

b. विशेष न्यायालयों के लिए आवश्यक संख्या

c. वर्तमान में उपलब्ध न्यायालयों की संख्या

d. न्यायाधीशों की संख्या और मामलों की विषय श्रेणियां

e. नामित किए जाने वाले न्यायाधीशों का कार्यकाल

f. प्रत्येक न्यायाधीश को सौंपे जाने वाले मामलों की संख्या

g.मामलों के निस्तारण के लिए अपेक्षित समय

h. निर्दिष्ट न्यायालयों की दूरी

i. आधारभूत संरचना की पर्याप्तता।

आदेश में कहा गया है कि कार्य योजना तैयार करते समय, मुख्य न्यायाधीशों को यह भी विचार करना चाहिए कि यदि पहले से ही परीक्षण तीव्र गति से चल रहे हैं, तो क्या उन्हें अलग न्यायालय में स्थानांतरित करना आवश्यक और उचित होगा।

मुख्य न्यायाधीश को इन मुकदमों की प्रगति पर नजर रखने के लिए, स्वयं और स्वयं द्वारा तय एक जज को शामिल कर एक विशेष पीठ का गठन करना चाहिए। मुख्य न्यायाधीशों से अनुरोध है कि वे विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र ‌निस्तारण के उद्देश्य से एमिकस क्यूरिया के अन्य सुझावों पर अपनी टिप्पणी दें। अतिरिक्त सुझाव, यदि कोई हो तो, सुप्रीम कोर्ट को भी भेजे जा सकते हैं।

हाईकोर्टों के मुख्य न्यायाधीशों की टिप्पणियों और सुझावों के साथ कार्य योजना, एक सप्ताह के भीतर सर्वोच्च न्यायालय के महासचिव को भेजी जानी है। एक प्रति ई-मेल के माध्यम से एमिकस क्यूरिया को भी भेजी जा सकती है।

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों से यह भी कहा गया है कि वे सभी लंबित आपराधिक मामलों को सूचीबद्ध करें, जिसमें वर्तमान/ पूर्व विधायक (सांसद और विधायक) शामिल हैं, विशेषकर उन मामलों को शामिल किया जाए, जिन्हें मुख्य न्यायाधीश और/ या उन्हीं द्वारा नियुक्तों जजों की एक उपयुक्त पीठ (पीठों) द्वारा स्टे दिया गया हो।

इन मामलों को सूचीबद्ध किए जाने पर, कोर्ट को पहले यह तय करना चाहिए कि यदि कोई स्टे दिया गया है तो क्या उसे जारी रखा जाना चाहिए।

यदि एक स्टे को जरूरी माना जाता है तो कोर्ट को मामले की सुनवाई दिन-प्रतिदिन के आधार पर करनी चाहिए और बिना किसी अनावश्यक स्थगन के दो महीने की अवधि के भीतर निस्तारण किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि "COVID-19 की अनुपालन के ‌लिए बाधा नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इन मामलों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से आसानी से सुना जा सकता है।"

दिसंबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों / विधायकों के खिलाफ मामलों के लिए विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने के निर्देश पारित किए थे।

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