कर्नाटक हाईकोर्ट का आदेश-जब तक कि नियम नहीं बना लिए जाएं, मवेशी परिवहन के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई ना की जाए; कर्नाटक सरकार ने आदेश में संशोधन की मांग की
कर्नाटक सरकार ने कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष एक आवेदन दाखिल किया है, जिसमें तत्कालीन मवेशी वध रोकथाम एवं संरक्षण विधेयक-2020 की धारा 5 (मवेशियों के परिवहन पर प्रतिबंध) के उल्लंघन पर किसी भी दंडात्मक कार्रवाई पर रोक के हाईकोर्ट के 20 जनवरी के आदेश में, जब तक नियम लागू नहीं हो जाते, संशोधन की मांग की गई है।
चूंकि अब एक अधिनियम लागू हो गया है, इसलिए सरकार ने जनवरी के आदेश में संशोधन की मांग की है।
" उपरोक्त आदेश तब पारित किया गया था, जब अधिनियमन किया नहीं गया था। इसके बाद, कर्नाटक मवेशी वध रोकथाम और संरक्षण अधिनियम, 2020 को 15.02.2021 से लागू किया गया था। इसके बाद, 24.05.2021 की अधिसूचना द्वारा 25.05.2021 के राजपत्र में प्रकाशित कर्नाटक मवेशी वध रोकथाम एवं संरक्षण (मवेशी का परिवहन) नियम, 2021 अधिनियम की धारा 5 के प्रावधान के तहत विचार किए गए नियमों के संदर्भ में तैयार किए गए हैं।"
उसी के मुताबिक, चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी और जस्टिस सचिन शंकर मखदुम की खंडपीठ ने मूल याचिकाकर्ताओं को आवेदन पर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
आवेदन में कहा गया है-
" इस माननीय न्यायालय के समक्ष दी गई अंडरटेकिंग के मद्देनजर कि, "राज्य सरकार द्वारा धारा 5 के उल्लंघन के लिए तब तक दंडात्मक कार्रवाई शुरू नहीं की जाएगी, जब तक नियम नहीं बनाए जाते हैं", नियमों के अधिनियमन और प्रकाशन के बावजूद सरकार द्वारा कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती है। इसलिए, अब राज्य सरकार अधिनियम की धारा 5 के प्रावधानों को लागू करने के लिए इस माननीय न्यायालय की अनुमति मांगती है और इस माननीय न्यायालय के पूर्व के आदेश, दिनांक 20.01.2021 को संशोधित करने की मांग करती है।
आवेदन में उल्लेख है कि सरकार ने 16 जिलों में गोशालाओं के लिए काफी हद तक भूमि आवंटित की है और 14 जिलों में सरकारी गोशाला के लिए भूमि आवंटन की प्रक्रिया चल रही है। 30.09.2021 तक 2020 अधिनियम के तहत दर्ज मामलों की संख्या 413 है। राज्य में केवल 26 अधिकृत/पंजीकृत बूचड़खाने हैं।
पृष्ठभूमि
यह आवेदन अधिनियम की संवैधानिक वैधता के खिलाफ दायर याचिकाओं के मद्देनजर दायर किया गया है।
मोहम्मद आरिफ जमील द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि कानून नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और असंवैधानिक है। दलील दी गई है कि संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (जी) नागरिकों को व्यापार और व्यवसाय करने की गारंटी देता है, जो उस अनुच्छेद के खंड 6 में उल्लिखित उचित प्रतिबंध के अधीन है।
याचिका में कहा गया है, जानवरों की बिक्री/ खरीद या पुनर्विक्रय पर पूर्ण प्रतिबंध से किसानों, पशु व्यापारियों पर भारी आर्थिक बोझ पड़ेगा। उन्हें अपने बच्चों को खिलाना मुश्किल हो जाएगा, लेकिन उन्हें मवेशियों को खिलाना पड़ेगा क्योंकि कानून के तहत पशु को भूखा रहना एक अपराध है।
याचिका में दावा किया गया है कि नया कानून संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आजीविका के अधिकार का उल्लंघन है। साथ ही भोजन के चुनाव का अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता, विवेक और गोपनीयता के अधिकार का एक हिस्सा है। भोजन के लिए जानवरों के वध पर प्रतिबंध लगाने से ऐसे जानवरों का मांस खाने के विकल्प वाले नागरिकों को ऐसे भोजन से वंचित किया जाएगा जो अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि बीफ मंगलोरियन व्यंजनों का एक अभिन्न अंग है। अध्यादेश उन्हें बीफ खाने से रोकता है जो उनकी संस्कृति का अभिन्न अंग है और इस तरह संविधान के अनुच्छेद 29 का उल्लंघन करता है। याचिका में अंतरिम राहत के माध्यम से अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करने की प्रार्थना की गई है ताकि वह यथावत रहे।
केस शीर्षक: मोहम्मद आरिफ जमील बनाम कर्नाटक राज्य
केस नंबर: डब्ल्यूपी 508/2021