कल्याण-डोंबिवली नगर निगम: बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कल्याण-डोंबिविलि नगर निगम (KDMC)से 18 गांवों को बाहर करने की महाराष्ट्र सरकार की अधिसूचना को खारिज करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर नोटिस जारी किया।
KDMC और राज्य सरकार की ओर से हाईकोर्ट की एक खंडपीठ के 4 दिसंबर के फैसले के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने दिया, जिसकी अध्यक्षता भारत के चीफ जस्टिस कर रहे थे।
KDMC के नगर आयुक्त की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि हाईकोर्ट ने "रूढ़िवादी और तकनीकी" दृष्टिकोण अपनाया था। उन्होंने जल्द वापसी की तारीख के लिए पीठ से अनुरोध किया, क्योंकि अप्रैल 2021 में नगर निगम के चुनाव होने हैं।
महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने का आग्रह किया। हालांकि, पीठ ने स्थगन आवेदन पर विचार करने से इनकार कर दिया और कहा कि नोटिस की वापसी के बाद इस पर विचार किया जाएगा।
हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की खंडपीठ ने KDMC की सीमाओं को घटाने के लिए 24 जून, 2020 को राज्य सरकार द्वारा पारित अधिसूचना को अमान्य घोषित कर दिया था, क्योंकि उक्त अधिसूचना नगर निगम के साथ प्रभावी और सार्थक परामर्श के बिना पारित की गई थी। राज्य सरकार ने KDMC से अलग किए 18 गांवों से एक ओर काउंसिल बनाने का प्रस्ताव दिया था, जिसका नाम कल्याण उपनगरीय नगर परिषद होता।
राज्य सरकार ने यह कहते हुए अधिसूचना का बचाव किया कि यह नगर आयुक्त की सिफारिश पर जारी की गई थी। हाईकोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र नगर निगम अधिनियम, 1949 के अनुसार नगर आयुक्त को निगम के बराबर नहीं माना जा सकता है।
जस्टिस कुलकर्णी ने फैसले में कहा, "हमारी राय में, 'निगम के साथ परामर्श' का विधायिका का इरादा और उद्देश्य औपचारिकता मात्र नहीं हो सकती है, वांछित विधायी इरादे को पाना सार्थक हो, यह आवश्यक है। इच्छित उद्देश्य संबंधित नगर निगम के संबंध में क्षेत्रों को शामिल करने या ना शामिल करने की प्रस्तावित कार्रवाई पर नगर निगम से प्रभावी राय बनाना है।
वर्तमान संदर्भ में परामर्श का आशय अनुमोदन या सहमति नहीं है, हालांकि राज्य सरकार द्वारा निगम के विचारों का पता लगाना आवश्यक था....यह निश्चित रूप से पूर्व परामर्श है, क्योंकि प्रावधान "निगम के परामर्श के बाद" शब्दों का उपयोग करता है। प्रावधान की इस आवश्यकता को निश्चित रूप से "नगर आयुक्त" की राय पाकर तुच्छ नहीं माना जा सकता है, जो 1949 अधिनियम के अर्थ में निगम नहीं है, बल्कि नगर निगम का एक अधिकारी है।"
KDMC के नगर आयुक्त के लिए एसएलपी अधिवक्ता चिराग जे शाह, उत्सव त्रिवेदी, अभिनव शर्मा, सृष्टि कुमार, हिमांशु सचदेवा और सम्राट शिंदे, एओआर के माध्यम से दायर की गई।