इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बलात्कार-हत्या के आरोपी की मौत की सजा रद्द करते हुए उसे बरी किया

Update: 2022-03-17 12:45 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट

 इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को 75 वर्षीय महिला के साथ बलात्कार व उसकी हत्या करने के आरोपी व्यक्ति को निचली अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा की पुष्टि करने के लिए भेजे गए संदर्भ को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मामले की जांच सही नहीं थी।

जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस समीर जैन की खंडपीठ ने आरोपी को बरी करते हुए कहा कि मौजूदा मामले में सीआरपीसी की धारा 53-ए की आवश्यकता के अनुसार डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए आरोपी से रक्त और अन्य जैविक सामग्री एकत्र नहीं की गई थी।

संक्षेप में मामला

24 फरवरी, 2017 को पीड़िता/मृतका (75 वर्षीय महिला) के पति (पीडब्ल्यू-1) द्वारा दर्ज रिपोर्ट/एफआईआर के अनुसार आरोप लगाया गया था कि उसकी पत्नी (पीड़िता) सरसों की फसल काटने के लिए खेत गई थी और जब वह नहीं लौटी तो पीडब्ल्यू-1 उसकी तलाश करने गया था।

पीड़िता की तलाश के दौरान, पीडब्ल्यू-3 (एक महिला) ने पीडब्ल्यू-1 को सूचित किया कि उसने दो पुरुषों को पीड़िता को एक्स के खेत में ले जाते हुए देखा था। इस सूचना के बाद जब एक्स के खेतों में पीड़िता की तलाश की गई तो पीड़िता मृत मिली और उसके कपड़े फटे हुए थे।

इसके अलावा, यह आरोप लगाया गया कि पीडब्ल्यू-4 (पीडब्ल्यू-1 के पोते) ने शिकायतकर्ता को बताया था कि उसने अपीलकर्ता/अभियुक्त को किसी अन्य व्यक्ति के साथ भागते हुए देखा था। जिसके बाद अपीलकर्ता और एक अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।

घटना के दो दिन बाद, अपीलकर्ता/अभियुक्त को गिरफ्तार कर लिया गया और उसी दिन उसकी चिकित्सकीय जांच की गई, जिसमें किसी भी ताजा और बाहरी चोट का पता नहीं चला था, लेकिन चिकित्सा जांच रिपोर्ट पेश नहीं की गई।

घटना के लगभग 1 महीने बाद, अपीलकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302/376 के तहत आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया। जिस पर संज्ञान लेने के बाद मामला सत्र न्यायालय को सुपुर्द किया गया और मामले की सुनवाई पूरी करने के बाद अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश/फास्ट ट्रैक, अमरोहा ने अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और 376 के तहत दोषी ठहराया।

इस प्रकार उसे धारा 302 के तहत मौत की सजा दी गई और धारा 376 के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उस पर जुर्माना भी लगाया गया। चूंकि आरोपी को मौत की सजा दी गई थी, इसलिए निचली अदालत ने मौत की सजा की पुष्टि के लिए हाईकोर्ट को एक संदर्भ भेजा।

हाईकोर्ट की टिप्पणियां

हाईकोर्ट ने मुख्य रूप से पीडब्ल्यू-3 (जो पूरी घटना की चश्मदीद गवाह थी) और मृतका के पोते/ पीडब्ल्यू-4 (जो परिस्थिति के आधार पर चश्मदीद गवाह माना गया) द्वारा दिए गए बयानों का विश्लेषण किया।

पीडब्ल्यू-3 की गवाही के बारे में, कोर्ट ने कहा कि महिला ने कहा था कि जब वह अपने खेत में घास काट रही थी, उसने देखा कि अपीलकर्ता/आरोपी वहां आया और मृतका का हाथ पकड़कर उसे गन्ने के खेत में खींच कर अंदर ले गया। जब पीडब्ल्यू-3 मौके पर पहुंची तो उसने आरोपी-अपीलकर्ता को बलात्कार करते देखा और बलात्कार करने के बाद अपीलकर्ता ने पीड़िता की हत्या कर दी और यह सब देखकर वह डर गई और घर चली गई। इसके बाद उसने सारी घटना मृतका के पति/पीडब्ल्यू-1 को बता दी।

कोर्ट ने कहा कि पीडब्ल्यू-3 ने यह खुलासा नहीं किया कि क्या मृतका ने शोर मचाया था और क्या उसने मृतका की चीखें सुनीं और क्या मृतका ने आरोपी का विरोध किया?, इन परिस्थितियों में, कोर्ट ने कहा कि वह कैसे मान सकती है कि आरोपी-अपीलकर्ता ने मृतका के साथ दुष्कर्म किया था?

कोर्ट ने आगे कहा कि पीडब्ल्यू-1 ने घटना के दिन पीडब्ल्यू-3 से ऐसी कोई जानकारी मिलने से इनकार किया था, और पीडब्ल्यू-1 द्वारा दर्ज करवाई गई एफआईआर से भी यही पता चलता है।

इसलिए, समग्र रूप से उसके बयान को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने कहा कि उसकी गवाही ने विश्वास को प्रेरित नहीं किया है, और कोर्ट ने आगे निम्नलिखित निष्कर्ष निकालाः

''...वह सिर्फ संयोग से मौके पर पहुंची एक गवाह है; उसने यह नहीं बताया कि वह चीखने या रोने की आवाज सुनकर घटनास्थल पर पहुंची थी; उसने मृतक द्वारा किए गए विरोध का कोई विवरण नहीं दिया; वह इस बात का भी कोई विवरण नहीं दे पाई कि मृतका की हत्या कैसे की गई थी? उसका कहना है कि उसने घटना की जानकारी घटना के दिन ही पुलिस और पीडब्ल्यू-1 को दे दी थी, जो गलत है, बल्कि, उसने अगले दिन दाह संस्कार के बाद यह जानकारी पीडब्ल्यू-1 दी थी। उसका घर वापस जाना और फिर से पीडब्ल्यू-1 के पास जाकर घटना की जानकारी देना अप्राकृतिक लग रहा है...या तो उसने वहीं देखा था,जिसका खुलासा पीडब्ल्यू-1 ने एफआईआर में किया था, यानी दो अज्ञात व्यक्ति मृतका को गन्ने के खेत में लेकर गए थे या वह कहानी गढ़ रही है।''

इसके अलावा, कोर्ट ने पीडब्ल्यू-4 द्वारा दिए गए बयान को भी भरोसेमंद नहीं पाया और कहा कि अभियोजन पक्ष का मामला ब्लाइंड मर्डर था और मामला अनुमान या संदेह पर बनाया गया है या पुलिस के सुझाव पर मामले को हल किया गया है।

इसके अलावा, अदालत ने यह भी पाया कि मामले में जांच सही नहीं थी क्योंकि कोर्ट ने पाया कि घटनास्थल पर मृतका के शरीर के पास एक पतलून और जूते देखे गए थे, हालांकि, उन्हें जब्त नहीं किया गया था।

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष अपीलकर्ता के खिलाफ आरोपों को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है और कहा कि,

''सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सीआरपीसी की धारा 53-ए की आवश्यकता के अनुसार डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए आरोपी से रक्त और अन्य जैविक सामग्री एकत्र नहीं की गई थी। यह स्वीकार करना मुश्किल है कि यदि आरोपी-अपीलकर्ता ने बलात्कार किया था तो वह अपनी पतलून को घटनास्थल पर छोड़ गया था। डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए कोई सामग्री उपलब्ध नहीं थी। यह तथ्य जांच की प्रामाणिकता के बारे में सवाल उठाते हैं... इसके अलावा, एक वृद्ध महिला का बलात्कार, जो आरोपी के लिए एक अजनबी थी, हमें चकित करता है। इसलिए यह एक ऐसा मामला था जहां जांच एजेंसी को आपराधिक न्यायशास्त्र के मूल सिद्धांत के कारण मेहनती और चौकस होना चाहिए था, जो अपराध को और अधिक कठोर करता है और सबूतों को सख्त बनाता है। लेकिन, यहां, वैज्ञानिक प्रगति के युग में, जांच वैज्ञानिक के अलावा कुछ भी थी।''

अतः अभियुक्त को संदेह का लाभ देते हुए अपील स्वीकार कर ली गई। निचली अदालत के आक्षेपित निर्णय एवं आदेश को रद्द कर किया गया। मृत्युदंड की पुष्टि के लिए भेजे गए संदर्भ का उत्तर नकारात्मक दिया गया और मृत्युदंड की पुष्टि करने के लिए की गई प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया गया।

केस का शीर्षक- उपेंद्र बनाम यू.पी. राज्य

साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (एबी) 123

निर्णय पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



Tags:    

Similar News