जांच एजेंसी आरोपी के सोशल मीडिया खातों के यूजर नेम और पासवर्ड अपने पास नहीं रख सकतीः कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2020-11-13 11:27 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि जांच एजेंसी जांच के दरमियान आरोपी के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के यूजर नेम और पासवर्ड अपने पास नहीं रख सकती है।

न्यायालय ने कहा कि जांच एजेंसी को सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से आवश्यक डेटा डाउनलोड और इकट्ठा करना चाहिए और आरोपी को परिवर्तित लॉगिन क्रेडेंशियल्स वापस कर देना चाहिए।

ज‌स्टिस सूरज गोविंदराज की एकल पीठ ने कहा, "... एक जांच एजेंसी सोशल मीडिया/ फेसबुक और यूट्यूब जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म के यूज़र नेम और पासवर्ड अपने पास नहीं रख सकती है, जांच एजेंसी ऐसे एकाउंट से आवश्यक डेटा डाउनलोड कर सकती है और उसके बाद व्यक्ति को पर‌िवर्त‌ित क्रेडेंशियल्स वापस दे सकती है।"

कोर्ट ने ये टिप्पणियां समाचार चैनल 'पावर टीवी' के प्रबंध निदेशक और संपादक राकेश शेट्टी द्वारा दायर रिट याचिका के तहत पारित फैसले में की।

शेट्टी ने बेंगलुरु पुलिस द्वारा दर्ज एक एफआईआर को रद्द करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। शेट्टी के खिलाफ कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के परिजनों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की एक सीरीज़ चलाने के बाद एफआईआर दर्ज की गई थी।

शेट्टी ने अपनी याचिका में कहा था‌ कि सिटी क्राइम ब्रांच (CCB)ने जबरन वसूली के आरोपों की जांच के लिए उनसे फेसबुक और यूट्यूब खातों के लॉगिन क्रेडेंशियल्स साझा करने के लिए कहा था। उन्होंने पुलिस को यूज़र नेम और पासवर्ड सौंप दिए दिया, जिसके बाद सीसीबी ने सोशल मीडिया खातों के लॉगिन क्रेडेंशियल बदल द‌िए, जिससे उन खातों तक शेट्टी की पहुंच नहीं रह गई।

उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत सोशल मीडिया खातों तक पहुंच एक पत्रकार के रूप में उनके दिन-प्रतिदिन के के काम का हिस्सा है।

कोर्ट ने सहमत‌ि व्यक्त करते हुए कहा, "फेसबुक और यूट्यूब अकाउंट, याचिकाकर्ता के व्यवसाय के महत्वपूर्ण पहलू हैं, जिनसे वह दिन-प्रतिदिन के कारोबार को अंजाम देते हैं, प्रतिवादी-पुलिस जांच की ‌बिनाह पर उन खातों तक वादी की पहुंच नहीं रोक सकती है, क्योंकि याचिकाकर्ता को अपने दिन-प्रतिदिन का काम करना है। जांच के उद्देश्य से केवल डेटा की अखंडता को संरक्षित रखने की आवश्यकता होती है और ऐसा याचिकाकर्ता की उपस्थिति में उसके फेसबुक और यूट्यूब खाते से संबंधित सामग्री को डाउनलोड करके किया जा सकता....डाउनलोड किए गए डेटा को जांच के उद्देश्य से सुरक्षित रखा जा सकता है।

कोर्ट ने 7 दिनों के भीतर सीसीबी को याचिकाकर्ता के नए लॉगइन क्रेडेंशियल्स सौंपने का आदेश दिया।

न्यायालय ने शेट्टी के कार्यालय और निवास से जब्त किए गए सर्वर, लैपटॉप और हार्डडिस्क का वापस करने की भी आदेश दिया।

कोर्ट ने कहा, "ऐसे सर्वरों में केवल डेटा ही है, जिसकी जांच एजेंसी द्वारा सत्यापन के उद्देश्य के लिए आवश्यकता हैं, हार्ड डिस्क को क्लोन किया जा सकता है और मूल हार्ड डिस्क को पास रखकर, क्लोन हार्ड डिस्‍क, सर्वर, लैपटॉप, आदि को हमेशा वापस किया जा सकता है।"

न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की वापसी की मांग करने के लिए निचली अदालत में धारा 451 सीआरपीसी के तहत एक आवेदन दायर करने के लिए स्वतंत्र है।

हालांकि, पीठ ने प्राथमिकी रद्द करने की प्रार्थना को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि "यह पहले से तय नहीं किया किया जा सकता है कि याचिकाकर्ता ने कथित अपराध नहीं किए हैं"।

केस टाइटल: राकेश शेट्टी बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य [W.P.No.11169 of 2020]

कोरम: जस्टिस सूरज गोविंदराज

प्रतिनिधित्व: सीनियर एडवोकेट एएस पोन्नन्ना (याचिकाकर्ता के लिए); अतिरिक्त महाधिवक्ता ध्यान चिन्नापा और सीनियर एडवोकेट सीवी नागेश (शिकायतकर्ता के लिए)।

निर्णय डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें


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