बीमाकर्ता यह दिखाने के लिए कि दावेदार 'मुफ्त यात्री' था, कोई सामग्री ना होने पर छूट का दावा नहीं कर सकता: गुवाहाटी हाईकोर्ट

Update: 2023-02-07 02:00 GMT

Gauhati High Court

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक फैसले में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें एक व्यक्ति को 'गैर-अनुदान' यात्री ठहराकर मुआवजा देने का आदेश दिया गया था।

दावेदार एक ट्रक में यात्रा कर रहा था, वाहन के चालक ने नियंत्रण खो दिया और एक स्थिर वाहन और बिजली के खंभे को टक्कर मार दी। दावेदार के बाएं ऊपरी अंग में गंभीर चोटें आईं और बाद में दावेदार का ऊपरी अंग काट दिया गया।

मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) कामरूप, गुवाहाटी ने 02.02.2006 के एक आदेश के जरिए दावेदार को मुआवजे के रूप में 3,31,000/- रुपये की राशि प्रदान की, जिसके खिलाफ बीमा कंपनी ने मोटर वाहन अधिनियम 1988 (संशोधित रूप में) की धारा 173 की अपील दायर की।

अपील का आधार यह था कि दावेदार एक '‌‌मुफ्त' यात्री था और इसलिए वह कोई मुआवजा पाने का हकदार नहीं है। दावेदार ने निवेदन किया कि वह वाहन का दूसरा चालक था और चालक के केबिन के अंदर बैठा था जबकि दूसरा चालक वाहन चला रहा था।

अपील खारिज करते हुए जस्टिस पार्थिव ज्योति सैकिया ने कहा,

"मोटर वाहन अधिनियम, 1988 'मुफ्त यात्री' की अभिव्यक्ति को परिभाषित नहीं करता है। हालांकि, अधिनियम की धारा 147(1)(बी)(ii) सार्वजनिक स्थान पर एक माल वाहन में 'मुफ्त यात्री' के मामले में स्पष्ट रूप से छूट देती है। लेकिन मुफ्त यात्री का मतलब वह होगा जिसने लिफ्ट ली है।

अदालत ने कहा कि इस मामले में कोई सबूत नहीं है कि दावेदार एक मुफ्त यात्री था।

अदालत ने फैसले में कहा,

"अपीलकर्ता/बीमा कंपनी ने पांच कर्मचारियों के लिए प्रीमियम वसूल किया। बीमा पॉलिसी पॉलिसी द्वारा कवर किए गए कर्मचारियों के रोजगार की प्रकृति को निर्धारित नहीं करती है। इसलिए, दावेदार एक मुफ्त यात्री नहीं है।”

इसलिए, अदालत ने अपील को आधारहीन बताते हुए खारिज कर दिया और एमएसीटी के फैसले को बरकरार रखा।

केस टाइटल: न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम करुणा बर्मन और 2 अन्य।

कोरम: जस्टिस पार्थिव ज्योति सैकिया

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