सुनने की क्षमता को शत-प्रतिशत नुकसान ना हो तो कान के पर्दे में लगी चोट आईपीसी की धारा 320 के तहत 'गंभीर चोट' नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2023-04-21 15:41 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि अगर कान के परदे में लगी चोट छेद की प्रकृति है, हालांकि इससे सुनने की क्षमता में शत प्रतिशत नुकसान नहीं हुआ है, तो ऐसी चोट आईपीसी की धारा 320 (तीसरे) के अनुसार 'गंभीर चोट' नहीं है।

न्यायालय ने कहा कि ऐसी चोट (कान के परदे में छेद के कारण) को 'गंभीर चोट' श्रेणी में आने के लिए, चिकित्सा साक्ष्य के जर‌िए यह दिखाया जाना सुनने की क्षमता का सौ प्रतिशत नुकसान हो गया है।

कोर्ट ने कहा,

''देखा गया है कि यदि कान के परदे में छेद कर दिया गया हो तो कान की सुनने की क्षमता का स्थायी रूप से नुकसान नहीं होता। ऐसे मामले में निश्चित रूप से सुनने की क्षमता का कुछ नुकसान होगा, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि सुनने की क्षमता का पूरा नुकसान हो गया है। यदि इस तरह के छेद की चोट के कारण श्रवण क्षमता का शत प्रतिशत नुकसान होता है, तो निश्चित रूप से धारा 320 आईपीसी आकर्षित होगी और यदि अपराध में धारा 326 आईपीसी में उल्लि‌खित किसी खतरनाक हथियार या साधन का उपयोग किया गया, तो केवल उस मामले में धारा 326 आईपीसी लागू होगी।"

इसके साथ, जस्टिस उमेश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने एसीजेएम प्रथम, अलीगढ़ के एक आदेश को रद्द कर दिया जिसमें आरोपी आवेदकों को आईपीसी की धारा 326 (स्वेच्छा से खतरनाक हथियारों या साधनों से गंभीर चोट पहुंचाना) के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया गया था।

मौजूदा मामले में, पीठ ने कहा कि आरोपी द्वारा पीड़िता के दाहिने कान में छड़ी मारने से चोटें आई हैं, हालांकि, इसे 'गंभीर चोट' नहीं माना जाएगा क्योंकि कोई मेडिकल रिपोर्ट नहीं है कि पीड़ित के कान की सुनने की क्षमता ‌का स्थायी नुकसान हुआ है और इसलिए, यह आईपीसी की धारा 326 के तहत नहीं आता है।

वर्तमान मामले में, अभियुक्त नाजिम को एसीजेएम प्रथम, अलीगढ़ द्वारा धारा 326 के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया गया था क्योंकि यह निष्कर्ष निकाला गया था कि अभियुक्त ने पक्ष संख्या 2 श्रीमती रुखसाना के दाहिने कान में छेद कर दिया था।

संबंधित अदालत ने अपने आदेश में आईपीसी की धारा 320 और 326 के दायरे पर चर्चा करते हुए कहा कि पीड़ित को लगी चोट गंभीर प्रकृति की थी और ईएनटी सर्जन की राय में दाहिने कान के ड्रम में छेद था, इसलिए, यह एक गंभीर चोट थी।

उसी को चुनौती देते हुए, आरोपी ने इस आधार पर हाईकोर्ट का रुख किया कि पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट और पूरक मेडिकल रिपोर्ट धारा 326 आईपीसी के तहत कोई अपराध नहीं बनाती है क्योंकि चोट की प्रकृति का पता लगाने के लिए एसएसपी और सीएमओ के आदेश के बावजूद वह मेडिकल बोर्ड के सामने दोबारा मेडिकल जांच के लिए उपस्थित नहीं हुई थी।

आईपीसी की धारा 320 के दायरे और एसीजेएम के आदेश का अवलोकन करने के बाद, हाईकोर्ट ने पाया कि पीड़िता के दाहिने कान के ड्रम में छेद की प्रकृति की केवल एक चोट है, जो आईपीसी की धारा 320 (तृतीय) के अंतर्गत नहीं आता है। क्योंकि यह स्थापित करने के लिए कोई चिकित्सा साक्ष्य नहीं है कि दाहिने कान की सुनवाई का स्थायी नुकसान ‌है।

अदालत ने आगे कहा कि नाज़िम द्वारा पीड़िता के दाहिने कान में छड़ी से लगी चोट को गंभीर चोट नहीं कहा जा सकता है क्योंकि ऐसी कोई मेडिकल रिपोर्ट नहीं है कि उसके दाहिने कान में सुनने की क्षमता का स्थायी नुकसान हुआ है। साथ ही यह भी नहीं कहा जा सकता कि ऐसी चोट धारा 326 आईपीसी के तहत आती है।

इसके साथ ही अदालत ने समन आदेश को निरस्त करते हुए आरोपी के आवेदन को स्वीकार कर लिया।

केस टाइटलः नाजिम और चार अन्य बनाम यूपी राज्य और दूसरा [Appl U/S 482 No. - 19835 of 2019]

केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 132

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