वैवाहिक मुकदमे के स्थानांतरण पर विचार करने के दौरान पत्नी की असुविधा को मुख्य माना जाना चाहिए : कलकत्ता हाईकोर्ट

Update: 2020-01-17 04:15 GMT

Calcutta High Court

सीपीसी की धारा 24 के तहत दायर एक स्थानांतरण याचिका पर सुनवाई के दौरान कलकत्ता हाईकोर्ट ने फैसला दिया है कि यदि वैवाहिक मुकदमों की कार्यवाही के दौरान पत्नी द्वारा इस तरह के स्थानांतरण की मांग की जाती है, तो अदालत को याचिका का फैसला करते समय, महिला को होने वाली असुविधा को ध्यान में रखना चाहिए। ।

न्यायमूर्ति बिबेक चौधरी द्वारा दिए गए निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अगर एक पत्नी द्वारा विवाह के मुकदमे में स्थानांतरण की मांग की जाती है, तो अदालत की कार्यवाही में शामिल होने के लिए पत्नी को हो रही असुविधा, स्थानांतरण की मांग को तय करने में एक महत्वपूर्ण कारक होगी।

विशेष रूप से यह निर्णय हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में किए गए अवलोकन के विपरीत है, जिसमें कहा गया था कि केवल पत्नी को अदालत में उपस्थित होने में हो रही असुविधा के आधार पर किसी वैवाहिक मुकदमे को दूसरी अदालत में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।

पिछले साल, दीपिका अग्रवाल बनाम ऋषि अग्रवाल मामले में, हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था,

''सिर्फ इसलिए कि पत्नी को अलीपुर की कोर्ट में उपस्थित होने में असुविधा महसूस होती है, यह अलीपुर कोर्ट से वैवाहिक मुकदमा वापस लेने और इसे बीरभूम जिले में स्थानांतरित करने के लिए कोई आधार नहीं है।''

वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता-पत्नी ने उसके पति द्वारा जलपाईगुड़ी में द्वारा दायर की गई तलाक की याचिका को दुर्गापुर में स्थानांतरित करने की मांग की थी, जहां वह अपने माता-पिता के साथ रहती थी। उसने दलील दी थी कि दुर्गापुर और जलपाईगुड़ी के बीच की दूरी 600 किलोमीटर से अधिक की है, यात्रा के लिए इस तरह के खर्च को वहन करना उसके लिए आर्थिक रूप से संभव नहीं है।

याचिका को अनुमति देते हुए हाईकोर्ट ने कहा,

''उसकी खुद की कोई आय नहीं है। वह अपने माता-पिता पर पूरी तरह से निर्भर है। दूसरी पार्टी ने उसके और बेटे के लिए भरण पोषण का भुगतान नहीं किया है। ऐसी परिस्थितियों में, याचिकाकर्ता को दुर्गापुर से जलपाईगुड़ी की यात्रा करने के लिए निश्चित रूप से असुविधा होगी। जिसकी एक तरफ की दूरी लगभग 600 किमी की है।''

हाईकोर्ट ने महिला की उस याचिका को भी स्वीकार कर लिया है, जिसमें उसके पति द्वारा दायर चाइल्ड कस्टडी की याचिका को भी स्थानांतरित करने की मांग की गई थी।

संरक्षक और प्रतिपाल्‍य अधिनियम ( Guradians and Wards Act) की धारा 9 का उल्लेख करते हुए, अदालत ने कहा कि-

''तात्कालिक मामले में पक्षकारों का नाबालिग बच्चा सामान्यता अपनी मां के साथ दुर्गापुर में रहता है। वह बिधन स्कूल, दुर्गापुर का छात्र है। इसलिए, अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, दुर्गापर की अदालत को प्रतिपाल्‍य अधिनियम ( Guradians and Wards Act)1890 की धारा 9 के तहत इस तरह की मिश्रित याचिका पर सुनवाई का अधिकार क्षेत्र है।

वहीं नाबालिग बच्चे के कल्याण के लिए, उक्त विविध मामले को सुनवाई और निपटाने के लिए दुर्गापुर स्थानांतरित किया जाना चाहिए।''

अधिनियम की धारा 9 (1 ) में कहा गया है कि-

''यदि आवेदन नाबालिग व्यक्ति की संरक्षकता के संबंध में है, तो यह उस स्थान की जिला न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में किया जाएगा ,जहां नाबालिग सामान्य रूप से रहता है।'' 


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