लोकतंत्र में यदि पुलिस एक वकील पर अत्याचार कर सकती है तो आम आदमी का क्या हाल होगा : एपी हाईकोर्ट ने पूछा
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राकेश कुमार और न्यायमूर्ति के सुरेश रेड्डी की खंडपीठ ने सोमवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान अपनी टिप्पणी में कहा, "एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में, अगर सरकार का एक अधिकारी इस तरह का अत्याचार एक वक़ील के साथ कर सकता है जो अदालत का कर्मचारी है, तो यह अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है कि आम लोगों का क्या होगा।"
अदालत यह एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी जो एक वक़ील को ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से हिरासत में रखने के ख़िलाफ़ दायर की गई थी।
पीठ ने कहा कि यह वास्तव में अफ़सोसनाक है कि वक़ील की पत्नी ने इस अदालत का दरवाज़ा खटखटाया है कि उसके पति के को अदालत में हाज़िर किया जाए।
वक़ील की पत्नी ने अदालत से अपनी शिकायत में कहा कि उसके पति पाइला सुभाष चंद्र बोस को एक बजे रात को जब वह अपने घर में सो रहा था, कुछ पुलिसवाले उसके घर में ज़बर्दस्ती घुस कर उठा ले गए।
पीठ ने यह बताने पर चिंता व्यक्त की कि आरोप लगाया गया है कि जब पुलिसवाले से इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि कारण पुलिस थाने में बताया जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को यह भी नहीं पता है कि उसके पति को कहां रखा गया है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,
"याचिककर्ता का कहना है कि उसके पति को नियमित रूप से एक पुलिस इन्स्पेक्टर धमकी देता था जिसके ख़िलाफ़ वक़ील ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में 14 जुलाई को शिकायत दर्ज करायी थी। ऐसे आरोप हैं कि यह घटना 'किसी राजनीतिक कारण' से हुई है।"
कोर्ट ने कहा कि इस स्थिति में वह पुलिस अधीक्षक को यह निर्देश देने के लिए बाध्य है कि वह महिला के पति को सशरीर कोर्ट में पेश करे।
पीठ ने पुलिस को इस बात की सफ़ाई अदालत में पेश करने को कहा कि ऐसी कौन सी परिस्थिति थी कि किसी नियम को नहीं मानते हुए वैधानिक प्रावधानों के ख़िलाफ़ एक बजे रात को याचिकाकर्ता के घर में बिना किसी अनुमति के वे घुस गए।
कोर्ट ने कहा कि इससे पहले ग़ैरक़ानूनी हिरासत के इसी तरह के एक मामले में खुद पुलिस महानिदेशक को अदालत में बुलाया गया था और उन्होंने आश्वासन दिया था कि दोबारा इस तरह की घटना नहीं होगी।