चूंकि वह मनोरोगी है,सिर्फ इसलिए पति व परिवार के सदस्य महिला के साथ गुलाम की तरह व्यवहार नहीं कर सकतेः उड़ीसा हाईकोर्ट
‘‘यहां तक कि शिकायतकर्ता-पीड़िता की मनोवैज्ञानिक बीमारी के आरोप भी याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों को किसी भी दया और मानवीय करुणा से परे गुलाम की तरह व्यवहार करने का अधिकार नहीं देते हैं।’’
कथित तौर पर अपनी पत्नी (शिकायतकर्ता-पीड़िता) से क्रूरता करने के मामले में आरोपी एक पति को नियमित जमानत देने से इनकार करते हुए उड़ीसा हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह कहा कि एक महिला के साथ सिर्फ इस आधार पर किसी भी ''दया और मानवीय करुणा से परे गुलाम'' की तरह व्यवहार नहीं किया जा सकता है क्योंकि वह कथित तौर पर एक मनोरोगी है।
न्यायमूर्ति एस के पाणिग्रही की खंडपीठ ने विशेष रूप से कहा कि,
''यहां तक कि शिकायतकर्ता-पीड़िता की मनोवैज्ञानिक बीमारी के आरोप भी याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों को किसी भी दया और मानवीय करुणा से परे गुलाम की तरह व्यवहार करने का अधिकार नहीं देते हैं।''
न्यायालय के समक्ष मामला
याचिकाकर्ता-पति ने सीआरपीसी की धारा 439 के तहत तात्कालिक आवेदन दायर किया और आईपीसी की धारा 498-ए (एक महिला के पति या रिश्तेदार द्वारा उसके साथ क्रूरता करना), 294 (अश्लील हरकतें और गाने), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के लिए सजा), 307 (हत्या का प्रयास), 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा), 34 के तहत दंडनीय अपराधों के सिलसिले में दर्ज केस में जमानत दिए जाने की मांग की थी।
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, शिकायतकर्ता/पीड़िता/ पत्नी ने 20 फरवरी 2015 को वर्तमान याचिकाकर्ता-पति से शादी की थी।
शादी के दो साल बाद उसके साथ कथित रूप से क्रूरता की जाने लगी और 10 लाख रुपये दहेज की मांग की गई और पैसा न लाने की स्थिति में उसे जिंदा जलाने की धमकी दी गई।
लगातार की जाने वाली मांग और बेटी से की गई क्रूरता की वजह से शिकायतकर्ता पिता ने कुछ किश्तों में 2-4 लाख रुपये दे दिए।
आगे आरोप लगाया गया कि 06 जून 2020 को रात में लगभग 11 बजे पीड़िता के साथ उसके पति, सास और सिस्टर इन लाॅ ने दुराचार किया और धारदार लकड़ी से हमला कर उसकी जान लेने की धमकी दी।
कथित तौर पर, उसकी सास और सिस्टर इन लाॅ ने उसके निजी अंग में 'बैदंका' (जहरीला बीजाणु वाला पौधा) लगाया और बाद में याचिकाकर्ता-पति ने उस पर मिट्टी का तेल डाला और उसे आग लगा दी।
हालांकि उसने जलते हुए कपड़े निकाल दिए और मौके से भाग गई और किसी तरह खुद को बचाया और उसके बाद शिकायतकर्ता ने प्राथमिकी दर्ज कराई।
न्यायालय का अवलोकन
याचिकाकर्ता के वकील द्वारा प्रस्तुत किया गया कि शिकायतकर्ता एक मनोरोगी रोगी है। इस दलील पर न्यायालय ने कहा कि यह तथ्य उसके पति और परिवार के सदस्यों को उसके साथ गुलाम की तरह व्यवहार करने का अधिकार नहीं देता है।
न्यायालय ने यह देखते हुए कि मामले में जांच अभी भी चल रही है, कहा कि,
''एफआईआर को पढ़ने के बाद यह प्रतीत होता है कि प्रथम दृष्टया भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध निश्चित रूप से किए गए हैं, हालांकि इन पर पूरी तरह से ट्रायल की आवश्यकता है। मौजूदा मामले में दायर एफआईआर और चार्जशीट को देखने के बाद यह पता चलता है कि याचिकाकर्ता के परिवार के हर उस सदस्य के खिलाफ बहुत विशिष्ट आरोप लगाए हैं, जिन्हें आरोपी बनाया गया है।''
कोर्ट ने आगे कहा,
''एफआईआर और आरोप-पत्र को समग्र रूप से पढ़ने के बाद इस निष्कर्ष पर आना संभव नहीं है कि वे लगाए गए आरोपों के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ एक प्रथम दृष्टया मामला भी नहीं बनाते हैं।''
अंत में, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की हिरासत की अवधि उसे उस तरह के अपराध में जमानत पर रिहा करने का आधार नहीं बन सकती है,जिस अपराध ने सामाजिक संरचना को हिला दिया हो।
उपरोक्त के मद्देनजर, जमानत आवेदन को खारिज कर दिया गया था।
केस का शीर्षक - दीपक भूटिया बनाम ओडिशा राज्य [BLAPL No.5701 OF 2020]
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