(ऑनर किलिंग)' एसआईटी द्वारा फास्ट ट्रैक इन्वेस्टिगेशन की जरूरत है', पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने लंबित मामलों का विवरण मांगा

Update: 2020-10-31 03:45 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार (26 अक्टूबर) को हरियाणा के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को निर्देश दिया है कि वह एक हलफनामा दायर करके बताएं कि राज्य में दर्ज ऑनर किलिंग के कितने मामले ऐसे हैं, जिनमें अभी सुनवाई या जांच अभी लंबित है और इन मामलों को फास्ट-ट्रैक करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।

न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी की खंडपीठ ने राज्य के डीजीपी को यह भी निर्देश दिया है कि वह बताएं कि ऐसे मामलों में जीवित रहने वाली पत्नी या पति और अन्य महत्वपूर्ण गवाहों (जो परिस्थितिजन्य साक्ष्य की श्रृंखला को पूर करने और अभियुक्तों को ऐसे जघन्य अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराने में मदद करते हैं।)की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।

न्यायालय के समक्ष मामला

बेंच इस मामले में दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 439 के तहत दायर तीसरी याचिका पर सुनवाई कर रही है। यह याचिका भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 285, 148, 149, 452, 364, 365, 302, 201 और 120-बी ,आम्र्स एक्ट, 1959 की धारा 25 के तहत पुलिस स्टेशन भट्टू कलां, जिला फतेहाबाद में दर्ज एफआईआर नंबर 126 के संबंध में दायर की गई है।

प्राथमिकी सुनीता रानी और धर्मबीर के अपहरण के मामले में दर्ज की गई थी। राय सिंह ने यह शिकायत एक जून 2018 को दर्ज कराई थी। बाद में धर्मबीर की उन लोगों ने हत्या कर दी थी,जिन्होंने उसका अपहरण किया था।

विशेष रूप से, इस मामले में आरोप यह है कि धर्मबीर की ऑनर किलिंग हुई थी। उसकी हत्या उन व्यक्तियों ने की थी,जिनके सम्मान को धर्मबीर ने ठेस पहुंचाई थी क्योंकि धर्मबीर ने उनके एक रिश्तेदार की बेटी सुनीता रानी (सीता राम की बेटी) के साथ शादी कर ली थी।

सुनीता के बयानों को सीआरपीसी के 164 के तहत दो बार दर्ज किया गया था। उसने भी उन व्यक्तियों का नाम लिया था जिनके साथ उसने अपने पति धर्मबीर को आखिरी बार देखा था।

अदालत ने कहा कि वह अभियुक्तों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण गवाह है या जिनमें से अधिकांश उसके रिश्तेदार है,इस तथ्य के बावजूद कि भी उसकी सुरक्षा के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए।

पुलिस ने अपने जवाब में बताया था कि उपरोक्त अपराध के मामले में 15 अभियुक्त शामिल थे, जिनमें से अब तक 12 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि नेकी राम, बलवंत और शेर सिंह नामक तीन आरोपी अभी भी फरार हैं,जबकि इस घटना को दो साल हो चुके हैं।

अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस ने अपने जवाब में इस बात का कोई उल्लेख नहीं किया है कि उन्हें भगौड़ा अपराधी घोषित करने और उनकी संपत्तियों की कुर्की और बिक्री के बारे में क्या कदम उठाए गए हैं।

साथ ही न्यायालय ने कहा कि इस अपराध में सुनाती के पिता, भाई (यदि कोई हो), और अन्य परिवार के सदस्यों की क्या भूमिका थी,उसके बारे में भी कोई उल्लेख नहीं किया गया था।

कोर्ट का आदेश

हाईकोर्ट ने 'भगवान दास बनाम दिल्ली राज्य (एनसीटी) 2011 (2) आरसीआर(आपराधिक) 920' के मामले में शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए फैसले का भी हवाला दिया। जिसमें न्यायालय ने उल्लेख किया था कि,

''22. इस मामले में आगे बढ़ने से पहले हम यह बताना चाहेंगे कि देश के कई हिस्सों में, खासकर हरियाणा, पश्चिमी यूपी और राजस्थान में 'आॅनर' किलिंग हत्याएं आम हो गई हैं। अक्सर प्यार में पड़ने वाले युवा जोड़ों को पुलिस लाइन या सरंक्षण गृहों में आश्रय लेना पड़ता है ताकि वह कंगारू कोर्ट के प्रकोप से बच सकें। हमने लता सिंह के मामले (सुप्रा) में माना है कि 'आॅनर' किलिंग में 'सम्मानजनक' कुछ भी नहीं है। ऐसे मामले कुछ और नहीं बल्कि कट्टर और सामंगी दिमाग वाले व्यक्तियों द्वारा की गई बर्बर और क्रूर हत्याएं हैं।

23. हमारी राय में आॅनर किलिंग , किसी भी कारण से, दुर्लभतम मामलों में श्रेणी में आती हैं, जो मौत की सजा के योग्य हैं। अब समय आ गया है कि इन बर्बर, सामंती प्रथाओं पर रोक लगाई जाए, जो हमारे देश पर एक धब्बा हैं। इस तरह के अपमानजनक, असभ्य व्यवहार के लिए कड़ा उपाय आवश्यक है। जो भी लोग 'आॅनर किलिंग' की योजना बना रहे हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि फांसी उनका इंतजार कर रही है।''

इस संदर्भ में, हाईकोर्ट ने कहा कि,

''ऑनर किलिंग से जुड़े मामलों में विशेष जांच टीमों द्वारा फास्ट ट्रैक जांच की जाने की आवश्यकता है। इन टीम में विशेषज्ञता वाले सदस्यों को शामिल किया जाना चाहिए,जो बिना किसी देरी के और अपराधियों के साथ अनुचित सहानुभूति दिखाए बिना मामले की जांच पूरी करें। वहीं उपलब्ध परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को एकत्रित करने के लिए गंभीर समर्पित प्रयास करते हुए जीवित व्यक्ति-पत्नी या पति और अन्य महत्वपूर्ण गवाहों की सुरक्षा के लिए उचित कदम उठा सकें। साथ ही न्यायालय के समक्ष अभियोजन पक्ष के गवाहों की उपस्थिति को सुनिश्चित करते हुए मामले के शीघ्र निस्तारण में मदद कर सकें।''

अंत में, न्यायालय ने निर्देश दिया है कि आदेश की प्रतिलिपि अपेक्षित अनुपालन के लिए पुलिस महानिदेशक, हरियाणा को भेज दी जाए। डीजीपी को 10 नवंबर तक संबंधित विवरण प्रस्तुत करना होगा।

दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट की 2 जजों की बेंच, जिसमें जस्टिस काजी फैज ईसा और जस्टिस सरदार तारिक मसूद शामिल हैं, ने हाल ही में कहा था कि ''आॅनर के नाम पर महिलाओं की हत्या करना कभी भी एक सम्मानजनक प्रथा नहीं थी और ऐसी हत्याओं को आॅनर किलिंग के नाम से श्रेणीबद्ध नहीं किया जाना चाहिए।''

पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह भी कहा गया है कि चरमपंथ और हिंसा ने पाकिस्तानी समाज में प्रवेश कर लिया हैै और यह क्रूरतापूर्ण है। यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए जा रहे हैं कि महिलाओं के खिलाफ अपराध न हों।

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