समय आ गया है कि लोक अभियोजकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करें ताकि उन्हें प्रक्रियात्मक कानून से अवगत कराया जा सकेः मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने यह देखते हुए कि क्रॉस एक्जामिनेशन के दरमियान सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज बयान के निष्कर्ष को ठोस सबूत नहीं माना जा सकता है, ट्रायल कोर्ट की ओर से तीन हत्याओं के आरोपियों को दी गई उम्रकैद की सजा के आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने दोहराया कि आपराधिक मुकदमे में गवाहों द्वारा शपथ पर दिए गए सबूत ठोस सबूत हैं।
कोर्ट ने कहा,
"... इसलिए, गवाह से जिरह के बहाने लोक अभियोजक द्वारा 161 (3) सीआरपीसी में निहित बयान को दोहराना कभी भी ठोस सबूत नहीं हो सकता है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि गवाहों से शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने और जिरह करने का उद्देश्य कुछ सामग्री प्राप्त करना या गवाहों से सच्चाई का पता लगाना है।"
जस्टिस आर सुब्रमण्यम और जस्टिस एन सतीश कुमार की खंडपीठ ने बताया कि सीआरपीसी की धारा 161(3) के तहत गवाहों का बयान क्रॉस एग्जामिनेशन के दरमियान गवाहों के समक्ष इस निष्कर्ष के साथ रखा गया था कि जो गवाह पक्षद्रोही हो गए थे, उन्होंने आरोपी व्यक्तियों को दोषमुक्त करने के लिए झूठे सबूत दिए।
अभियोजन द्वारा अपनाई गई इस प्रकार की पद्धति के बारे में, अदालत ने कहा, "यहां तक कि यह मानते हुए कि गवाहों ने जिरह में स्वीकार कर लिया है कि उन्होंने जांच अधिकारी के सामने उपरोक्त बयान दिया है, ऐसे साक्ष्य केवल एक विशेष तथ्य को साबित करने के लिए उपयोगी होंगे कि उक्त गवाह ने धारा 161(3) सीआरपीसी के तहत बयान दिया है, किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं।"
अदालत ने आरोपी की अपील को स्वीकार करते हुए एक और प्रासंगिक टिप्पणी की, "अभियोजन एजेंसियों के लिए समय आ गया है कि वे लोक अभियोजकों के लिए क्षेत्र के अनुभवी क्रिमिनल लॉयर्स और सीनियर्स के साथ प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करें ताकि उन्हें प्रक्रियात्मक कानून से अवगत कराया जा सके।"
अदालत ने यह भी कहा कि जिरह का उद्देश्य गवाहों से प्रासंगिक उत्तर प्राप्त करना है, जो आरोपी के अपराध को स्थापित करते हैं। एकल पीठ ने नोट किया कि पक्षद्रोही गवाहों के साक्ष्य पूरी तरह से मूल्य रहित नहीं हैं और यदि यह अदालत के विश्वास को प्रेरित करता है तो इसे अन्य पुष्ट साक्ष्य के साथ माना जा सकता है। कोर्ट ने कहा, हालांकि मामले में बुलाए गए गवाह आरोपी के अपराध को साबित नहीं करते हैं।
कोर्ट ने कहा,
"... 161(3) बयान की केवल मैकेनिकल टाइपिंग और एक सामान्य सुझाव दर्ज करना, जैसे कि गवाह झूठ बोल रहा है, को कभी भी सबूत के रूप में नहीं माना जा सकता है। इसलिए, विद्वान ट्रायल जज का निष्कर्ष कि गवाहों ने घटना को स्वीकार किया है, अदालत ने कहा कि ट्रायल जज की कल्पना के अलावा और कुछ नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्षों के कारण, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि निचली अदालत ने सेक्शन 161(3) के बयान पर दोषसिद्धि कर एक 'मौलिक त्रुटि' की है। चूंकि अभियोजन पक्ष के 17 गवाहों में से किसी ने भी किसी भी तरह से अभियोजन पक्ष का समर्थन नहीं किया, इसलिए निचली अदालत द्वारा दोषसिद्धि को रद्द कर दिया गया।
केस शीर्षक: कन्नन @ मन्नानई कन्नन और अन्य बनाम राज्य पुलिस निरीक्षक के माध्यम से
केस नंबर: Crl.A.(MD)No.3 of 2020, Crl.M.P.(MD)No.1422 of 2022 & Crl.A.(MD)No.22 of 2022
सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (मद्रास) 84