इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुचित पुनर्मूल्यांकन करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को उच्चस्तरीय और अनुचित पुनर्मूल्यांकन आदेश जारी करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने कहा कि केंद्र सरकार या सीबीडीटी के स्तर पर एक महीने के भीतर निगरानी प्रकोष्ठ स्थापित करना सुनिश्चित किया जाए। प्रकोष्ठ स्थानीय समितियों की नियमित निगरानी के साथ-साथ प्रधान मुख्य आयकर आयुक्तों और क्षेत्रीय सदस्यों द्वारा अनुवर्ती कार्रवाई और समीक्षा के साथ-साथ तिमाही रिपोर्टों का विश्लेषण सुनिश्चित करेगा।
अदालत ने कहा,
"इस न्यायालय में अक्सर रिट याचिकाएं दायर की जा रही हैं जिनमें आक्षेपित आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के गैर-पालन को दर्शाते हैं, यहां तक कि निर्धारितियों द्वारा प्रस्तुत उत्तरों पर भी अधिनियम, 1961 के तहत शासकीय के साथ-साथ गैर-शासकीय तरीके से मूल्यांकन अधिकारियों द्वारा विचार नहीं किया जा रहा है।"
याचिकाकर्ता/निर्धारिती ने प्रस्तुत किया कि विचाराधीन भूमि के दो टुकड़े संयुक्त रूप से सात लोगों के स्वामित्व में है। याचिकाकर्ता और दुष्यंत भाटी भी कृषि भूमि के सह-मालिक है, जिसे दो अलग-अलग रजिस्टर्ड बिक्री विलेखों द्वारा बेचा गया था। इसी कारण याचिकाकर्ता और उसके बेटे दुष्यंत भाटी के खिलाफ अधिनियम, 1961 की धारा 148 के तहत कार्यवाही शुरू की गई है। नेशनल फेसलेस असेसमेंट सेंटर, दिल्ली द्वारा दुष्यंत भाटी के संबंध में अधिनियम, 1961 की धारा 144 बी सपठित धारा 147 के तहत आकलन आदेश, उनके इस दावे को स्वीकार करते हुए पारित किया गया कि विचाराधीन भूमि को कृषि भूमि से नगरपालिका सीमा के 8 किमी. परे स्थित कृषि भूमि के रूप में स्वीकार किया गया था।
इस प्रकार, निर्धारण वर्ष 2013-14 के विवरणियों में प्रकट आय को स्वीकार कर लिया गया और विचाराधीन भूमि की बिक्री के संबंध में कोई कर नहीं लगाया गया।
दूसरी ओर, राष्ट्रीय फेसलेस असेसमेंट सेंटर, दिल्ली द्वारा पारित अधिनियम, 1961 की धारा 144 बी सपठित धारा 147 के तहत पुनर्मूल्यांकन आदेश में पूरी तरह से विपरीत दृष्टिकोण लिया गया है। पुनर्मूल्यांकन आदेश के अनुसार, याचिकाकर्ता की संबंधित भूमि के संबंध में विचाराधीन भूमि के 1/7वें हिस्से को इस निष्कर्ष पर दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ के रूप में निर्धारित किया गया कि विचाराधीन भूमि कृषि भूमि नहीं है। प्रतिवादियों ने उसी भूमि के संबंध में याचिकाकर्ता के पुत्र के दावे को स्वीकार कर लिया। दूसरी ओर, उसी भूमि के संबंध में याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए स्टैंड को खारिज कर दिया गया और कृषि भूमि की बिक्री आय को दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ के रूप में मूल्यांकन किया गया।
सीबीडीटी ने स्वयं जारी निर्देश/परिपत्र दिनांक 09.11.2015 में नोट किया कि करदाताओं द्वारा उठाई जा रही शिकायतों के कारण उच्च-स्तरीय और अनुचित मूल्यांकन आदेश तैयार करने की प्रवृत्ति अभी भी बनी हुई है। इस तरह की शिकायतें न केवल करदाताओं के उत्पीड़न को दर्शाती हैं बल्कि विभाग के साथ-साथ अपीलीय अधिकारियों के लिए अनुत्पादक काम भी पैदा करती हैं। 9 नवंबर, 2015 के निर्देशों के तहत निर्धारण अधिकारियों द्वारा किए गए उच्च-स्तरीय और अनुचित परिवर्धन के कारण करदाताओं की शिकायतों को जल्दी से हल करने के लिए स्थानीय समितियों का गठन किया गया। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि उच्च-स्तरीय और अनुचित मूल्यांकन आदेश तैयार करने की प्रवृत्ति अभी भी बनी हुई है, जैसा कि उत्तरदाताओं ने भी स्वीकार किया है। इसके परिणामस्वरूप इसे वैधानिक समर्थन देने के निर्देश जारी किए गए हैं।
अदालत ने कहा कि करदाता देश की अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक हैं। उनका उत्पीड़न न केवल देश की अर्थव्यवस्था और रोजगार को झटका देता है बल्कि सरकार की आर्थिक नीतियों के बीच भी आड़े आता है, जिसमें 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' की नीति भी शामिल है।
केस टाइटल: हरीश चंद्र भाटी बनाम प्रधान आयकर आयुक्त नोएडा
साइटेशन: रिट टैक्स नंबर - 2022 का 465
दिनांक: 19.05.2022
याचिकाकर्ता के वकील: एडवोकेट आशीष बंसा
प्रतिवादी के लिए वकील: एडवोकेट गौरव महाजन, एडवोकेट अरविंद कुमार गोस्वामी
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