हाईकोर्ट एएंडसी एक्ट की धारा 11 के तहत पारित आदेश पर पुनर्विचार नहीं कर सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2022-12-08 04:54 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि हाईकोर्ट एएंडसी एक्ट की धारा 11 के तहत पारित आदेश पर पुनर्विचार नहीं कर सकता, क्योंकि एक्ट में समीक्षा का कोई प्रावधान नहीं है।

जस्टिस नीना बंसल कृष्ण की पीठ ने कहा कि पुनर्विचार की शक्ति एक अंतर्निहित शक्ति नहीं है, बल्कि एक क़ानून का निर्माण है, इसलिए प्रावधान के अभाव में इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 137 के तहत पुनर्विचार की अंतर्निहित शक्ति मौजूद होती है, लेकिन इसके उलट हाईकोर्ट को ऐसी कोई शक्ति प्रदान नहीं की जाती है।

कोर्ट ने माना कि एक बार मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए एक अर्जी पर विचार किया जाता है और उसे खारिज कर दिया गया है, तो उसे परोक्ष विधि यानी पुनर्विचार याचिका द्वारा फिर से नहीं खोला जा सकता है।

तथ्य

सीपीसी की धारा 114 के साथ पठित आदेश XLVI नियम 1 आर/डब्ल्यू के तहत पुनर्विचार याचिका दिनांक 12.10.2022 के आदेश/निर्णय के खिलाफ दायर की गई थी, जिसके द्वारा हाईकोर्ट ने एएंडसी एक्ट की धारा 11 के तहत पुनर्विचार याचिकाकर्ता द्वारा दायर आवेदन को क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के आधार पर खारिज कर दिया था। आदेश/निर्णय से परेशान होकर याचिकाकर्ता ने आक्षेपित आदेश के विरुद्ध पुनरीक्षण याचिका दायर की।

चुनौती का आधार

याचिकाकर्ता ने निम्नलिखित आधार पर आदेश को चुनौती दी:

कोर्ट इस बात का आकलन करने में विफल रहा है कि मध्यस्थता के 'लोकेशन' का पदनाम मध्यस्थता की 'सीट' के समान है, इसलिए, मध्यस्थता की सीट नयी दिल्ली थी और कोर्ट को याचिका पर विचार करने का अधिकार था।

कोर्ट ने पुनर्विचार याचिकाकर्ता की दलीलों का आकलन न करने में त्रुटि की, जिसके परिणामस्वरूप कोर्ट ने कोऑर्डिनेट बेंच के एक निर्णय की अनदेखी की, जिसने एक समान मध्यस्थता खंड से निपटा और निष्कर्ष निकाला कि उसके पास अधिकार क्षेत्र मौजूद था।

विशिष्ट क्षेत्राधिकार खंड एक मध्यस्थता खंड को ओवरराइड नहीं कर सकता।

इस प्रकार, हाईकोर्ट ने एक त्रुटि की है जो रिकॉर्ड के अनुसार स्पष्ट है।

प्रतिवादी ने निम्नलिखित आधार पर याचिका की स्वीकार्यता पर आपत्ति दर्ज कराई :

एएंडसी एक्ट के तहत पुनर्विचार का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए, याचिका खारिज करने योग्य है।

कोर्ट का विश्लेषण

कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट एएंडसी एक्ट की धारा 11 के तहत पारित आदेश की पुनर्विचार नहीं कर सकता, क्योंकि एक्ट में पुनर्विचार का कोई प्रावधान नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि पुनर्विचार की शक्ति एक अंतर्निहित शक्ति नहीं है, बल्कि एक क़ानून का निर्माण है, इसलिए प्रावधान के अभाव में इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 137 के तहत पुनर्विचार की अंतर्निहित शक्ति मौजूद होती है, लेकिन इसके उलट हाईकोर्ट को ऐसी कोई शक्ति प्रदान नहीं की जाती।

कोर्ट ने माना कि एक बार मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए एक अर्जी पर विचार किया जाता है और उसे खारिज कर दिया गया है, तो उसे परोक्ष विधि यानी पुनर्विचार याचिका द्वारा फिर से नहीं खोला जा सकता है।

कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए विवाद एक अपील के दायरे में हैं, क्योंकि कोर्ट के निष्कर्षों को गुण-दोष के आधार पर चुनौती दी गई है, जिसे 'रिकॉर्ड में स्पष्ट त्रुटि' के दायरे में नहीं लाया जा सकता है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि 'लोकेशन' मध्यस्थता की 'सीट' नहीं बन जाएगा, जहां मध्यस्थता खंड में कुछ विपरीत संकेत मौजूद हैं। कोर्ट ने माना कि समझौता गुड़गांव कोर्ट को विशेष अधिकार क्षेत्र प्रदान करता है जो एक विपरीत संकेत के समान है।

तदनुसार, कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी।

केस टाइटल: कुश राज भाटिया बनाम मेसर्स डीएलएफ पावर एंड सर्विसेज लिमिटेड एआरबी. पी 869/2022

दिनांक: 06.12.2022

पुनर्विचार याचिकाकर्ता के वकील: एडवोकेट श्री अखिल सालहर, श्री सुनंदा तुलस्यान और श्री अर्नव पाल सिंह।

प्रतिवादी के वकील: एडवोकेट सुश्री मेघना मिश्रा और श्री तरुण शर्मा ।

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