केवल उत्पीड़न के आरोप से आईपीसी की धारा 306 आकर्षित नहीं होतीः आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने अपने-अपने पतियों को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में दो महिलाओं को अग्रिम जमानत दी

Update: 2022-08-08 12:00 GMT

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने दो अलग-अलग मामलों में उन दो महिलाओं को अग्रिम जमानत दे दी है,जिन पर उनके पतियों को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया है।

जस्टिस सुब्बा रेड्डी की एकल पीठ ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कृत्यों का सबूत होना चाहिए। यह भी नोट किया गया कि आरोपी की ओर से घटना के समय के करीब कोई सकारात्मक कार्रवाई किए बिना, जिसके कारण किसी अन्य व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित किया गया हो या मजबूर किया गया हो,भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत दोषसिद्धि केवल उत्पीड़न के आरोपों पर कायम नहीं रह सकती है।

आपराधिक याचिका संख्या 4279/2022 में, न्यायालय ने पाया कि शिकायत में याचिकाकर्ता द्वारा मृतक को आत्महत्या करने के लिए उकसाने का कोई संकेत नहीं दिया गया है।

इस मामले में आरोप लगाया गया है कि याचिकाकर्ता-पत्नी अपने मृत पति से झगड़ा करती थी, दोस्तों के सामने उसे परेशान करती थी और यहां तक कि उसके विवाहेत्तर संबंध भी थे।

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के ससुर ने केवल यह आरोप लगाया है कि वह मृतक को परेशान करती थी। उकसाने का कोई विशेष आरोप नहीं लगाया गया है। इसके अलावा, कोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस दलील को दर्ज किया कि आईपीसी की धारा 498ए के तहत उसके द्वारा शिकायत दर्ज कराने के बाद यह मामला जवाबी कार्रवाई के रूप में दर्ज करवाया गया है।

इसी तरह आपराधिक याचिका संख्या 5444/2022 में याचिकाकर्ता के ससुर (मृतक के पिता) ने यह आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी कि उसके बेटे ने अपने ससुराल वालों के दबाव और उत्पीड़न के कारण ऐसा कदम उठाया था। अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा कोई उकसावा नहीं किया गया था, जिसके कारण मृतक ने आत्महत्या की और धारा 306 की सामग्री प्रथम दृष्टया साबित हो रही हो।

दोनों मामलों में, कोर्ट ने जियो वर्गीस बनाम राजस्थान राज्य व अन्य और एम. मोहन बनाम तमिलनाडु राज्य के मामलों का उल्लेख किया और माना कि, आईपीसी की धारा 306 के तहत एक आरोपी को अपराध का दोषी ठहराने से पहले, न्यायालय को यह पता लगाने के लिए मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की गंभीरता से जांच करनी चाहिए और उसके सामने पेश किए गए सबूतों तक पहुंचना चाहिए कि क्या पीड़ित के साथ की गई क्रूरता और उत्पीड़न के कारण पीड़ित के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था?

दोनों मामलों में अग्रिम जमानत दे दी गई है।

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