गुजरात पुलिस ने फर्जी आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल चलाने के आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार किया

Update: 2024-10-23 04:19 GMT

गुजरात पुलिस ने 37 वर्षीय मोरिस सैमुअल क्रिश्चियन को फर्जी आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल (Arbitration Tribunal) चलाने और खुद को इसका पीठासीन अधिकारी बताकर 2019 से 2024 के बीच कई 'अवार्ड' पारित करने के आरोप में गिरफ्तार किया।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 170 और 419 के तहत FIR का सामना कर रहे क्रिश्चियन ने कथित तौर पर आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के पीठासीन अधिकारी के रूप में खुद को पेश करके और अनुकूल आदेश पारित करके लोगों को धोखा दिया, यह दावा करते हुए कि वह सक्षम न्यायालय द्वारा नियुक्त 'आधिकारिक मध्यस्थ' है और मध्यस्थता मामलों से निपटने के लिए अधिकृत है।

क्रिश्चियन ने दावा किया कि उसके पास कानून की डिग्री है। उसने ऐसा तरीका अपनाया, जिसमें वह शहर के सिविल कोर्ट में भूमि विवाद के मामले लड़ रहे व्यक्तियों को फंसाता था। उनसे उनके मामलों को कुशलतापूर्वक निपटाने के लिए मोटी फीस वसूलता था।

वह ऐसे लोगों को गांधीनगर में अपने कार्यालय में बुलाता, जिसे न्यायालय की तरह बनाया गया, जहां वह विवाद में शामिल सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद आदेश पारित करता था। उसने अपने मुवक्किलों के लिए झूठे दावे भी दिए और पूरी मध्यस्थता कार्यवाही को फर्जी कोर्ट में रचा।

मामले की शुरुआती जांच के अनुसार, क्रिश्चियन द्वारा नियुक्त लोग ट्रिब्यूनल स्टाफ और वकील के रूप में काम करते थे, जिससे पक्षों को यह भ्रम हो कि कार्यवाही वैध और वास्तविक है।

अहमदाबाद के सिविल और सेशन कोर्ट जज जेएल चोवटिया के निर्देश पर वर्तमान में सिविल कोर्ट, अहमदाबाद के रजिस्ट्रार के रूप में कार्यरत हार्दिक देसाई द्वारा दायर की गई शिकायत के आधार पर FIR दर्ज की गई।

क्रिश्चियन की करतूतें तब प्रकाश में आईं, जब बबजूजी ठाकोर ने अहमदाबाद के पालडी इलाके में सरकारी जमीन के एक हिस्से पर अधिकार जताते हुए शहर की सिविल कोर्ट में एक दीवानी अर्जी दाखिल की। ​​उक्त जमीन पर अपने दावे को पुख्ता करने के लिए ठाकोर ने दावा प्रमाण पत्र पेश किया, जिसे क्रिश्चियन ने धोखाधड़ी से मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 के तहत उसे दे दिया।

शुरुआती पुलिस जांच में पता चला है कि क्रिश्चियन ने 2019 में सरकारी जमीन से जुड़े एक मामले में अपने मुवक्किल के पक्ष में आदेश पारित किया, जो दर्शाता है कि वह कम से कम पिछले पांच सालों से 'फर्जी' ट्रिब्यूनल चला रहा है।

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