गुजरात हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट की कार्यवाही में अतिरिक्त भाषा के रूप में 'गुजराती' के उपयोग की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की

Update: 2023-08-22 10:02 GMT

गुजरात हाईकोर्ट ने उस जनहित याचिका को 'गलत' मानकर खारिज कर दिया, जिसमें राज्य सरकार को (तत्कालीन) राज्यपाल के 2012 के फैसले को लागू करने का निर्देश देने की मांग की गई। उक्त फैसले में हाईकोर्ट के समक्ष अदालती कार्यवाही में अंग्रेजी के अलावा गुजराती भाषा के उपयोग को अधिकृत किया गया।

इस जनहित याचिका में गुजराती भाषा के उपयोग की अनुमति देने के प्रस्ताव को खारिज करने वाले सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के अक्टूबर 2012 के फैसले (प्रशासनिक पक्ष पर लिया गया) को भी चुनौती दी गई। उक्त याचिका पिछले साल सोशल एक्टिविस्ट रोहित द्वारा दायर की गई थी। वहीं वर्तमान याचिका सीनियर एडवोकेट असीम पंड्या के माध्यम से जयंतीलाल पटेल दायर की गई।

चीफ जस्टिस सुइता अग्रवाल ने टिप्पणी की,

"यहां तक कि प्रशासनिक पक्ष पर लिया गया सीजेआई का निर्णय भी हाईकोर्ट के लिए बाध्यकारी है, इसलिए यदि आपके पास सीजेआई के प्रशासनिक निर्णय के संबंध में किसी भी प्रकार का विवाद है तो आपको सुप्रीम कोर्ट जाना होगा। हम मदद नहीं कर पाएंगे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामले पर विचार करने और सीजेआई द्वारा इस पर सहमति देने से इनकार करने के बाद हम कोई निर्देश जारी नहीं कर सकते।''

इसके जवाब में सीनियर एडवोकेट असीम पंड्या ने प्रस्तुत किया कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की कोई भूमिका नहीं है। जनहित याचिका इस मामले में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की भूमिका पेश करने वाली 1965 की कैबिनेट समिति के प्रस्ताव (एचसी में क्षेत्रीय भाषा का) को भी चुनौती दे रही है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि हाईकोर्ट सीजेआई के फैसले को दी गई चुनौती को देखने और उस पर फैसला देने के लिए सक्षम है।

हालांकि, हाईकोर्ट ने इस मामले में मांगी गई प्रार्थनाओं को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

इसके अलावा, जब सीनियर एडवोकेट पंड्या ने मामले पर बहस करने और अपनी दलीलों को और विस्तार से बताने की मांग की, तो हाईकोर्ट ने उनकी प्रार्थना अस्वीकार कर दी और मामले में आदेश देने के लिए आगे बढ़े।

चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस अनिरुद्ध पी. माई की पीठ के आदेश में कहा गया,

"यदि कोई मुद्दा रिट याचिकाकर्ता द्वारा उठाया जा सकता है तो वह इस अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं आएगा। एक बार जब सीजेआई की सलाह मांगी गई और फुल कोर्ट द्वारा निर्णय लिया गया तो एकमात्र उपाय के रूप में याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा। रिट याचिका को गलत समझकर खारिज किया जाता है।''

मामले की पृष्ठभूमि

जनहित याचिका याचिका में राज्य सरकार को इस संबंध में उसके समक्ष दिए गए अभ्यावेदन के तहत भारत के संविधान के अनुच्छेद 348 (2) के तहत नया निर्णय लेने का निर्देश देने की भी मांग की गई।

उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 348 (2) किसी राज्य के राज्यपाल को राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से कार्यवाही में हिंदी भाषा, या राज्य के किसी भी आधिकारिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली किसी अन्य भाषा के उपयोग को अधिकृत करने की अनुमति देता है। हाईकोर्ट की मुख्य सीट उस राज्य में होती है।

जनहित याचिका में तर्क दिया गया कि संविधान के तहत जनता के लिए उपलब्ध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है अपनी पसंद के वकील के माध्यम से प्रभावी ढंग से व्यक्त करने की स्वतंत्रता और हाईकोर्ट की कार्यवाही में अंग्रेजी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता देना, हाईकोर्ट में कुछ वकील की पसंद को सीमित करता है। इससे केवल अदालत के वकीलों के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जो अंग्रेजी से अच्छी तरह परिचित नहीं हैं। परिणामस्वरूप आम आदमी के प्रैक्टिस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

गौरतलब है कि साल 2012 में राज्य विधानसभा और कैबिनेट कमेटी द्वारा हाईकोर्ट में गुजराती भाषा के इस्तेमाल को मंजूरी देने के बाद मामला राज्य की राज्यपाल के पास भेजा गया और उनकी मंजूरी के बाद मामला टिप्पणी आमंत्रित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को भेजा गया। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी अस्वीकृति दी।

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