गुजरात हाईकोर्ट ने तापी कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ अपील स्वीकार की, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि गोहत्या बंद हो तो पृथ्वी पर सभी समस्याएं हल हो जाएंगी
गुजरात हाईकोर्ट ने मंगलवार को तापी कोर्ट के फैसले और आदेश के खिलाफ एक अपील स्वीकार कर ली।
तापी कोर्ट ने हत्या के कथित इरादे से गायों को अवैध रूप से परिवहन करने के दोषी एक व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा दी थी। कोर्ट ने आदेश में कहा था कि अगर गौहत्या बंद कर दी जाती है तो पृथ्वी की सभी समस्याएं हल हो जाएंगी।
अपील को स्वीकार करते हुए जस्टिस एसएच वोरा और जस्टिस एसवी पिंटो की पीठ ने ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों और सत्र न्यायाधीश की अदालत द्वारा साक्ष्य की सराहना और जांच के तरीके के बारे में सवाल उठाए।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल नवंबर में तापी कोर्ट ने एक 22 वर्षीय व्यक्ति को मवेशियों को अवैध रूप मे महाराष्ट्र भेजने के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। गुजरात राज्य में सजा का यह पहला मामला था।
फैसले में तापी कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि पृथ्वी की सभी समस्याएं हल हो जाएंगी और पृथ्वी का कल्याण उस दिन स्थापित हो जाएगा, जिस दिन गाय के रक्त की एक बूंद भी पृथ्वी पर नहीं गिरेगी।
आरोपी/अपीलकर्ता मोहम्मद आमीन आरिफ अंजुम, जिसे जुलाई 2020 में एक ट्रक में 16 से अधिक गायों और बछड़ों को अवैध रूप से ले जाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उसे तापी कोर्ट ने वध के उद्देश्य से मवेशियों को ले जाने का दोषी पाया गया था।
अदालत ने देखा था कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में सफल रहा कि आरोपी के पास सक्षम प्राधिकारी का प्रमाण पत्र या मवेशियों के परिवहन के लिए लिखित अनुमति नहीं थी और इस प्रकार, यह माना गया कि पशुओं को वध के लिए ले जाया जा रहा था।
गुजराती में लिखे अपने 24 पन्नों के आदेश में अदालत ने कहा था कि वर्तमान परिदृश्य में 75% गो-संपत्ति नष्ट हो गई है, और अब केवल 25% संपत्ति ही बची है।
कोर्ट ने संस्कृत के एक श्लोक को भी उद्धृत किया, जिसमें कहा गया कि अगर गाय विलुप्त हो जाती हैं, तो ब्रह्मांड का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा। कोर्ट ने कहा कि वेद के सभी छह अंगों की उत्पत्ति गायों के कारण हुई है। गाय की हत्या और अवैध परिवहन की घटनाएं सभ्य समाज पर कलंक हैं।
दोषसिद्धि के आदेश और फैसले को चुनौती देते हुए अपीलकर्ता/अभियुक्त ने हाईकोर्ट का रुख किया, जहां उसके वकील ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट का यह निष्कर्ष कि मवेशियों को वध के उद्देश्य से ले जाया जा रहा था, संदिग्ध था।
उन्होंने आगे कहा कि आरोपी को घटना के स्थान से रंगे हाथ नहीं पकड़ा गया था और सीआरपीसी की धारा 313 के बयान में उससे केवल 4 सवाल पूछे गए थे।
इसके अलावा, आईओ यह निर्दिष्ट नहीं कर सका कि मवेशी कहां से आए थे और उन्हें कहां ले जाया जा रहा था। मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए पीठ ने निम्नलिखित टिप्पणी की,
"क्या सबूत है कि वह (ट्रक) चला रहा था? ... 313 सीआरपीसी के अपने बयान में, उसने कहा कि वह वाहन चालक नहीं था ... सवाल यह है कि इस बात का सबूत होना चाहिए कि आरोपी ड्राइवर की सीट पर था, लाइसेंस के साथ या बिना।"
इसके बाद, जब अभियुक्त के वकील ने सवाल उठाया कि इस मामले में उम्रकैद की सजा क्यों दी गई और किस आधार पर दी गई, तो पीठ ने मौखिक रूप से कहा, "यह आपको पता चलेगा क्योंकि मैं निष्कर्षों (अदालत के) से पता लगाने में सक्षम नहीं हूं ... इसके चेहरे पर, हम फैसले को पढ़ने से (आधार) नहीं पाते हैं।"
इसके साथ, पीठ ने अपील को स्वीकार कर लिया और मामले को 12 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दिया और राज्य सरकार से जवाब मांगा।