'सरकार केवल जाति आधारित सर्वेक्षण करा रही है, जनगणना नहीं; भागीदारी स्वैच्छिक': बिहार सरकार ने हाईकोर्ट में कहा

Update: 2023-07-06 11:28 GMT

पटना हाईकोर्ट के समक्ष दायर बिहार राज्य में जाति-आधारित सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं पर आपत्ति जताते हुए, बिहार सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया है कि वह राज्य के लोगों की सामाजिक और आर्थिक खुशहाली और जाति पर डेटा एकत्र करने के लिए जाति-आधारित सर्वेक्षण करने में सक्षम है।

सरकार ने कहा कि लोगों को अपनी जाति घोषित करने के लिए मजबूर नहीं किया जा रहा है और पूरी प्रक्रिया में भागीदारी पूरी तरह से स्वैच्छिक है और यह तथ्य इसे जाति-आधारित जनगणना से अलग बनाता है, जिसमें जाति की घोषणा अनिवार्य है।

चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस पार्थ सारथी की खंडपीठ के समक्ष राज्य सरकार की ओर से पेश राज्य के महाधिवक्ता पीके शाही और अतिरिक्त महाधिवक्ता अंजनी कुमार ने बुधवार को यह दलील दी।

स्पष्ट निवेदन किया गया कि प्रश्नगत सर्वेक्षण में एक भी व्यक्ति ने यह आरोप नहीं लगाया है कि सर्वेक्षण के नाम पर उनसे जबरन जानकारी ली जा रही है।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की मंशा बिल्कुल स्पष्ट है और सर्वेक्षण, जिसका 80% काम पूरा हो चुका है, राज्य के लोगों की भलाई के लिए किया जा रहा है ताकि सामाजिक और आर्थिक योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचाया जा सके।

मौखिक दलीलों के अलावा, सरकार ने जाति-आधारित सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं के जवाब में एक हलफनामा भी दायर किया है, जिसमें यह कहा गया है:

"यह निर्विवाद है कि यह सर्वेक्षण जनगणना नहीं है। इसमें कुछ समानताएं हो सकती हैं लेकिन स्पष्ट अंतर हैं। ये दोनों प्रक्रियाएं एक समान नहीं हैं। अंतर और समानताएं कम महत्वपूर्ण हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कानूनी सवाल यह है कि क्या बिहार जाति आधारित सर्वेक्षण है आगामी जनगणना 2021 में कोई खतरा या बाधा उत्पन्न हो रही है या नहीं। उत्तर नहीं है। जनगणना अधिनियम 1948 द्वारा प्रदत्त भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र का भी कोई उल्लंघन नहीं हो रहा है, इस संबंध में राज्य सरकार को भारत सरकार की ओर से आज तक कोई आपत्ति नहीं मिली है।"

दूसरी ओर, याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील दीनू कुमार ने कोर्ट के समक्ष कहा कि राज्य सरकार सर्वेक्षण के नाम पर जनगणना करा रही है, जिसकी संविधान के मुताबिक अनुमति नहीं है. उन्होंने दलील दी कि सर्वे पर बिना किसी औचित्य के कुल पांच सौ करोड़ रुपये खर्च किये जा रहे हैं।

गौरतलब है कि हाई कोर्ट ने 4 मई को प्रश्नगत सर्वेक्षण पर अंतरिम रोक लगाते हुए प्रथम दृष्टया कहा था कि यह सर्वेक्षण एक जनगणना के समान है जिसे करने की शक्ति राज्य सरकार के पास नहीं है।

चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस मधुरेश प्रसाद की हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा था कि निजता का अधिकार भी एक मुद्दा है जो मामले में उठता है।

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