गुवाहाटी हाईकोर्ट ने नागरिक-पिता की गवाही के बाद 52-वर्षीय महिला को विदेशी घोषित करने का आदेश रद्द किया
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में फॉरनर्स ट्रिब्यूनल के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें भारत के नागरिक को विदेशी नागरिक घोषित किया था। कोर्ट ने यह आदेश इस आधार पर रद्द किया कि अधिकारियों की सत्यापन रिपोर्ट अधूरी है और याचिकाकर्ता के पिता का सबूत है, जिसने याचिकाकर्ता को अपनी बेटी बताया है।
जस्टिस अचिंत्य मल्ला बुजोर बरुआ और जस्टिस रॉबिन फुकन की खंडपीठ ने ट्रिब्यूनल के आदेश को रद्द करते हुए कहा,
"इस पहलू पर भी विचार करते हुए कि सत्यापन रिपोर्ट स्वयं किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए अधूरी है कि याचिकाकर्ता ऐसी महिला है, जो 25.03.1971 के बाद असम राज्य में प्रवेश करती है और आगे यह कि राम प्रसाद रबिदास के सबूत जो अपनी नागरिकता साबित कर सकते हैं, उसको हटा दिया गया कि याचिकाकर्ता उसकी पुत्री है। इस पर कोई विवाद नहीं हुआ है, हमारा विचार है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ किया गया संदर्भ स्वयं कानून में अमान्य होगा।
याचिकाकर्ता को फॉरनर्स ट्रिब्यूनल, धुबरी को राय के लिए भेजा गया कि क्या वह महिला है, जो 25 मार्च, 1971 के बाद निर्दिष्ट क्षेत्र से असम राज्य में प्रवेश करती है।
ट्रिब्यूनल ने 18 सितंबर, 2018 के आदेश के तहत यह राय दी कि याचिकाकर्ता विदेशी नागरिक है, जो 25 मार्च, 1971 के बाद असम राज्य में आई थी।
ट्रिब्यूनल के आक्षेपित आदेश से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने रिट याचिका दायर की।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने 1966 की क्षेत्र नंबर 943 मतदाता सूची पर भरोसा किया। मौजा बलरामपुर जिला पश्चिम बंगाल राज्य में कूचबिहार जिसमें क्रमांक 199 पर सहदेव के पुत्र रबिदास रामप्रसाद का नाम अंकित है।
आगे यह देखा गया कि रबीदास रामप्रसाद ने ट्रिब्यूनल के समक्ष गवाही दी कि याचिकाकर्ता उसकी पहली पत्नी से उसकी बेटी है और पश्चिम बंगाल के कूचबिहार जिले में पैदा हुई और पली-बढ़ी है।
अदालत ने कहा कि क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान रबिदास रामप्रसाद का कोई सवाल या सुझाव नहीं था कि याचिकाकर्ता उसकी बेटी नहीं है।
अदालत ने टिप्पणी की,
“अधिकारियों ने क्रॉस एग्जामिनेशन में राम प्रसाद रबीदास की उम्र, उनकी कितनी बेटियां हैं और उनका जन्म कहां हुआ था, इसके बारे में पूछा था। ऐसा होने पर राम प्रसाद रबीदास के प्रमुख के साक्ष्य कि कार्यवाहक भारती रबिदास उनकी बेटी हैं, निर्विवाद हैं।
अदालत द्वारा यह भी देखा गया कि अधिकारियों की सत्यापन रिपोर्ट अधूरी है, क्योंकि रिपोर्ट में कोई भी जानकारी दर्ज नहीं की गई, जो इस बात का संकेत दे सकती है कि अधिकारियों ने यह क्यों सोचा कि याचिकाकर्ता 25 मार्च, 1971 के बाद असम राज्य में प्रवेश करने वाला व्यक्ति है। इसके अतिरिक्त, अदालत ने कहा कि सत्यापन रिपोर्ट में जन्म स्थान के लिए प्रदान किए गए कॉलम को अधिकारियों द्वारा नहीं भरा गया।
तदनुसार, अदालत ने ट्रिब्यूनल के आक्षेपित आदेश रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को भारत का नागरिक घोषित कर दिया।
केस टाइटल: भारती रबिदास बनाम भारत संघ और 5 अन्य।
कोरम: जस्टिस अचिंत्य मल्ला बुजोर बरुआ और जस्टिस रॉबिन फुकन
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