गुवाहाटी हाईकोर्ट ने उस असम निवासी को राहत दी, जिसकी मृत मां को विदेशी ट्रिब्यूनल ने एकपक्षीय राय से 'विदेशी' घोषित किया गया था
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने सोमवार को उस असम निवासी के बचाव में आया, जो विदेशी ट्रिब्यूनल की एक पक्षीय राय से पीड़ित था। विदेशी ट्रिब्यूनल ने याचिकाकर्ता की मृत मां को 'विदेशी' घोषित कर दिया था।
याचिकाकर्ता, तारापद नामदास ने तर्क दिया कि विदेशी ट्रिब्यूनल की इस तरह की राय के कारण भारत के नागरिक के रूप में उसके कानूनी अधिकारों पर कुछ अधिकारियों द्वारा सवाल उठाया जा रहा है।
जस्टिस अचिंत्य मल्ला बुजोर बरुआ और जस्टिस रॉबिन फुकन की खंडपीठ ने विदेशी ट्रिब्यूनल की राय को "क़ानून में टिकने लायक नहीं" पाते हुए आदेश दिया,
" याचिकाकर्ता के सभी कानूनी अधिकार भारत के नागरिक के रूप में उसकी मां के खिलाफ विदेशी ट्रिब्यूनल की एक पक्षीय राय का सहारा लिए बिना, याचिकाकर्ता को उपलब्ध होंगे। "
याचिकाकर्ता ने 1966 की मतदाता सूची का हवाला दिया जिसमें कथित तौर पर उसकी मां सोरोजोनी नामदास का नाम था।
हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की मां के आधिकारिक नाम के संबंध में भ्रम था " लेकिन फिर भी ऊपर बताई गई सामग्री घोषणा के पक्ष में है कि याचिकाकर्ता की मां के खिलाफ विदेशी ट्रिब्यूनल में कोई एकपक्षीय राय नहीं दी जा सकती।"
बेंच ने कहा कि
" सोरोजोनी नामदास को उचित रूप से नोटिस नहीं दिया गया था। 1997 में सोरोजोनी दास के हस्ताक्षर के साथ-साथ बाएं अंगूठे के निशान वाली प्रोसेस सर्वर की एक रिपोर्ट है। यदि 1991 में सोरोजोनी दास की मृत्यु हो गई तो प्रोसेस सर्वर की रिपोर्ट एक तुच्छ रिपोर्ट प्रतीत होती है।"
हाईकोर्ट ने इस प्रकार ट्रिब्यूनल की राय में इस तरह की विसंगतियों के सामने खड़े होकर याचिका की अनुमति दी और राहत दी।
केस टाइटल : तारापद नमदास बनाम भारत संघ और पांच अन्य।
जजमेंट पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें