गुवाहाटी हाईकोर्ट ने बहन से बलात्कार के आरोपी के खिलाफ मामले को रद्द करने के 'समझौते' को अस्वीकार किया, 'समाज पर गंभीर प्रभाव' का संज्ञान लिया
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने पीड़िता और आरोपी के बीच समझौते को खारिज करते हुए हाल ही में बलात्कार के एक मामले की आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया। मामले में एक व्यक्ति पर अपनी बहन के साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया गया है। कोर्ट ने कहा कि आरोप का समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
अपराध को "जघन्य" करार देते हुए जस्टिस मिताली ठाकुरिया की पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह आपराधिक कार्यवाही के साथ-साथ आरोपी के खिलाफ एफआईआर और आरोप पत्र को रद्द करने का उपयुक्त मामला नहीं है, भले ही दोनों पक्षों ने इसमें प्रवेश एक समझौते में प्रवेश किया हो।
न्यायालय ने पीड़िता के माता-पिता पर मामले में समझौता करने की संभावित मजबूरी को भी ध्यान में रखा क्योंकि दोनों याचिकाकर्ता भाई-बहन हैं। कोर्ट ने कहा कि दोनों याचिकाकर्ताओं के माता-पिता होने के नाते पिता परिवार की प्रतिष्ठा की खातिर पीड़िता पर मामले में समझौता करने के लिए जोर दे रहे होंगे।
मामला
28 जनवरी, 2022 को पीड़िता (याचिकाकर्ता संख्या एक) ने याचिकाकर्ता संख्या दो/अभियुक्त पर उसके साथ बलात्कार करने का आरोप लगाते हुए आईपीसी की धारा 376 के तहत एफआईआर दर्ज की, हालांकि, जांच के दौरान दोनों याचिकाकर्ताओं ने मौखिक रूप से थाना प्रभारी से मामले को आगे नहीं बढ़ाने और केस वापस लेने का अनुरोध किया। हालांकि, प्रभारी अधिकारी ने याचिकाकर्ताओं की प्रार्थना पर विचार नहीं किया और गवाहों की जांच के बाद, उन्होंने इस साल फरवरी में आरोपी के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया।
इसलिए, पीड़ित और आरोपी ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत तत्काल संयुक्त याचिका दायर की और आरोप पत्र और आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की प्रार्थना करते हुए कहा कि वे एक ही परिवार से हैं और वे दोनों एक ही माता-पिता से भाई-बहन हैं और वर्तमान में दोनों याचिकाकर्ताओं के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध हैं और वे शांतिपूर्वक रह रहे हैं।
आगे कहा गया है कि उपरोक्त कथित घटना के बाद, दोनों याचिकाकर्ताओं ने आपसी सुलह की और अपने माता-पिता की मदद से मामले में समझौता कर लिया और तदनुसार इस साल मार्च में आपसी समझौते का एक दस्तावेज भी निष्पादित किया गया, जिसे कार्यकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष विधिवत निष्पादित किया गया और अब पीड़िता अपने भाई आरोपी के खिलाफ केस आगे नहीं बढ़ाना चाहती।
हालांकि याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि मामले को रद्द करना उचित था, दूसरी ओर लोक अभियोजन ने कहा कि यह सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की शक्ति का प्रयोग करने के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त मामला नहीं है।
कोर्ट की टिप्पणियां
दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनने और मामले के रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद, अदालत ने कहा कि यद्यपि पीड़ित और आरोपी ने मामले को रद्द करने के लिए संयुक्त रूप से याचिका दायर की है क्योंकि उन्होंने मामले में समझौता कर लिया है, हालांकि, जिस प्रकृति का आरोपी पर आरोप है, वह बहुत ही जघन्य और गंभीर प्रकृति का अपराध है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसी संभावना हो सकती है कि परिवार की प्रतिष्ठा की खातिर मामले से समझौता कर लिया गया हो।
इसलिए, धारा 164 सीआरपीसी के तहत पीड़िता द्वारा दिए गए बयान के साथ-साथ मजिस्ट्रेट के समक्ष आरोपी द्वारा दिए गए इकबालिया बयान पर विचार करते हुए, अदालत ने पाया कि यह आपराधिक कार्यवाही के साथ-साथ एफआईआर और आरोप को रद्द करने के लिए उपयुक्त मामला नहीं था।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटलः एक्स बनाम वाई