गांधी प्रतिमा धार्मिक पूजा का स्थान नहींः कर्नाटक हाईकोर्ट ने बार के खिलाफ दायर जनहित याचिका खारिज की
‘‘अगर हम राष्ट्रपिता द्वारा उनके जीवनकाल के दौरान प्रचारित विचारों और विचारधारा को देखते हैं, तो यह स्वीकार करना असंभव है कि उनकी प्रतिमा सार्वजनिक धार्मिक पूजा का स्थान है। राष्ट्रपिता का एक अनूठा स्थान है। वह सभी धर्म से ऊपर थे। वह वास्तव में एक लोकतांत्रिक व्यक्ति थे, जिन्हें इंसानों की पूजा करना पसंद नहीं था।’’
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी भी तरह की कल्पना के आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा 'पूजा स्थल' या 'धार्मिक संस्था' है।
न्यायालय ने एक अधिवक्ता ए वी अमरनाथन की तरफ से दायर एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की है। इस जनहित याचिका में मांग की गई थी कि राज्य आबकारी विभाग द्वारा टाॅनिक बार एंड रेस्तरां को दिए गए लाइसेंस को रद्द किया जाए क्योंकि यह बार कथित तौर पर गांधी प्रतिमा के नजदीक स्थित है।
याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि कर्नाटक आबकारी लाइसेंस (सामान्य शर्तें) नियम, 1967 के नियम 3 के उप-नियम (3) के तहत 'धार्मिक संस्था' की परिभाषा पर विचार करना होगा। उन्होंने अदालत से आग्रह किया था कि राष्ट्रपिता की मूर्ति के पास प्रार्थना की जाती है, इसलिए इसे एक 'धार्मिक संस्था' के रूप में माना जाए।
मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति एन एस संजय गौड़ा की खंडपीठ ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि
''कल्पना की किसी भी सीमा तक जाने के बाद भी, हम यह नहीं मान सकते हैं कि राष्ट्रपिता की मूर्ति एक 'धार्मिक संस्था' है। कर्नाटक आबकारी लाइसेंस (सामान्य शर्तें) नियम, 1967 के नियम 3 के उप-नियम (3) (under Sub-rule (3) of Rule of 3 of the Karnataka Excise Licences (General Conditions) Rules, 1967) के तहत सार्वजनिक धार्मिक पूजा स्थल पर जोर दिया गया है। यह स्वीकार करना असंभव है कि राष्ट्रपिता की मूर्ति एक 'धार्मिक संस्था या धार्मिक पूजा स्थल हो सकती है।''
पीठ ने यह भी कहा कि
''अगर हम राष्ट्रपिता द्वारा उनके जीवनकाल के दौरान प्रचारित विचारों और विचारधारा को देखते हैं, तो यह स्वीकार करना असंभव है कि उनकी प्रतिमा सार्वजनिक धार्मिक पूजा का स्थान है। राष्ट्रपिता का एक अनूठा स्थान है। वह सभी धर्म से ऊपर थे। वह वास्तव में एक लोकतांत्रिक व्यक्ति थे, जिन्हें इंसानों की पूजा करना पसंद नहीं था।''
अमरनाथ ने अपनी याचिका में दावा किया था कि राष्ट्रपिता की मूर्ति, कब्बन पार्क में स्थित बाल भवन, एक चर्च और पुलिस उपायुक्त कार्यालय बार के परिसर से 100 मीटर की दूरी पर स्थित हैं। इसलिए कर्नाटक आबकारी लाइसेंस (सामान्य शर्तें) नियम, 1967 के नियम 5 का उल्लंघन हुआ है।
हालांकि, 9 जुलाई के आदेश के तहत राष्ट्रपिता की मूर्ति और बाल भवन पर आधारित आपत्तियों को बाहर कर दिया गया था। वहीं अन्य आपत्तियों के संबंध में न्यायिक तहसीलदार को निर्देश दिया गया था कि वह सरकारी सर्वेयर की मदद से दूरी मापने की काम करें।
एडीशनल गवर्मेंट एडवोकेट विजयकुमार ए पाटिल ने अनुपालन का एक मैमो दायर किया,जिसमें बताया गया था कि रेस्तरां के परिसर के मुख्य द्वार और पुलिस उपायुक्त के कार्यालय के बीच की फुटपाथ के माध्यम से दूरी 126.50 मीटर है। वहीं यह भी कहा गया कि था पांचवें प्रतिवादी के मुख्य प्रवेश द्वार और सेंट मार्था चर्च के प्रवेश द्वार के बीच की दूरी 144.00 मीटर है।
सोमवार को, याचिकाकर्ता ने नियम 1967 के नियम 5 के उप-नियम (2-ए) (Sub-rule (2-A) of Rule 5 of the said Rules of 1967) का हवाला भी दिया। हालांकि, पीठ ने कहा कि ''याचिकाकर्ता ने याचिका में यह नहीं कहा है कि नियम 1967 के नियम 5 के उप-नियम (2-ए) के मद्देनजर पांचवें प्रतिवादी की तरफ से लाइसेंस के लिए दायर आवेदन को खारिज कर दिया जाना चाहिए था।''
पीठ ने निष्कर्ष निकालते हुए कहा कि ''हमने पाया है कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाई गई किसी भी आपत्ति में कोई योग्यता नहीं है, इसलिए इस सवाल पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है कि यह याचिका दायर करने के लिए याचिकाकर्ता का लोकस बनता था या नहीं। इसप्रकार, हमें इस याचिका में योग्यता नहीं मिली,इसलिए इसे खारिज किया जा रहा है।''