भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में राज्य द्वारा कटौती नहीं की जा सकती, लेकिन लोक व्यवस्था और सुरक्षा के साथ संतुलन जरूरी : कलकत्ता हाईकोर्ट

Update: 2021-01-14 07:22 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट ने मंगलवार (12 जनवरी) को अपने फैसले में कहा कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्वक ढंग से एक जगह पर इकट्ठा होना, लोगों का मौलिक अधिकार है। राज्य द्वारा लोगों के इन मौलिक अधिकारों में कटौती नहीं की जा सकती है।

आगे कहा कि,

"भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (6) में कही गई बातों के मद्देनजर याचिकाकर्ताओं को अधिकारों और सार्वजनिक व्यवस्था के साथ-साथ सुरक्षा के बीच संतुलन कायम करना होगा।"

न्यायमूर्ति सब्यसाची भट्टाचार्य की खंडपीठ याचिकाकर्ताओं (पश्चिम बंगाल मान्यता प्राप्त अन-एडेड मदरसा शिक्षक संघ और अन्य) की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में कहा गया था कि वे लोग 12 जनवरी को साल्ट लेक के बिकाश भवन के सामने धरना या इसके आसपास की जगह पर धरना-प्रदर्शन करना चाहते हैं।

इसके अलावा, उनकी शिकायत यह थी कि जब उन्होंने 24 दिसंबर, 2020 को धरना-प्रदर्शन की अनुमति के लिए आवेदन किया था, तो प्रतिवादी-अधिकारियों द्वारा "भड़कीले और अपर्याप्त आधार पर" अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था।

अधिकारियों के वकील ने कहा कि,

"जिस जगह पर धरना-प्रदर्शन करने की मांग कर रहे थे, उसे छोड़कर दूसरे किसी अलग स्थान पर धरना-प्रदर्शन करने की अनुमति देने में कोई कठिनाई नहीं थी।"

आगे कहा गया था कि,

"यदि किसी स्थान पर प्रोटोकॉल बनाया गया है, तो वहां एक सीमित दिनों के लिए धरना-प्रदर्शन आयोजित किया जा सकता है। इस तरह की अनुमति सेंट्रल पार्क के गेट से 50 मीटर की दूरी पर स्थित क्षेत्र के लिए दी जा सकती है।"

प्रतिवादी अधिकारियों के लिए काउंसिल की अधीनता और याचिकाकर्ताओं के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्वक ढंग से इकट्ठा होने के मौलिक अधिकार को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा कि,

"मामले को देखते हुए अधिकारियों को निर्देश दिया जाता है कि याचिकाकर्ताओं को सेंट्रल पार्क के बाहर गेट से 50 मीटर की दूरी पर धरना-प्रदर्शन करने की अनुमति दी जाए। 12 जनवरी से कोलकता के साल्ट लेक सिटी, सिटी सेंटर-I के पास स्थित सेंट्रल पार्क जहां मेट्रो कार शेड स्थित है, वहां इन लोगों को शांतिपूर्वक ढंग से धरना-प्रदर्शन करने की अनुमित दी जाए।"

हालांकि, याचिकाकर्ताओं को निर्देशित किया गया कि, इस तरह के प्रदर्शन को आयोजित करते हुए, उन्हें COVID-19 के प्रोटोकॉल के साथ-साथ निर्धारित किए गए सभी प्रदूषण नियंत्रण मापदंडो को ध्यान में रखते हुए प्रदर्शन करना होगा।

इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को प्रदर्शन के दौरान हर समय कानून व्यवस्था बनाए रखने का निर्देश दिया।

इसी तरह के एक मामले में न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी (पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट) की खंडपीठ ने कहा था कि,

"भारत का संविधान सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, ताकि वे शांतिपूर्वक ढंग से इकट्ठा हो सकें, लेकिन बिना हथियार के। इसके साथ ही वे देश के भीतर कहीं भी स्वतंत्र रूप से आ जा सकें। इन अधिकारों में शांति से विरोध करने का अधिकार शामिल है।"

कोर्ट ने कहा कि,

"प्रदर्शनकारी दूसरों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते हैं और इसके साथ ही किसी भी ऐसे आपराधिक कृत्य में लिप्त नहीं हो सकते हैं, जो कानून के तहत दंडनीय अपराध है।"

केस : पश्चिम बंगाल मान्यता प्राप्त अन-एडेड मदरसा शिक्षक संघ और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य [W.P.A. 176 of 2021]    

ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




Tags:    

Similar News