जालसाजी के कारण नियुक्ति शुरु से ही शून्य और गैर-स्थायी हो जाती है और इसलिए पात्रता का कोई सवाल ही नहीं उठता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2023-04-13 14:48 GMT

Punjab & Haryana High Court

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने पारुल बनाम उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम लिमिटेड और अन्य के मामले में लेटर्स पेटेंट अपील का फैसला किया। कोर्ट ने फैसले में कहा कि पात्रता का सवाल पैदा ही नहीं होता है, क्योंकि धोखाधड़ी करके नियुक्ति प्राप्त करने के आवेदक के प्रयास ने नियुक्ति के लिए उसकी उम्‍मीदवारी पर विचार करने या उसकी ओर से नियुक्ति का दावा किया जाने के अधिकारों को खत्म कर दिया है।

पीठ में जस्टिस रवि शंकर झा और जस्टिस अरुण पल्ली शामिल थे।

तथ्य

उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम लिमिटेड (प्रतिवादी) ने 2016 में लोअर डिविजनल क्लर्क के पदों पर नियुक्तियों के लिए एक विज्ञापन जारी किया था। विज्ञापन में राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईईएलआईटी) द्वारा जारी 'ओ' लेवल कोर्स सर्टिफिकेट को आवश्यक योग्यता के रूप में निर्धारित किया गया।

पारुल (अपीलकर्ता) ने पद के लिए आवेदन किया और उसने यह इंगित करने के लिए दस्तावेज़ दायर किया कि उसके पास एनआईईएलआईटी द्वारा जारी 'ओ' लेवल कोर्स सर्टिफिकेट है। जिसके बाद उक्त प्रमाण-पत्र के आधार पर अपीलार्थी चयन प्रक्रिया में उपस्थित हुई। 10.06.2019 के पत्र के तहत उन्हें अंततः अवर मंडल लिपिक (एलडीसी) के रूप में नियुक्त किया गया था।

हालांकि, प्रतिवादी-प्राधिकरण ने पाया कि प्रमाणपत्र वास्तविक नहीं था क्योंकि यह वास्तव में किसी अन्य उम्मीदवार को जारी किया गया था। पात्रता और नियुक्ति का दावा करने के प्रयोजनों के लिए अपीलकर्ता द्वारा जिस प्रमाणपत्र पर भरोसा किया गया था, उसे एनआईईएलआईटी द्वारा कभी भी जारी नहीं किया गया था।

नतीजतन, प्रतिवादी अधिकारियों ने अपीलकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किया और उसके बाद प्रमाण पत्र को फर्जी पाया। जिसके बाद 16.12.2020 को उसकी सेवाओं को समाप्त करने का आदेश जारी किया।

पारुल ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच के समक्ष सेवाओं की समाप्ति के संबंध में एक रिट याचिका दायर की गई थी, जिसने याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि धोखाधड़ी के कारण नियुक्ति खराब हो गई। ‌

सिंगल जज ने मधुलिका बनाम डीएचबीवीएनएल और अन्य, और प्रबंध समिति, गोसवानी गणेश दत्त सनातन धर्म कॉलेज, पलवल और अन्य बनाम साबिर हुसैन और अन्य 2022(2) एससीटी 386 जैसे मामलों पर भरोसा किया।

अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि भले ही प्रमाण पत्र फर्जी पाया जाता है, वह अधिकारियों द्वारा निर्धारित पात्रता योग्यता को पूरा करती हो। उसके पास बीसीए की डिग्री थी, जो बाद में अधिकारियों द्वारा निर्धारित और स्वीकृत योग्यता थी। ऐसे में सेवा समाप्ति का आदेश रद्द किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

अदालत ने पाया कि नियुक्ति पत्र से यह स्पष्ट था कि नियुक्ति दस्तावेजों/प्रमाणपत्रों के सत्यापन के अधीन थी। दस्तावेज सही नहीं पाए जाने पर अपीलकर्ता की सेवाएं बिना किसी नोटिस के समाप्त की जा सकती हैं। अधिकारियों ने यह देखने के बाद कि अपीलकर्ता उसके द्वारा दायर किए गए दस्तावेज़ की वास्तविकता के संबंध में कोई सबूत प्रस्तुत करने में विफल रही है, यह माना कि नकली/जाली प्रमाण पत्र जमा करके उसके द्वारा प्राप्त की गई नियुक्ति शुरू से ही शून्य और गैर-स्थायी थी। नतीजतन, अधिकारियों ने 16.12.2020 को समाप्ति का विवादित आदेश जारी किया।

अदालत ने मेघमाला और अन्य बनाम जी नरसिम्हा रेड्डी और अन्य, 2010 (8) SCC 383 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें यह कहा गया था कि जहां एक आवेदक को गलत बयानी करके या सक्षम प्राधिकारी के साथ धोखाधड़ी करके आदेश/ कार्यालय प्राप्त होता है, वहां इस तरह के आदेश को कानून की नजर में कायम नहीं रखा जा सकता है।

कोर्ट ने क्षेत्रीय प्रबंधक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया बनाम मधुलिका गुरुप्रसाद दाहिर और अन्य, 2008 (13) SCC 170 के मामले पर भी भरोसा किया, जहां एक व्यक्ति ने झूठे जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नियुक्ति प्राप्त की थी, उसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धोखाधड़ी सब कुछ चौपट कर दिया।

देवेंद्र कुमार बनाम उत्तरांचल राज्य और अन्य, 2013 (9) SCC 363 के मामले में भी भरोसा किया गया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति को रद्द करने के आदेश को बरकरार रखा था, जिसने लंबित आपराधिक मामले के बारे में भौतिक तथ्यों को छुपाकर नियुक्ति प्राप्त की थी।

यह देखा गया कि सेवाओं को समाप्त करने में अधिकारियों के कार्य में कोई दोष नहीं पाया जा सकता है। अपीलकर्ता के खिलाफ जो कार्रवाई की गई है, वह अपीलकर्ता द्वारा की गई धोखाधड़ी के कारण की गई है। इसलिए, उसके पात्र होने या अन्यथा होने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि धोखे से नियुक्ति प्राप्त करने का उसका प्रयास उसे नियुक्ति के लिए विचार करने या नियुक्ति का दावा करने का अधिकार नहीं देता है। यह माना गया कि धोखाधड़ी नियुक्ति को शुरू से ही शून्य और गैर-स्थायी बना देती है, और अपीलकर्ता का कार्य नियुक्ति के लिए विचार किए जाने के लिए उसे अपात्र बनाता है। इस प्रकार, अदालत ने अपील में कोई दम नहीं पाया।

उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, खंडपीठ ने अपील को खारिज कर दिया।

केस टाइटलः पारुल बनाम उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम लिमिटेड व अन्य

केस नंबरः एलपीए-296-2023 (ओ एंड एम)

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