पूर्व जजों, वकीलों और अन्य प्रतिष्ठित नागरिकों ने सीजेआई को पत्र लिखा, स्वतः संज्ञान से यह स्पष्ट करने को कहा कि जकिया जाफरी के फैसले का कोई प्रतिकूल परिणाम नहीं होगा
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को स्वतः संज्ञान से यह स्पष्ट करने के लिए एक पत्र लिखा गया है कि जकिया जाफरी मामले में उसके फैसले का कोई प्रतिकूल परिणाम नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में जकिया एहसान जाफरी की एक याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें एसआईटी की ओर से दायर क्लोजर रिपोर्ट को चुनौती दी गई थी।
एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्य के 63 अन्य पदाधिकारियों पर लगे 2002 के गुजरात में हुए दंगों में बड़ी साजिश के आरोपों को खारिज कर दिया गया था।
विभिन्न वकीलों सहित कुल 304 व्यक्तियों ने यह पत्र लिखा है। पत्र में कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़, पूर्व एडीजीपी आरबी श्रीकुमार और अन्य की गिरफ्तारी पर चिंता व्यक्त की गई है। उन्होंने कहा है कि उन्हें परेशान किया जा रहा ,है "क्योंकि उन्होंने गुजरात दंगों में मारे गए 2000 से अधिक लोगों के लिए न्याय पाने की कोशिश की।"
पत्र पर सीनियर एडवोकेट चंद्र उदय सिंह, आनंद ग्रोवर और इंदिरा जयसिंह, एडवोकेट संजय हेगड़े, अनस तनवीर, फुजैल अहमद अय्यूबी, अवनी बंसल और भारतीय इतिहासकार रामचंद्र गुहा आदि के हस्ताक्षर हैं।
पत्र में लिखा है, "हमें अपनी पीड़ा व्यक्त करनी चाहिए कि राज्य पुलिस जकियी जाफरी में 24 जून 2022 को दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर गिरफ्तारी को सही ठहराती है।"
पत्र में उल्लेखित जजमेंट का पैरा इस प्रकार है-
"... अंत में, यह हमें गुजरात राज्य के असंतुष्ट अधिकारियों के साथ-साथ अन्य लोगों का एक संयुक्त प्रयास प्रतीत होता है, कि ऐसे खुलासों के जरिए सनसनी पैदा की जाए, जो उनकी खुद की जानकारी में गलत थे। एसआईटी ने गहन जांच के बाद उनके दावों के झूठ को पूरी तरह से उजागर कर दिया है।
रोचक बात यह है कि मौजूदा कार्यवाही पिछले 16 वर्षों से चल रही है, (8.6.2006 को 67 पृष्ठों की शिकायत पेश की गई थी और फिर 15.4.2013 को 514 पृष्ठों की विरोध याचिका दायर की गई थी।) जिसमें कुटिल चालों को उजागर करने की प्रक्रिया में शामिल प्रत्येक पदाधिकारी की सत्यनिष्ठा पर सवाल उठाने की धृष्टता की गई.... ताकि मुद्दा गरम रहे। वास्तव में, प्रक्रिया के ऐसे दुरुपयोग में शामिल सभी लोगों को कटघरे में खड़ा होना चाहिए और कानून के अनुसार उन पर कार्रवाई होनी चाहिए।
इस पृष्ठभूमि में पत्र में पूछा गया है कि उक्त पैराग्राफ में सुप्रीम कोर्ट का आशय कानूनी परिणाम नहीं है।
पत्र में कहा गया है,
"यह स्थापित कानून है कि किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई भी प्रतिकूल कार्रवाई उचित नोटिस देने के बाद ही शुरू की जा सकती है। अदालत ने इन कार्यवाही में किसी को भी न तो झूठी गवाही और न ही अवमानना का नोटिस जारी किया है। वास्तव में, अदालत ने कोई विशेष नोटिस जारी नहीं किया है...।"
पत्र में कहा गया है कि याचिकाकर्ता या उनकी सहायता करने वालों को कानून की देरी में समय बीतने के लिए किसी भी तरह से दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।