विदेशी नागरिक, भारतीय नागरिक से शादी करके स्वतः भारतीय नागरिक नहीं बनते; मतदाता पहचान पत्र, आधार, पैन आदि नागरिकता के प्रमाण नहीं: पटना ‌हाईकोर्ट

Update: 2020-10-13 06:19 GMT

पटना हाईकोर्ट ने माना है कि एक विदेशी नागरिक, भारतीय नागरिक के साथ विवाह करने के बाद स्वत: भारतीय नागरिक नहीं बन जाता है।

चीफ जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एस कुमार की पीठ ने मात्र पैन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र; या आधार कार्ड भारतीय नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि नेपाल की नागरिकता का त्याग भारतीय नागरिकता का अधिकार प्रदान नहीं करता है।

पृष्ठभूमि

मामले के तहत, किरण गुप्ता नेपाल में पैदा हुईं और पली-बढ़ीं। उन्होंने अशोक प्रसाद गुप्ता से 2003 में शादी की और स्थायी रूप से भारत में उनकी पत्नी के रूप में उनके साथ रहने लगीं। शादी के बाद, उन्होंने (ए) बिहार विधानसभा के चुनाव के लिए वर्ष 2008 में तैयार मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराया; (बी) उनके नाम पर (i) भारत में एक बैंक खाता है, (ii) आयकर विभाग द्वारा जारी पैन कार्ड, और (iii) आधार कार्ड है।

2018 में उन्हें ग्राम पंचायत के मुखिया के रूप में चुना गया। राज्य चुनाव आयोग ने बिहार के पंचायत राज अधिनियम, 2006 की धारा 136 (1) के तहत भारतीय नागरिक नहीं होने के आधार पर उनका चुनाव रद्द कर दिया। चुनाव आयोग के आदेश के खिलाफ, उन्होंने हाईकोर्ट दरवाजा खटखटाया और दावा किया कि उन्होंने स्वेच्छा से नेपाल की नागरिकता का त्याग कर दिया और इस प्रकार भारतीय नागरिकता हासिल कर ली है।

एकल पीठ ने उनकी रिट याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह भारत की नागरिक नहीं है, नतीजतन पंचायत अधिनियम के तहत अयोग्य ठहराई गई है।

मूल विदेशी नागरिकता त्याग मात्र या विवाह भारतीय नागरिकता प्रदान नहीं करता है

डिवीजन बेंच, जिसने उसकी रिट अपील पर विचार किया था, ने नागरिकता अधिनियम और नागरिकता के मामले में सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न प्रावधानों का उल्लेख किया। अदालत ने माना कि मूल नागरिकता का त्याग करना भारतीय नागरिकता प्राप्त करने का आधार नहीं माना जा सकता है।

न्यायालय ने कहा-

"नागरिकता अधिनियम ऐसा परिदृश्य प्रदान नहीं करता, जिसमें भारत में रह रहा व्यक्ति, अपनी मूल नागरिकता को त्यागने के बाद स्वचालित रूप से भारत का नागरिक बन जाता है। एक व्यक्ति की, हालांकि अपीलकर्ता नहीं, तीसरे देश में पलायन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार, भारत में निरंतर और निर्बाध प्रवासन, नागरिकता अधिनियम के तहत नागरिकता प्राप्त‌ि के लिए प्रयासरत व्यक्ति के लिए निर्धारणीय कारक नहीं हो सकता है।"

"नागरिक अधिनियम के तहत एक व‌िदेशी नागरिक, भारतीय नागर‌िक के साथ विवाह करने क बाद भारतीय नागरिक नहीं बनता है। विवाह के बाद, विदेशी नागरिक के पास भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत होने का विकल्प होता है। फिर भी, भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने से पहले व्यक्ति को व्यक्ति को निवास की आवश्यकता को पूरा करना होता है।"

वोटर आईडी, आधार, पैन कॉर्ड भारतीय नागरिकता का सबूत नहीं है

अदालत ने इस विवाद पर भी विचार किया कि वोटर आईडी, आधार और पैन कार्ड जैसे दस्तावेज हैं नागरिकता के सबूत है या नहीं?

पीठ ने कहा,

मतदाता सूची में किसी व्यक्ति के नाम का पंजीकरण, वास्तव में, नागरिकता प्रदान नहीं करता है। पैन कार्ड का उद्देश्य भारतीय राज्य को करों के भुगतान की सुविधा प्रदान करना है, विदेशियों को भी कर भुगतान करना पड़ सकता है ... आधार कार्ड प्राप्त करने के लिए पात्रता मानदंड भारत में 182 दिनों या उससे अधिक की अवधि के लिए निवास है, नागरिकता नहीं। आधार अधिनियम, 2016 की धारा 9 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आधार संख्या या प्रमाणीकरण अपने आप में किसी भी अधिकार को प्रदान नहीं करेगा या आधार संख्या धारक के नागरिकता या अधिवास का प्रमाण नहीं होगा। RBI के तहत बैंकिंग नियम बैंक खातों या अन्य बैंकिंग दस्तावेज का नागरिकता के प्रमाण के रूप में मानने या न मानने पर कुछ नहीं कहता है। मनी लॉन्ड्रिंग की रोकथाम के लिए, बैंक खाता खोलने वाले व्यक्तियों की पहचान और पते का प्रमाण आवश्यक है। हालांकि, भारत में बैंक खाता होने के लिए नागरिकता एक मानदंड नहीं है।

मतदाता पहचान पत्र भारतीय नागरिकता का अविवादित साक्ष्य नहीं हैं। मतदाता पहचान पत्र जारी करने से संबंधित अनुमान को एक शिकायत द्वारा चुनौती दी जा सकती है, जो पंचायत अधिनियम की धारा 136 के तहत सामग्री तथ्यों को बताती है।

पीठ ने याचिकाकर्ता को यह कहते हुए केंद्र सरकार को निर्देश देने से इनकार कर दिया कि वह याचिकाकर्ता को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का निर्देश दे, क्योंकि यह कार्यकारी के कार्यों के प्रभावित करेगा।

कोर्ट ने कहा, याचिकाकर्ता की स्थिति, भारत में उनका साधारण निवास और पारिवारिक जीवन; और भारत की अंतर्राष्ट्रीय कानूनी बाध्यता के तहत राज्यविहीनता की स्‍थ‌िति को रोकने के लिए, हम निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता के आवेदन प्राप्त होने पर, यदि आवेदन दायर किया जाता है, तो उचित प्राधिकारी उस पर शीघ्रता से विचार कर सकता है..."

अदालत ने इस प्रकार माना कि राज्य निर्वाचन आयोग को पंचायत अधिनियम की धारा 136 (1) के तहत निर्दिष्ट आधार पर चुनाव को रद्द कर सकता है, क्योंकि याचिकाकर्ता भारतीय नागरिक नहीं है।

केस टाइटल: किरण गुप्ता बनाम राज्य चुनाव आयोग

केस नंबर: Letters Patent Appeal No.139 of 2020

कोरम: चीफ जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एस कुमार

वकील: एडवोकेट राजेश सिंह (अपीलकर्ता के लिए), एडवोकेट अमित श्रीवास्तव (चुनाव आयोग के लिए), एजी ललित किशोर

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