पहली पत्नी द्वारा पति की दूसरी शादी के लिए सहमति न देना, मुस्लिम जोड़े की सुरक्षा के मामले में एक प्रासंगिक कारक नहींः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2020-12-22 05:30 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक मामले में टिप्पणी करते हुए बुधवार (16 दिसंबर) को कहा कि,''पहली पत्नी की सहमति के बिना याचिकाकर्ताओं के विवाह की कथित अवैधता के मामले पर वर्तमान कार्यवाही में विचार नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह मामला केवल याचिकाकर्ताओं को सुरक्षा प्रदान करने से संबंधित है।''

न्यायमूर्ति अलका सरीन की खंडपीठ एक मुस्लिम कपल की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने प्रतिवादी नंबर 4 से 7 की इच्छा के खिलाफ विवाह कर लिया था, जो महिला के रिश्तेदार हैं और आरोप लगाया था कि उनको इन सभी प्रतिवादियों से अपनी जान को खतरा है।

दिलचस्प बात यह है कि सुरक्षा देने की मांग करते हुए दायर की गई इस याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की पहली पत्नी भी अपने वकील के माध्यम से पेश हुई और उसकी तरफ से दलील दी गई कि मुस्लिम कानून के अनुसार दूसरी शादी करने के लिए पहली पत्नी की सहमति आवश्यक है।

कोर्ट का अवलोकन

न्यायालय ने उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता नंबर 2 (मुस्लिम महिला) की उम्र 18 वर्ष से अधिक होने के कारण वह याचिकाकर्ता नंबर 1 (मुस्लिम पुरूष,जिसकी आयु 23 से अधिक बताई जा रही है) से मुस्लिम कानून के अनुसार शादी करने के लिए सक्षम थी।

इस प्रकार, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि दोनों याचिकाकर्ता ''मुस्लिम कानून द्वारा परिकल्पित विवाह योग्य आयु के हैं।''

पहली पत्नी की सहमति के बिना याचिकाकर्ताओं के विवाह की कथित अवैधता के बारे में, अदालत ने कहा कि यह तत्काल कार्यवाही में विचार किया जाने वाला एक प्रासंगिक कारक नहीं था, जो केवल याचिकाकर्ताओं को सुरक्षा प्रदान करने के बारे में थी।

इस पृष्ठभूमि में, कोर्ट ने कहा,

"यह मुद्दा विवाह की वैधता का नहीं है, लेकिन तथ्य यह है कि याचिकाकर्ता भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिली जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण प्रदान करता है और आगे कहता है कि कोई भी व्यक्ति कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के सिवाय अपने जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं होगा।''

याचिकाकर्ताओं को संरक्षण देते हुए कोर्ट ने कहा,

''अदालत इस तथ्य पर अपनी आँखें बंद नहीं कर सकती है कि याचिकाकर्ताओं के आशंका को संबोधित करने की आवश्यकता है। केवल इसलिए कि याचिकाकर्ताओं ने अपने परिवार के सदस्यों की इच्छा के खिलाफ शादी कर ली है, उनको भारत के संविधान में परिकल्पित मौलिक अधिकारों से संभवतः वंचित नहीं किया जा सकता है।''

इस प्रकार, याचिका का निपटारा करते हुए पुलिस अधीक्षक, नूंह, हरियाणा को निर्देश दिया गया है कि वह याचिकाककर्ताओं के 23 नवम्बर 2020 के ज्ञापन पर निर्णय लें और और कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करें।

केस का शीर्षक - जकार व अन्य बनाम हरियाणा राज्य व अन्य,सीआरडब्ल्यूपी नंबर 9956/2020 (क्यू एंड एम)

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