गुवाहाटी हाईकोर्ट ने फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के भारत में कथित प्रवेश की तारीख के संदर्भ के बिना एक महिला को विदेशी घोषित करने का आदेश खारिज किया

Update: 2021-12-15 14:30 GMT

Gauhati High Court

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के एक महिला को 'विदेशी' घोषित करने का आदेश रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने यह निर्देश यह देखते हुए दिया कि ट्रिब्यूनल ने उस अवधि को निर्दिष्ट नहीं किया जिसके दौरान महिला पर भारत आने का आरोप लगाया गया था।

कोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल द्वारा प्रवेश की अवधि का उल्लेख न करना 'घातक' है और इसलिए इस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति एन कोटेश्वर सिंह और न्यायमूर्ति मलाश्री नंदी की पीठ ने कहा कि जिन लोगों ने 01.01.1966 से पहले भारत में प्रवेश किया आमतौर पर वे असम के निवासी है। उन्हें विदेशी नहीं बल्कि भारतीय नागरिक कहा जाता है। भले ही इन लोगों ने भारत में अवैध रूप से प्रवेश किया हो। इस प्रकार प्रवेश की तिथि का निर्धारण प्रासंगिक हो जाता है।

कोर्ट ने कहा,

"ट्रिब्यूनल की ओर से उस समय के संदर्भ में राय देना आवश्यक है जब याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर भारत (असम) में प्रवेश किया था। हालांकि यह राय से स्पष्ट नहीं किया गया और इस तरह हम इस विचार से कि उक्त राय कानून में कायम नहीं रह सकती है और तदनुसार नए विचार के लिए ट्रिब्यूनल को प्रेषित करने की आवश्यकता है।"

वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता ने फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल, चौथा, नगांव, जुरिया (असम) द्वारा जारी एक अक्टूबर, 2018 के आदेश को चुनौती दी थी। इसके द्वारा याचिकाकर्ता को उस अवधि के संदर्भ के बिना विदेशी घोषित किया गया था, जिसके दौरान उस पर भारत आने का आरोप लगाया गया था।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि किसी व्यक्ति को आम तौर पर विदेशी घोषित नहीं किया जा सकता। इस तरह के आदेश में भारत में प्रवेश की अवधि का कुछ संदर्भ होना चाहिए कि क्या यह एक जनवरी, 1966 के बीच और 25 मार्च, 1971 को या उससे पहले था। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रवेश की ऐसी अवधि का उस अधिकार की प्रकृति पर प्रभाव पड़ेगा जो एक व्यक्ति के पास कानून के तहत होगा।

यह आगे न्यायालय को बताया गया कि सत्यापन रिपोर्ट के अवलोकन से पता चलता है कि प्रवास की अवधि के लिए कॉलम नहीं भरा गया। इस प्रकार, यह तर्क दिया गया कि इस बात का कोई संकेत नहीं है कि याचिकाकर्ता को कब असम में प्रवेश किया गया था, जैसा कि प्रारूप में उल्लेख किया जाना आवश्यक है।

हाईकोर्ट ने उठाई गई शिकायत का संज्ञान लेते हुए कहा कि प्रवेश की अवधि का उल्लेख न करना नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A(2) के अनुसार 'घातक' होगा, भारतीय मूल के वे सभी व्यक्ति जो असम आए थे। एक जनवरी, 1966 से पहले निर्दिष्ट क्षेत्र और जो असम में उनके प्रवेश की तारीख से असम में सामान्य रूप से निवासी हैं, उन्हें एक जनवरी, 1966 से भारत का नागरिक माना जाएगा। इस प्रकार, वे व्यक्ति भले ही अवैध रूप से भारत में प्रवेश कर चुके हों एक जनवरी, 1966 से पहले और आमतौर पर असम के निवासी थे, उन्हें विदेशी नहीं बल्कि भारतीय नागरिक कहा जाएगा।

कोर्ट ने आगे स्पष्ट किया,

"जैसा कि धारा 6ए(3) के तहत कहा गया कि वे व्यक्ति जो 01.01.1966 को या उसके बाद असम आए थे, लेकिन 25.03.1971 से पहले निर्दिष्ट क्षेत्र से आए थे और जो आमतौर पर असम के निवासी थे, ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी के रूप में पाए गए हैं, उन्हें निर्वासित नहीं किया जाएगा। उनका भारत के नागरिकों के रूप में पंजीकृत होने का अधिकार होगा। बशर्ते कि वे संबंधित पंजीकरण प्राधिकारी के साथ ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी के रूप में पाए जाने के बाद खुद को पंजीकृत करते हैं और उसके बाद 10 (दस) वर्षों की समाप्ति के बाद उन्हें भारतीय नागरिकों के रूप में स्वीकार किया जाएगा। हालांकि, जो लोग 25.03.1971 के बाद असम आए वे विदेशी होंगे और ऐसे किसी भी लाभ के हकदार नहीं होंगे।"

तदनुसार, कोर्ट ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वह फिर से ट्रिब्यूनल से संपर्क करे और उचित जांच और संदर्भ के अभाव के बारे में अपनी शिकायत दर्ज करे। वर्तमान मामले में असम राज्य और अन्य बनाम मुस्लिम संगठन और अन्य में गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया गया।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता को चार जनवरी, 2022 को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाने का निर्देश दिया और ट्रिब्यूनल को याचिकाकर्ता को सुनने के बाद कानून के अनुसार एक नया आदेश पारित करने का आदेश दिया।

कोर्ट ने आगे टिप्पणी की,

"यह स्पष्ट है कि संदर्भ दिए जाने से पहले एक उचित जांच होनी चाहिए। संदर्भ केवल रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्रियों के आधार पर किया जा सकता है और ट्रिब्यूनल को भी कार्यवाही करने वाले को नोटिस जारी करने से पहले मुख्य आधार की प्रथम दृष्टया स्वयं के अस्तित्व के बारे में संतुष्ट करने की आवश्यकता है।"

संबंधित मामले में गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक दिसंबर को एक फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल द्वारा एक सिलचर निवासी को विदेशी घोषित करने के एक पक्षीय आदेश को भी खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने यह देखते हुए फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल का आदेश खारिज किया कि ट्रिब्यूनल ठीक से नोटिस देने में विफल रहा और इस प्रकार उसने कार्यवाही को अवैध बना दिया।

केस शीर्षक: अस्मिना बेगम बनाम भारत संघ

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