किसान आत्महत्याः कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा, राज्य सरकार की केवल बैंकों से कर्ज लेने वाले किसानों को मुआवजा देने की नीति भेदभावपूर्ण
कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य के मुख्य सचिव को स्पष्ट स्टैंड रखने का निर्देश दिया कि क्या निजी उधारदाताओं से उधार लेने के बाद आत्महत्या कर चुके किसानों के परिजनों को 5 लाख रुपए की सरकारी सहायता से बाहर रखा जाएगा।
चीफ जस्टिस अभय ओका और जस्टिस एस विश्वजीत शेट्टी की खंडपीठ ने राज्य सरकार के वर्गीकरण पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें केवल उन किसानों के परिजनों को वित्तीय सहायता दी जाती है, जिन्होंने बैंकों और वित्तीय संस्थानों से उधार लेने के बाद आत्महत्या कर ली थी।
पीठ ने मौखिक रूप से कहा, "प्रथम दृष्टया जिस कारण से किसान आत्महत्या करता है वह महत्वपूर्ण है ... कारण यह है कि वह कर्ज में दबा है ... वह कर्ज नहीं चुका पा रहा है, इसलिए उसने आत्महत्या करने का रास्ता चुना। जिन किसानों ने बैंकों और क्रेडिट सोसाइटियों से कर्ज लिया है और आत्महत्या कर ली है और जिन्होंने निजी उधारदाताओं से कर्ज लिया है और आत्महत्या कर ली है, उन दोनों क्या अंतर है? राज्य ने दोनों के बीच अंतर क्यों किया है? "
पीठ ने आदेश में मुख्य सचिव से तीन सप्ताह में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है, और स्थिति की गंभीरता का आकलन करने का आग्रह किया है।
अदालत ने कहा, "केवल एक तालुका में पांच साल के भीतर किसानों की आत्महत्या के लगभग 125 मामले हैं। हमें यकीन है कि मुख्य सचिव इस बात पर विचार करेंगे कि कुछ किसान कर्ज लेने के लिए निजी उधारदाताओं से संपर्क करने के लिए मजबूर क्यों हैं।"
पीठ ने कृषि आयुक्त और महानिदेशक, पर्यावरण प्रबंधन और नीति अनुसंधान संस्थान आयुक्त बृजेश कुमार दीक्षित के हलफनामे के अवलोकन के बाद यह निर्देश दिया।
हलफनामे में कहा गया है कि "सरकार का इस पर नियंत्रण नहीं है और न ही किसानों को निजी ऋणदाताओं से ऋण लेने के लिए रोकने का कोई विनियमन है और इसलिए यह पहलू किसानों को लाभ का विस्तार करने की पात्रता निर्धारित करने के कारणों में से एक है।"
इसमें कहा गया है, "हालांकि, अगर वही परिवार, जो निजी ऋणदाता के हाथों पीड़ित हैं, उन्होंने बैंकों या अन्य अधिसूचित संस्थानों से भी लोन लिया है, तो ऐसे परिवार लाभ के हकदार है, यह किसी और या अन्य सभी शर्तों की संतुष्टि के अधीन है। "
पीठ ने कहा "आत्महत्या कर चुके किसानों के परिजनों को सहायता के लिए अपनाया जा रहा तरीका काफी चौंकाने वाला है।"
पीठ ने कहा कि "यह स्पष्ट है कि राज्य ने आत्महत्या कर चुके किसानों के दो कृत्रिम वर्ग बनाए हैं। पहली श्रेणी में वे किसान हैं, जिन्होंने बैंकों / क्रेडिट सोसाइटी आदि से कर्ज लिया है या पैसा उधार लिया है। दूसरा वर्ग उन किसानों का है, जिन्होंने ऋणदाताओं से पैसे लिए हैं। राज्य सरकार ने उन किसानों के परिवारों को मुआवजा देने से इनकार कर दिया है जिन्होंने निजी ऋणदाताओं से पैसे लिए हैं और आत्महत्या की है।"
पीठ ने आगे कहा, "प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि आत्महत्या का कारण किसानों द्वारा कर्ज को ब्याज सहित चुकाने में असमर्थता है। इसलिए, प्रथम दृष्टया यह स्वीकार करना बहुत मुश्किल है कि राज्य सरकार द्वारा किया गया वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 14 के परीक्षण पर खरा उतरेगा।"
पीठ ने मुख्य सचिव को आयुक्त द्वारा दायर हलफनामे को देखने और अपना हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। इसने राज्य सरकार को जिला यादिगीर में जिला शिकायत निवारण समिति द्वारा निस्तारित शिकायतों/ समस्याओं के रिकॉर्ड विवरण भी देने का निर्देश दिया।
कोर्ट को दी गई जानकारी के अनुसार, 2016 से 2020-21 तक, यादगीर जिले के शाहपुर तालुक में 125 किसानों ने आत्महत्या की है। आत्महत्या करने वाले 125 किसानों में से 105 किसानों के परिवार मुआवजे के हकदार हैं। जिन 20 परिवारों को अयोग्य ठहराया गया, उनमें आत्महत्या करने वाले किसानों ने बैंकों से पैसा नहीं लिया था। पात्र पाए गए 105 परिवारों में से अभी भी 7 परिवारों को मुआवजा नहीं दिया गया है।
अखंडा कर्नाटक रायथा संघ द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिए गए। याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट क्लिफ्टन डी रोजारियो पेश हुए।
याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने उन किसानों के परिवारों के लिए मौद्रिक मुआवाज समेत विभिन्न राहतों की घोषणा की है। हालांकि, दुर्भाग्य से, तालुक में आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों को सभी राहत नहीं दी गई है, कुछ परिवारों को आज तक कोई राहत नहीं मिली है।
याचिका में 2016 के मानसून सीजन और बाद के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत सभी बीमित किसानों को फसल बीमा क्षति मुआवजा देने के लिए प्रतिवादियों को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।
मामले की अगली सुनवाई 29 मार्च को होगी
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