किसान आत्महत्या : उच्च न्यायालय की फटकार के बाद कर्नाटक सरकार ने निजी ऋणदाताओं के कर्जदारों को मुआवजा योजना में शामिल किया

Update: 2021-07-14 10:13 GMT

कर्नाटक सरकार ने मंगलवार को कर्नाटक उच्च न्यायालय को सूचित किया कि उसने उन किसानों के परिवारों को मुआवजा देने का फैसला किया है, जिन्होंने लाइसेंस प्राप्त निजी साहूकारों से लिए ऋण को ना चुकाने के कारण आत्महत्या कर ली थी।

राज्य सरकार ने 8 जुलाई के अपने आदेश को अदालत के रिकॉर्ड में रखा, जिसमें कहा गया था कि "यदि किसी किसान ने लाइसेंस प्राप्त साहूकार से ऋण लिया है और यदि वह ऋण चुकाने में सक्षम नहीं होने के कारण आत्महत्या करता है, तो उसे उन किसानों के समान मुआवजा दिया जाएगा, जिन्होंने बैंकों से कर्ज लेने के बाद आत्महत्या की थी।"

इससे पहले, उच्च न्यायालय ने आत्महत्या कर चुके किसानों के बीच वर्गीकरण करने के लिए राज्य सरकार की खिंचाई की थी, राज्य सरकार की पुरानी नीति के अनुसार, केवल उन किसानों को वित्तीय सहायता दी जाती है, जिन्होंने बैंकों और वित्तीय संस्थानों से उधार लेकर आत्महत्या कर ली।

चीफ जस्टिस अभय ओका की अध्यक्षता में एक पीठ ने कहा , "प्रथम दृष्टया वह कारण महत्वपूर्ण है, जिसके लिए किसान आत्महत्या करता है... क्योंकि वह बहुत अधिक ऋणी है... वह ऋण चुकाने में सक्षम नहीं है इसलिए उसने आत्महत्या करने का विकल्प चुना है। बैंकों और ऋण समितियों से पैसा लेने वाले और आत्महत्या करने वाले किसानों के वर्ग और निजी साहूकारों से ऋण लेने और आत्महत्या करने वाले किसानों के बीच क्या अंतर है? राज्य ने दोनों के बीच अंतर क्यों किया है?"

इसमें कहा गया था, "प्रथम दृष्टया हमें ऐसा लगता है कि आत्महत्या का कारण किसानों द्वारा उधार ली गई राशि को ब्याज के साथ चुकाने में असमर्थता है। इसलिए, प्रथम दृष्टया यह स्वीकार करना बहुत मुश्किल है कि राज्य सरकार द्वारा किया गया वर्गीकरण भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 की कसौटी पर खरा उतरेगा।

कृषि आयुक्त और पर्यावरण प्रबंधन और नीति अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक बृजेश कुमार दीक्षित द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया था कि "सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है और न ही कोई विनियमन है, जो किसानों को निजी साहूकारों से कोई ऋण लेने से रोकता है और इसलिए यह पहलू लाभ का विस्तार करने के लिए किसानों की पात्रता निर्धारित करने के कारणों में से एक है।"

अदालत ने 21 अप्रैल के अपने आदेश में राज्य सरकार के मुख्य सचिव को कृषि आयुक्त के हलफनामे में दिए गए बयानों पर गौर करने का निर्देश दिया था। मुख्य सचिव को यह स्पष्ट करना था कि क्या निजी साहूकारों से ऋण लेने वाले और आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों को 5,00,000 रुपये की सरकारी सहायता से बाहर रखा जा सकता है।

अदालत ने कल राज्य सरकार को उन किसानों के परिवारों की पहचान करने का निर्देश दिया, जिन्होंने निजी लाइसेंस प्राप्त साहूकारों से लिए गए ऋण को चुका ना पाने के कारण आत्महत्या कर ली और 8 जुलाई के आदेश के तहत चिन्हि‌त किए गए किसानों के परिजनों के मुआवजे के मामलों पर सीधे विचार किया। इसके अलावा, पहले किसानों को इस आधार पर मुआवजे से वंचित कर दिया गया था कि उन्होंने बैंक से ऋण नहीं लिया था, उनके मामलों पर 8 जुलाई के आदेश के अनुसार विचार करना होगा।

राज्य सरकार को 8 जुलाई के आदेश के तहत लाभार्थी परिवारों की पहचान के लिए आवश्यक निर्देश जारी करने और परिवारों को आवश्यक राहत सुनिश्चित करने के लिए भी निर्देशित किया गया था।

अदालत ने राज्य सरकार को इस पर 13 अगस्त तक अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। अदालत ने याचिकाकर्ता अखंड कर्नाटक रायता संघ को उस आदेश के खंड को चुनौती देने के लिए एक आवेदन दायर करने की भी अनुमति दी, जिसके जर‌िए उन किसानों को मुआवजा नहीं दिया जाता है, जिन्होंने निजी साहूकारों से ऋण लिया, जिनके पास लाइसेंस नहीं है और उन्होंने आत्महत्या कर ली है।

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