तथ्य विवादित हैं इसलिए पिंक पुलिस अधिकारी द्वारा लड़की को कथित तौर पर प्रताड़ित करने पर वह मुआवज़े की हकदार नहीं: केरल हाईकोर्ट में राज्य सरकार ने कहा

Update: 2021-12-20 10:39 GMT

केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट के समक्ष केरल राज्य ने प्रस्तुत किया कि आठ वर्षीय बच्ची और उसके पिता, जिन्हें पिंक पुलिस ने कथित तौर पर सार्वजनिक रूप से प्रताड़ित किया था, पब्‍लिक लॉ रेमेडी के हकदार नहीं हैं क्योंकि मामले के तथ्य विवादित हैं।

इस मामले में महिला पुलिस अधिकारी के खिलाफ आरोप यह था कि वह लड़की और उसके पिता के पास गई, दोनों को अपना मोबाइल फोन वापस करने के लिए उन पर चिल्लाई और दावा किया कि उन दोनों ने फोन चुपके से हटा दिया था।

कोर्ट ने पिछले हफ्ते याचिकाकर्ता को संवैधानिक अपकृत्य के तहत मुआवजा देने के बारे में राज्य के विचार मांगे थे । 

अतिरिक्त लोक अभियोजक पी नारायणन के माध्यम से प्रस्तुत तर्क में कहा गया है कि एक प‌ब्‍लिक लॉ रेमेडी का लाभ तभी उठाया जा सकता है, जब तथ्य निर्विवाद हों और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के उल्लंघन का कोई मामला हो।

उन्होंने तर्क दिया किया मौजूदा मामले में तथ्य विवादित हैं और कोई निर्णायक निष्कर्ष नहीं हो सकता कि उक्त पुलिस अधिकारी की कोई भी कार्रवाई अनुच्छेद 21 के तहत याचिकाकर्ता को दिए गए मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

राज्य ने आगे तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के बयान गवाहों के बयानों पर आधारित थे। यह बताया गया कि ये बयान केवल पुलिस द्वारा की गई जांच की वास्तविकता दिखाने के लिए कोर्ट के समक्ष पेश किए गए हैं।

यह भी प्रस्तुत किया गया था कि कोर्ट न्यायिक निर्णय के लिए विभागीय अधिकारियों द्वारा फैक्ट फाइंडिंग (नॉन-स्टेट्यूटरी) के दौरान गवाहों द्वारा दिए गए बयानों पर भरोसा नहीं कर सकता, क्योंकि बयानों की सत्यता की जांच जिरह के अधीन करके नहीं की जाती है।

मौजूदा विवाद में प्राथमिक तथ्य यह ‌थे कि पुलिस अधिकारी ने घटना के दौरान बच्चे को अपमानित करने के लिए कुछ भी नहीं कहा। यह बताया गया था कि स्वतंत्र गवाह मामले में विशेष रूप से सबूत थे।

राज्य सरकार ने कहा कि 19.11.2021 के अपने आदेश में इस न्यायालय ने खुद कहा था कि "इस न्यायालय के लिए यह निष्कर्ष निकालना बहुत जल्दबाज़ी होगी कि इस रिट याचिका में लगाए गए आरोप सही हैं या गलत।"

इस आधार पर यह तर्क दिया गया था कि चूंकि आरोप की सत्यता पर कोर्ट द्वारा विचार किया जाना बाकी है, इसलिए राज्य किसी भी मुआवजे की पेशकश करने की स्थिति में नहीं हो सकता।


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