सीआरपीसी की धारा 482 के तहत असाधारण शक्ति का प्रयोग ऐसे रसूखदार आरोपियों के लिए नहीं किया जा सकता, जो कानून तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट की असाधारण शक्तियों का प्रयोग ऐसे रसूखदार आरोपियों के लिए नहीं किया जा सकता, जो कानून तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।
जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने रेलिगेयर फिनवेस्ट के पूर्व प्रमोटर मलविंदर मोहन सिंह द्वारा रेलिगेयर फिनवेस्ट घोटाला मामले के संबंध में दायर याचिका को खारिज कर दिया।
इस याचिका में ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित सात दिसंबर, 2021 के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसने हिरासत में रहते हुए जेल परिसर के बाहर सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और विभिन्न जिला न्यायालयों के समक्ष कार्यवाही की तैयारी के लिए अपने वकीलों के साथ फिजिकल रूप से परामर्श करने के उनके अनुरोध को खारिज कर दिया था।
याचिका में जेल अधीक्षक को दिल्ली हाईकोर्ट मध्यस्थता केंद्र में हिरासत में रहते हुए एडवोकेट के साथ फिजिकल मीटिंग की सुविधा देने का निर्देश देने की भी मांग की गई है।
मोहन ने दिल्ली जेल नियम, 2018 सपठित भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत पर्याप्त प्रतिनिधित्व के अपने अधिकार को सुरक्षित करने में विफल रहने के लिए आक्षेपित आदेश और उससे निकलने वाली किसी भी कार्यवाही को भी चुनौती दी है।
न्यायालय का विचार था कि धारा के तहत असाधारण शक्ति का उपयोग सीआरपीसी की धारा 482 को केवल असाधारण मामलों के लिए आरक्षित करने की आवश्यकता है, जहां मामले के तथ्यों के अनुसार न्यायिक विवेक आवश्यक है।
इस प्रकार, अदालत ने कहा कि अन्य लोगों के साथ आरोपी पर ईडी द्वारा 2397 करोड़ की अपराध की आय को ठगने का आरोप लगाया गया।
इस पृष्ठभूमि में कोर्ट ने कहा:
"आर्थिक अपराध न केवल राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के लिए बल्कि बड़े पैमाने पर समाज के लिए भी हानिकारक हैं। वंचितों और दलितों को अक्सर ऐसे अपराधों के परिणाम भुगतने पड़ते हैं। इस न्यायालय की असाधारण शक्तियों का प्रयोग ऐसे रसूखदार आरोपियों के लिए नहीं किया जा सकता, जो कानून तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।"
अदालत ने कहा कि मोहन को उसके वकील के साथ फिजिकल मीटिंग की सुविधा देकर विशेष उपचार देने के लिए असाधारण रिट अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने आगे कहा,
"न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग किसी भी न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए किया जाता है। हालांकि याचिकाकर्ता उक्त प्रावधान के तहत न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता की आड़ में प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग करने का प्रयास कर रहा है।"
कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 न्याय के लक्ष्य को सुरक्षित करने के लिए है अन्यथा संहिता की योजना को दरकिनार करने के लिए इसे बदला नहीं जा सकता है।
अदालत ने निष्कर्ष निकाला,
"पूर्वोक्त के आलोक में इस न्यायालय को याचिकाकर्ता द्वारा मांगी जा रही राहत देने के लिए अपने असाधारण अधिकार क्षेत्र को लागू करने के लिए कोई ठोस कारण या कोई ठोस आधार नहीं मिला है।"
तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।
दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने रेलिगेयर फिनवेस्ट लिमिटेड के अधिकृत प्रतिनिधि मनप्रीत सिंह सूरी की शिकायत पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा आईपीसी की धारा 409, 420 और 120बी के तहत एफआईआर नंबर 50/19 दर्ज की गई है।
उक्त एफआईआर के अनुसार, आरोपी व्यक्तियों पर रेलिगेयर एंटरप्राइजेज लिमिटेड और उसकी सहायक कंपनियों पर पूर्ण नियंत्रण होने का आरोप लगाया गया, जिन्होंने कथित रूप से उन कंपनियों को लोन देकर "खराब वित्तीय स्थिति" में डाल दिया, जिनकी कोई वित्तीय स्थिति नहीं थी। उन पर उक्त आरोपियों का नियंत्रण नहीं था। एफआईआर के अनुसार, आरोपी व्यक्तियों ने एक-दूसरे की मिलीभगत से जनता के 2397 करोड़ रुपये की ठगी की।
इसके अलावा, यह आरोप लगाया गया कि ऐसी संस्थाओं ने लोन चुकाने में जानबूझकर चूक की और उसके बाद आरएफएल को 2397 करोड़ रुपये का गलत नुकसान हुआ। एफआईआर में यह भी कहा गया कि उक्त विसंगतियों को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नोट किया गया था।
वर्तमान एफआईआर में मलविंदर मोहन सिंह को 11.10.2019 को गिरफ्तार किया गया था। पहली चार्जशीट 06.01.2020 को दायर की गई और अपराध का संज्ञान 15.01.2020 को न्यायालय द्वारा लिया गया। इसके बाद मामले में पूरक आरोप पत्र भी दाखिल किया गया।
केस टाइटल: मालविंदर मोहन सिंह बनाम प्रवर्तन निदेशालय और अन्य
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 445
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