हिंदू विवाह अधिनियम के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए पति और पत्नी के बीच गंभीर विवाद का होना, पूर्वशर्त नहींः छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि पति और पत्नी के बीच गंभीर विवाद, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-बी के तहत आपसी सहमति से तलाक की पूर्वशर्त नहीं है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि आपसी सहमति से तलाक के बजाय न्यायिक पृथक्करण यांत्रिक तरीके से प्रदान नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की खंडपीठ ने कहा, "अधिनियम, 1955 की धारा 13-बी में निहित प्रावधान, धारा 13 में शामिल प्रावधानों के अनुसार, आपसी सहमति से तलाक देने का आधार प्रदान नहीं करते हैं।
आपसी सहमति से तलाक के लिए विवाहित जोड़ों के बीच गंभीर विवाद की जरूरत नहीं है। किसी दिए गए मामले में हो सकता है कि युगल के बीच कोई झगड़ा या विवाद न हो लेकिन फिर भी उनके कार्य और व्यवहार एक-दूसरे के साथ सुखी और शांतिपूर्ण विवाहित जीवन जीने के लिए संगत ना हों, इसलिए वे आपसी सहमति से तलाक की मांग कर सकते हैं।"
कोर्ट ने ये अवलोकन, 12 दिसंबर, 2018 को ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए न्यायिक पृथक्करण के खिलाफ दायर एक याचिका पर दिया, जिसमें अधिनियम की धारा 13-बी के तहत आपसी सहमति से तलाक देने की कार्यवाही की गई थी।
दोनों पक्षों ने फरवरी 2017 से शादी की थी और केवल दो दिन ही साथ रहे थे, और शादी के एक साल बाद, मार्च 2018 में आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन दिया था।
ट्रायल कोर्ट ने धारा 13-ए का हवाला देकर, जो तलाक की कार्यवाही में वैकल्पिक राहत प्रदान करता है, आपसी सहमति से तलाक के बजाय, एक वर्ष की अवधि के लिए न्यायिक अलगाव का फैसला सुनाया।
उक्त डिक्री को पारित करते समय, ट्रायल कोर्ट ने कहा कि उनके साथ रहने की अवधि इतनी कम है कि यह संभव नहीं है कि उनके बीच कोई गंभीर विवाद पैदा हो।
हाईकोर्ट ने उक्त प्रावधान का विश्लेषण करते हुए कहा कि धारा 13-ए केवल उन्हीं मामलों में लागू होगा, जहां ट्रायल कोर्ट संतुष्ट हो कि आपसी तलाक के बजाय न्यायिक पृथक्करण के लिए डिक्री पारित करना है।
कोर्ट ने कहा, "वाक्यांश "मामले की परिस्थितियों के संबंध में" ट्रायल कोर्ट को उन परिस्थितियों का पता लगाने की आवश्यकता होती है जो इसे न्यायिक पृथक्करण के लिए एक डिक्री पारित करने के लिए मजबूर करती हैं। जब तक ऐसी परिस्थितियां नहीं होती हैं, ट्रायल कोर्ट को न्यायिक पृथक्करण के लिए यांत्रिक तरीके से डिक्री पारित करने की अनुमति नहीं है।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि "ट्रायल कोर्ट ने यह मान लिया था कि पक्षकारों के बीच विवाद इतना तीव्र नहीं हो सकता है कि वे आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए मजबूर हो जाएं।"
यह कहते हुए कि गंभीर विवाद धारा 13-बी के तहत पूर्व शर्त नहीं है, कोर्ट ने कहा- -"यदि कोई आवेदन अन्यथा विधिवत रूप से और उचित रूप से कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, तो कोर्ट की जिम्मेदारी यह नहीं होगी कि वह उस आधार या कारण की तलाश करे, जिसने पक्षों को आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए मजबूर किया है।"
इन टिप्पणियों के मद्देनजर, कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट को न्यायिक पृथक्करण के लिए डिक्री के बजाय आपसी सहमति से तलाक का आदेश पारित करना चाहिए था।
कोर्ट ने कहा, "इसलिए, हम अपील की अनुमति देते हैं और न्यायिक पृथक्करण की डिक्री को रद्द करते हैं और इसके बजाय आपसी सहमति से तलाक की डिक्री पारित करते हैं।"
टाइटिल: संध्या सेन बनाम संजय सेन
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