जवाब में इनकार ना होने पर मध्यस्थता समझौते के अस्तित्व का अनुमान लगाया जा सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि ए एंड सी एक्ट की धारा 7(4)(सी) के तहत "दावा और बचाव का बयान" शब्दों की व्यापक व्याख्या की जा सकती है और मध्यस्थता के नोटिस का जवाब इसी धारा के अंतर्गत आता है।
जस्टिस एसआर कृष्ण कुमार ने कहा कि धारा 7(4)(सी) के अनुसार एक मध्यस्थता समझौता मौजूद होगा यदि याचिकाकर्ता ने मध्यस्थता के अपने नोटिस में इसके अस्तित्व का दावा किया है और प्रतिवादी ने नोटिस के जवाब में इसके अस्तित्व से इनकार नहीं किया है।
कोर्ट ने कहा कि यदि दो समझौते आंतरिक रूप से परस्पर जुड़े हैं और एक ही परियोजना से संबंधित हैं, तो एक एग्रीमेंट में मध्यस्थता समझौते को दोनों अनुबंधों के जुड़े विवाद के लिए लागू किया जा सकता है।
तथ्य
पार्टियों ने राजभवन और संबद्ध कार्यों के उन्नयन के लिए 27 अप्रैल 2011 को दो समझौते किए। अनुबंध के तहत कार्य के भुगतान को लेकर पक्षों में विवाद हो गया।
इसके बाद, याचिकाकर्ता ने 19 फरवरी 2020 को मध्यस्थता का नोटिस जारी किया, जिसमें दोनों समझौते के लिए अपने मध्यस्थ नामित किया और प्रतिवादी से अपना नामित मध्यस्थ नियुक्त करने का अनुरोध किया।
प्रतिवादी ने 15 मई 2020 के अपने उत्तर में याचिकाकर्ता को किसी भी देय राशि का भुगतान करने के लिए अपनी देयता से इनकार किया, हालांकि इसने मध्यस्थता समझौते के अस्तित्व से इनकार नहीं किया। नतीजतन, याचिकाकर्ता ने मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए ए एंड सी एक्ट की धारा 11 के तहत आवेदन दायर किया।
आपत्ति
प्रतिवादी ने याचिका के सुनवाई योग्य होने पर तीन स्तरीय आपत्ति जताई, जो निम्नानुसार है-
-उन समझौतों में से एक में कोई मध्यस्थता खंड नहीं है, जिसके लिए याचिकाकर्ता ने मध्यस्थ की नियुक्ति की मांग की है, इसलिए मध्यस्थता समझौते के न होने के कारण याचिका खारिज किए जाने के लिए योग्य है।
-याचिकाकर्ता का दावा सीमा बाधित है।
-पार्टियों के बीच विवाद को सहमति और संतुष्टि से सुलझा लिया गया है, इसलिए मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए कुछ भी नहीं बचा है।
विश्लेषण
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने 19 फरवरी 2020 को दी गई मध्यस्थता के अपने नोटिस में दोनों समझौतों के लिए मध्यस्थता का दावा किया है और इसने मध्यस्थता समझौते के अस्तित्व पर भी जोर दिया है और प्रतिवादी ने अपने जवाब में भुगतान की देयता से इनकार किया है, लेकिन उसने मध्यस्थता समझौते के अस्तित्व पर विवाद या उससे इनकार नहीं किया है।
न्यायालय ने धारा 7(4)(सी) के संदर्भ में कहा कि यदि याचिकाकर्ता ने मध्यस्थता के अपने नोटिस में मध्यस्थता समझौते के अस्तित्व का दावा किया है और प्रतिवादी ने नोटिस के जवाब में मध्यस्थता समझौते के अस्तित्व से इनकार नहीं किया है तो मध्यस्थता समझौता मौजूद है।
न्यायालय ने माना कि ए एंड सी एक्ट की धारा 7(4)(सी) के तहत "दावा का बयान और बचाव" शब्दों की व्यापक व्याख्या की जानी चाहिए और मध्यस्थता के नोटिस का जवाब इसी धारा के अंतर्गत आता है।
कोर्ट ने आगे कहा कि विचाराधीन दोनों समझौते आंतरिक रूप से आपस में जुड़े हुए हैं हैं क्योंकि वे एक ही परियोजना से संबंधित हैं, जिसके लिए निर्देश भी एक साथ जारी किए गए थे और दोनों को एक ही दिन संयुक्त रूप से निष्पादित किया गया था, इसलिए समझौते में से एक में मध्यस्थता समझौता दोनों अनुबंधों के विवाद के लिए लागू किया जा सकता है।
कोर्ट ने प्रतिवादी की सीमा, समझौते और संतुष्टि के मुद्दों संबंधित तर्क को खारिज कर दिया, कोर्ट ने माना कि ये तथ्यों के विवादित प्रश्न से उत्पन्न होते हैं जिन्हें मध्यस्थ द्वारा ही तय किया जाना चाहिए क्योंकि धारा 11 के स्तर पर जांच का दायरा बहुत सीमित है।
इसी के तहत कोर्ट ने याचिका को मंजूर कर लिया।
केस टाइटल: एसआर रवि बनाम कर्नाटक राज्य पर्यटन विकास निगम, Civil Miscellaneous Petition No. 180 of 2020