भले ही बच्चा सरकारी नौकरी ज्वॉइन करने के पहले पैदा हुआ हो, कर्मचारी मातृत्व अवकाश की हकदार : राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट (जोधपुर खंडपीठ) ने सोमवार (07 दिसंबर) को कहा है कि याचिकाकर्ता (एक महिला सरकारी कर्मचारी) मातृत्व अवकाश लेने की हकदार है, भले ही उसने सरकारी नौकरी ज्वॉइन करने से पहले बच्चे को जन्म दिया हो।
न्यायमूर्ति दिनेश मेहता की खंडपीठ ने विशेष रूप से कहा कि,
''एक महिला सरकारी कर्मचारी मातृत्व अवकाश का लाभ पाने की हकदार है, अगर वह प्रसव की अवधि में नौकरी ज्वॉइन कर लेती है यानी बच्चे को जन्म देने से 15 दिन पहले या बच्चे के जन्म के तीन महीने बाद तक, इस तथ्य से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि बच्चा नियुक्ति आदेश जारी करने से पहले पैदा हुआ है।''
यह ध्यान दिया जा सकता है कि न्यायालय राजस्थान सर्विस रूल्स के नियम 103 पर विचार कर रहा था, जो महिला सरकारी सेवकों को मातृत्व अवकाश प्रदान करने से संबंधित है।
न्यायालय के समक्ष मामला
पीठ इस सवाल पर विचार कर रही थी कि क्या कोई उम्मीदवार, जिसने सरकारी सेवा मेंं नियुक्त होने से पहले बच्चे को जन्म दिया हो, राजस्थान सर्विस रूल्स 1951 के नियम 103 के तहत मातृत्व अवकाश पाने की हकदार है?
अदालत एक महिला सरकारी कर्मचारी द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे 04 जून 2016 को शारीरिक प्रशिक्षण प्रशिक्षक के पद पर नियुक्त किया गया था, और उसने नियुक्ति आदेश प्राप्त करने से कुछ दिन पहले 15 मई 2016 को एक बच्चे को जन्म दिया था।
वह 06 जून 2016 को सेवाओं में शामिल हुईं। जिसके बाद उसने 21 जून 2016 को मातृत्व अवकाश देने के लिए आवेदन दिया, जिसमें उसने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था कि उसने 15 मई 2016 को एक बच्चे को जन्म दिया है।
इसके अलावा, 10 नवंबर 2016 को याचिकाकर्ता ने 142 दिनों तक अनुपस्थित रहने के बाद वापस ड्यूटी ज्वॉइन कर ली थी।
दो साल बाद, अगस्त 2018 में, राज्य सरकार ने वेतन के भुगतान के बिना 90 दिनों के लिए उसकी छुट्टी को मंजूरी दे दी।
इसके अलावा, जुलाई 2019 में, कुल 142 दिनों की छुट्टी को मंजूर कर लिया गया, जिसमें से 90 दिनों को बिना भुगतान के छुट्टी के रूप में माना गया (संचार दिनांक 13.08.2018 के अनुसार) और 52 दिनों की छुट्टी को असाधारण अवकाश (ईओएल) माना गया और इनका भी भुगतान नहीं किया गया।
गौरतलब है कि भुगतान सहित मातृत्व अवकाश देने के लिए उसके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया था। इसके अलावा, दो साल का प्रोबेशन पीरियड पूरा करने के बावजूद भी,प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ता के प्रोबेशन पीरियड की अवधि को 112 दिनों के लिए बढ़ा दिया और उसकी सेवाओं की पुष्टि 26 सितंबर 2018 से की गई,जिसके संबंध में 21 नवंबर 2019 को आदेश जारी किया गया था।
याचिकाकर्ता/ महिला सरकारी कर्मी की शिकायत
याचिकाकर्ता ने अदालत में शिकायत दायर कर कहा कि प्रतिवादियों ने उसके प्रोबेशन पीरियड की अवधि को 112 दिनों के लिए बढ़ाया था,परंतु वह इसका कोई औचित्य साबित नहीं कर पाए।
याचिकाकर्ता के अनुसार, उसकी नौकरी का स्थायीकरण 05 जून 2018 से प्रभावी होना चाहिए था। याचिकाकर्ता ने मातृत्व अवकाश को अस्वीकार करने वाले आदेशों पर भी सवाल उठाया।
याचिकाकर्ता की तरफ से यह भी दलील दी गई कि प्रतिवादियों द्वारा उसको मातृत्व अवकाश न देने की कार्रवाई मनमानी और आरएसआर के नियम 103 के विपरीत थी।
हर्षिता यादव बनाम राजस्थान राज्य व अन्य, एस.बी. सिविल रिट याचिका संख्या 1818/2014 मामले का हवाला देते हुए उसने कहा कि वह मातृत्व अवकाश की हकदार थी, इस तथ्य के बावजूद कि उसने सरकारी नौकरी ज्वाइन करने से पहले एक बच्चे को जन्म दिया था।
कोर्ट का आदेश
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि आरएसआर का नियम 103 कर्मचारी-केंद्रित है और इसका बच्चे के जन्म की तारीख के साथ कोई संबंध या सहसंबंध नहीं है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि नियम एक महिला सरकारी सेवक को दो से कम बच्चे होने पर, 180 दिनों के मातृत्व अवकाश का अधिकार देते हैं और इस तरह के लाभ के लिए आवश्यक शर्तें निम्न हैं-
(1) महिला सरकारी कर्मचारी होनी चाहिए और
(2) उसके दो से कम जीवित बच्चे होने चाहिए।
हालांकि, न्यायालय ने यह माना कि पितृत्व अवकाश के मामले में बच्चे के जन्म की तारीख महत्वपूर्ण है, जबकि मातृत्व अवकाश के मामले में यह अधिक प्रासंगिक नहीं है।
महत्वपूर्ण रूप से, अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि,
''इन नियमों की घोषणा की तिथि के दिन, एक कर्मचारी, जिसने पहले ही बच्चे को जन्म दे दिया था, को मातृत्व अवकाश प्राप्त करने का हकदार ठहराया गया था। ऐसे में सरकारी नौकरी ज्वाइन करने से कुछ दिन पहले बच्चे को जन्म देने वाली कर्मचारी को इस लाभ से वंचित करना न केवल अन्यायपूर्ण होगा,बल्कि भेदभावपूर्ण भी होगा।''
कोर्ट ने आगे कहा,
''यह कहने की आवश्यकता नहीं है, कि मूल पद पर नियुक्ति के चलते ज्वाइन करने के बाद, एक पदधारी सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए एक सरकारी कर्मचारी बन जाता है और एक माँ के मातृत्व की जरूरतों को सिर्फ इसलिए प्रभावहीन नहीं किया जा सकता है क्योंकि उसने नौकरी ज्वाइन कर ली है।''
कोर्ट ने कहा कि,
''नियम 103 जन्म की तारीख के आधार पर अधिकार प्रदान नहीं करता है। यह केवल यह प्रदान करता है कि मातृत्व अवकाश एक महिला सरकारी कर्मचारी को उसकी नौकरी प्रारंभ करने की तारीख से दिया जा सकता है।''
इसके अलावा, अदालत ने राज्य की तरफ से की गई उस प्रारंभिक आपत्ति को भी खारिज कर दिया कि इस मामले में रिट याचिका देरी से दायर की गई थी।
इस पर, न्यायालय ने राज्य से सवाल किया और कहा कि उसे अपनी कार्रवाई का आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और सभी संबंधितों से एक सवाल करना चाहिए, कि आखिर क्यों मातृत्व अवकाश (दिनांक 21.06.2016) देने के लिए याचिकाकर्ता की तरफ से दायर आवेदन पर दो साल तक कोई जवाब नहीं दिया गया?
कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि,
''... समय आ गया है जब राज्य को मामले की मैरिट पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और बेकार की आपत्तियों या देरी के बोगी देने के बजाय, एक नागरिक को अधिकार या लाभ की अनुमेयता देने तक स्वयं को सीमित कर लेना चाहिए।''
अंत में, याचिका को अनुमति देते हुए, न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता की 142 दिनों की स्वीकृत छुट्टी को मातृत्व अवकाश माना जाएगा।
केस का शीर्षक - श्रीमती नीरज बनाम राजस्थान राज्य व अन्य,एस.बी. सिविल रिट याचिका संख्या 4384/2020
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