उच्च पद का संपूर्ण वेतन अंतर केवल इसलिए नहीं दिया जा सकता क्योंकि निचले पद के कर्मचारी ने अतिरिक्त कर्तव्यों का पालन किया थाः गुजरात हाईकोर्ट

Update: 2022-09-06 14:30 GMT

Gujarat High Court

गुजरात हाईकोर्ट ने माना है कि केवल इसलिए कि चतुर्थ श्रेणी के पद पर नियुक्त एक कर्मचारी को अस्थायी अवधि के लिए एक उच्च पद से संबंधित अतिरिक्त कर्तव्य सौंप दिए गए थे (हो सकता है वास्तविक कर्मचारी के पद के खाली रहने की अवधि में), वह संपूर्ण वेतन अंतर की मांग नहीं कर सकता है।

न्यायालय ने चतुर्थ श्रेणी और तृतीय श्रेणी में नियुक्ति के अंतर पहलू को ध्यान में रखा और निष्कर्ष निकाला कि केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता (चतुर्थ श्रेणी का एक कर्मचारी ) तृतीय श्रेणी का अतिरिक्त कार्य कर रहा था, इसका अर्थ यह नहीं होगा कि वह तृतीय श्रेणी के पद के वेतनमान का हकदार है।

मौजूदा मामले में, कामगार को वार्ड-बॉय के पद पर नियुक्त किया गया था और उसने एक टेलीफोन ऑपरेटर की अतिरिक्त जिम्मेदारियां संभाली थी जो कि तृतीय श्रेणी का पद है। ऐसे में कामगार दोनों पदों के बीच वेतन अंतर का हकदार नहीं है।

जस्टिस कोगजे ने औद्योगिक न्यायाधिकरण (Industrial Tribunal)के आदेश की त्रुटि को निम्नलिखित तरीके से समझायाः

''भर्ती नियमों की आवश्यकता निर्दिष्ट करती है कि एक वार्ड-बॉय को केवल साक्षर होना चाहिए और चयन प्रक्रिया के संबंध में कोई विनिर्देश नहीं है, जबकि ... टेलीफोन ऑपरेटर का पद तृतीण श्रेणी का होने के कारण, पद के लिए एसएससी पास होने की योग्यता और टेलीफोन एक्सचेंज का अनुभव होना चाहिए और ऐसा व्यक्ति चयन प्रक्रिया के लिए पात्र होगा। यह सबसे महत्वपूर्ण पहलू है, औद्योगिक न्यायाधिकरण को प्रतिवादी को तृतीय श्रेणी का वेतनमान नहीं देना चाहिए था, जिसे वार्ड-बॉय के पद पर भर्ती किया गया था।''

याचिकाकर्ता-निगम ने औद्योगिक न्यायाधिकरण के उस आदेश को चुनौती दी थी,जिसमें प्रतिवादी-कर्मचारी को वार्ड-बॉय के स्थान पर टेलीफोन ऑपरेटर के रूप में मानते हुए वेतन में अंतर राशि के रूप में 5.4 लाख रुपये देने का निर्देश निगम को दिया था। यह दावा किया गया कि केवल आवश्यकता के समय ही याचिकाकर्ता को एक टेलीफोन ऑपरेटर के कर्तव्यों को निभाने की आवश्यकता थी। वार्ड-बाय के रूप में काम करने वाले कामगार को किसी चयन प्रक्रिया से भी नहीं गुजरना पड़ा था। इसलिए, वह अतिरिक्त कार्य के लिए सर्वाेत्तम रूप से केवल 'प्रभार भत्ते' का दावा कर सकता था। इसके विपरीत, कामगार ने जोर देकर कहा कि ट्रिब्यूनल ने यह निष्कर्ष निकालने के लिए निवर्हन किए गए कर्तव्यों को ध्यान में रखा था कि कामगार वेतन अंतर का हकदार है। इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने मौजूदा कर्मचारियों के बीच एक टेलीफोन ऑपरेटर के पद पर नियुक्ति के लिए आंतरिक विज्ञापन भी जारी किया था जिसमें कामगार भी शामिल था।

इन तर्कों पर विचार करते हुए, बेंच ने कहा कि कामगार ने टेलीफोन संचालन के पिछले अनुभव के कारण, 'कामचलाऊ व्यवस्था' के तहत कर्तव्यों का पालन किया था। कर्तव्य कभी स्थिर या निरंतर नहीं थे। यह बताना 'भ्रामक' था कि कर्मचारी/कामगार ने 1998 से स्थायी रिक्त पद पर कर्तव्य का पालन किया था। कामगार की सेवा पुस्तिका में भी ऐसी कोई प्रविष्टि नहीं की गई थी। बेंच के अनुसार, एक वार्ड-बॉय को कानूनी रूप से टेलीफोन ऑपरेटर (Class-III) के लिए नियुक्त नहीं किया जा सकता है।

इस बात का भी कोई स्पष्टीकरण नहीं था कि याचिकाकर्ता ने वर्ष 2009 में औद्योगिक विवाद को उठाने के लिए लगभग 11 वर्षों तक इंतजार क्यों किया। जस्टिस कोगजे के अनुसार, ट्रिब्यूनल यह विचार करने में विफल रहा है कि वार्ड-बॉय का काम टेलीफोन ऑपरेटर की तुलना में अधिक फिजिकल था। इस प्रकार, एक ऑपरेटर के रूप में काम करने के लिए कामगार को अपनी पसंद से फायदा मिला।

इन कारकों को ध्यान में रखते हुए, बेंच ने वेतन अंतर की राशि देने के ट्रिब्यूनल के आदेश को रद्द कर दिया। हालांकि, यह देखते हुए कि कामगार ने कभी-कभी एक ऑपरेटर के रूप में काम किया था, कोर्ट ने माना कि वह पूरे वेतन अंतर का नहीं बल्कि वेतन में अंतर के रूप में 2 लाख रुपये पाने का हकदार है।

केस नंबर- सी/एससीए/3813/2018

केस टाइटल- शारदा चिमनभाई लालभाई बनाम दिनेश मोहनभाई प्रजापति

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