'स्टेट लॉ ऑफिसर के चयन और नियुक्ति के लिए सिस्टम में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करें': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से हलफनामा मांगा
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने स्टेट लॉ ऑफिसर की हालिया नियुक्तियों को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर कहा कि चयन और नियुक्ति की प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है और प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष होनी चाहिए।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी नहीं थी।
पंजाब राज्य बनाम बृजेश्वर सिंह चहल के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस प्रकाश सिंह की पीठ ने आगे कहा कि यूपी राज्य ने राज्य के लॉ ऑफिसर के चयन और नियुक्ति को और अधिक पारदर्शी, निष्पक्ष और उद्देश्यपूर्ण बनाने के लिए नीति विकसित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया था।
बता दें, बृजेश्वर सिंह चहल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी वकीलों के चयन पर दिशानिर्देश निर्धारित किए थे। इस मामले में, शीर्ष अदालत ने विश्वसनीय प्रक्रिया द्वारा उम्मीदवार के मूल्यांकन और चयन की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया था।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे सभी राज्यों से कहा था कि वे चयन और नियुक्ति की अपनी प्रणाली में सुधार करें ताकि इसे और अधिक पारदर्शी, निष्पक्ष और उद्देश्यपूर्ण बनाया जा सके।
कोर्ट ने कहा,
"सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरकारी वकीलों के चयन और नियुक्ति की प्रणाली में सुधार के लिए निर्देश उसी को और अधिक पारदर्शी, निष्पक्ष और उद्देश्यपूर्ण बनाने के लिए, 30.03.2016 को बृजेश्वर सिंह चहल के मामले में जारी किया गया था। तब से साढ़े छह साल से अधिक समय बीत चुका है। हालांकि, राज्य सरकार ने राज्य विधि अधिकारियों के चयन और नियुक्ति की प्रणाली में सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।"
इस पृष्ठभूमि के खिलाफ, हाईकोर्ट ने अब राज्य सरकार से 6 सप्ताह के भीतर एक जवाबी हलफनामा / हलफनामा (प्रमुख सचिव, कानून / कानूनी स्मरणकर्ता द्वारा) दाखिल करने का आह्वान किया है, जिसमें बताया जाए कि यह सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं / उठाए जाने का प्रस्ताव है।
अदालत ने आगे निर्देश दिया,
"इस आदेश के तहत प्रस्तुत किए जाने वाले हलफनामे में सरकारी अधिवक्ताओं के चयन और नियुक्ति की पूरी योजना दी जाएगी, जो प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, निष्पक्ष और उद्देश्यपूर्ण बनाएगी।"
इसके अलावा, मामले को आगे की सुनवाई के लिए 17 अक्टूबर, 2022 को पोस्ट करते हुए, कोर्ट ने राज्य सरकार को याद दिलाया कि पारदर्शिता, निष्पक्षता और निष्पक्षता वर्तमान प्रशासन की पहचान है और हमारी सोसायटी को यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाना होगा कि प्रशासन अधिक पारदर्शी होऔर यह कि यह अधिक निष्पक्ष रूप से कार्य करता है।
तदनुसार, कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि इस आदेश के तहत दायर किया जाने वाला हलफनामा सरकारी वकीलों के चयन और नियुक्ति के सभी पहलुओं को छूएगा जिसमें आवश्यकता का मूल्यांकन, पात्रता, समान अवसर, चयन की प्रक्रिया और अन्य सभी सहायक पहलू शामिल हो सकते हैं।
जनहित याचिका
एडवोकेट आलोक कीर्ति मिश्रा और एडवोकेट डी.के. त्रिपाठी के माध्यम से एडवोकेट रमा शंकर तिवारी, एडवोकेट शशांक कुमार शुक्ला और एडवोकेट अरविंद कुमार ने याचिका दायर कर आरोप लगाया कि हाल ही में नियुक्त 220 अधिकारियों में से कई राज्य के प्रमुख राजनेताओं के रिश्तेदार हैं और कुछ न्यायिक अधिकारियों के रिश्तेदार हैं और कुछ उच्च न्यायालय में अतिरिक्त महाधिवक्ता के जूनियर या अनुयायी हैं।
जनहित याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि कुछ एडवोकेट जो इलाहाबाद हाईकोर्ट या लखनऊ और न ही निचली अदालतों में नियमित प्रैक्टिस में नहीं हैं, उन्हें राज्य विधि अधिकारी / संक्षिप्त धारक के रूप में नियुक्त किया गया है।
यह भी आरोप लगाया गया है कि नियुक्तियां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की सिफारिशों पर आधारित थीं।
जनहित याचिका में तर्क दिया गया है कि हालांकि यूपी सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को आश्वासन दिया था कि वह पंजाब राज्य बनाम बृजेश्वर सिंह चहल में निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन करेगी और कामकाज को सुव्यवस्थित करेगी। हालांकि, याचिका में कहा गया कि राज्य ऐसा करने में विफल रहा।
कोर्ट ने आगे कहा,
"हलफनामा दाखिल करते समय, हमारी राय में, राज्य सरकार का प्रयास यह सुनिश्चित करने का होना चाहिए कि आगे से प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता की कमी न हो।"
केस टाइटल - राम शंकर तिवारी उर्फ राम शंकर एंड अन्य बनाम स्टेट ऑफ यू.पी.
जनहित याचिका (पीआईएल) संख्या – 527 ऑफ 2022
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