'शॉप एंड एस्टैब्लिशमेंट एक्ट' के तहत शैक्षणिक संस्थान 'एस्टैब्लिशमेंट' नहीं: तेलंगाना हाईकोर्ट

Update: 2021-11-29 07:52 GMT

तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक शैक्षणिक संस्थान 'एस्टैब्लिशमेंट' के अर्थ और परिभाषा के दायरे में नहीं आता है, जैसा कि तेलंगाना शॉप एंड एस्टैब्लिशमेंट एक्ट, 1988 की धारा 2(10) के तहत परिभाषित किया गया है।

मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति बी विजयसेन रेड्डी की खंडपीठ ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए सुप्रीम कोर्ट और केरल हाईकोर्ट के फैसलों को ध्यान में रखा।

मामले की पृष्ठभूमि

अपीलकर्ता संस्थान एक शैक्षणिक संस्थान है और प्रतिवादी नंबर तीन/कर्मचारी को वर्ष 1985 में पोषण प्रयोगशाला विभाग में एक परिचारक के रूप में नियुक्त किया गया था। उसने दिसंबर 2009 में अपना इस्तीफा दे दिया और सेवा बकाया का भी निपटान किया गया।

उसने तेलंगाना शॉप एंड एस्टैब्लिशमेंट एक्ट, 1988 के तहत सहायक श्रम आयुक्त के समक्ष एक अपील दायर की। इसमें कहा गया कि उसे अपीलकर्ता संस्था द्वारा अवैध रूप से बर्खास्त कर दिया गया था।

अपीलकर्ता संस्था ने एक जवाबी हलफनामा दायर किया। इसमें कहा गया कि कर्मचारी ने खुद इस्तीफा दिया था। उसकी बकाया राशि का निपटान कर दिया गया है और अपील खारिज करने योग्य है।

आगे यह तर्क दिया गया कि तेलंगाना शॉप एंड एस्टैब्लिशमेंट एक्ट, 1988 की धारा 48(1) के तहत कर्मचारी द्वारा की गई अपील विचारणीय नहीं है। उपरोक्त आधार के बावजूद, अपीलकर्ता संस्था को कर्मचारी को पूरे वेतन के साथ बहाल करने के लिए निर्देश दिए जाने की मांग करते हुए जुलाई, 2019 में एक आदेश द्वारा अपील की अनुमति दी गई।

अपीलकर्ता संस्था ने यह कहते हुए एक रिट याचिका दायर की कि अपीलकर्ता संस्था एक एस्टैब्लिशमेंट नहीं है और तेलंगाना शॉप एंड एस्टैब्लिशमेंट एक्ट के प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आती है। हालांकि, एकल न्यायाधीश ने रिट याचिका को खारिज कर दिया। इसके बाद इसे खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी गई।

कोर्ट का आदेश

शुरुआत में कोर्ट ने कहा कि संस्थान तेलंगाना शिक्षा अधिनियम, 1982 के प्रावधानों द्वारा शासित है और उक्त अधिनियम वर्तमान रिट अपील में शामिल प्रकृति की शिकायत के निवारण का प्रावधान करता है।

इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि कोई शैक्षणिक संस्थान 'एस्टैब्लिशमेंट' के अर्थ में आता है या नहीं, रूथ सोरेन बनाम प्रबंध समिति (2001) 2 एससीसी 115 के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा देखा गया है।

उस मामले में बिहार शॉप एंड एस्टैब्लिशमेंट एक्ट के तहत 'एस्टैब्लिशमेंट' की परिभाषा को ध्यान में रखते हुए, जो तेलंगाना शॉप एंड एस्टैब्लिशमेंट एक्ट के तहत परिभाषा के समान है, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अधिनियम के तहत एस्टैब्लिशमेंट एक शैक्षणिक संस्थान के दायरे में नहीं आती है।

सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि एक शैक्षणिक संस्थान 'उद्योग' के अर्थ में आ सकता है, लेकिन निश्चित रूप से 'एस्टैब्लिशमेंट' के अर्थ और शब्द के भीतर नहीं आएगा। इसलिए, तेलंगाना हाईकोर्ट ने अपीलीय प्राधिकरण द्वारा जुलाई 2019 में और साथ ही एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को रद्द करने का फैसला किया।

यह ध्यान दिया जा सकता है कि केरल हाईकोर्ट ने भी नारायण एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन बनाम सहायक श्रम अधिकारी 2001 (91) एफएलआर 284 के मामले में भी इसी तरह का फैसला दिया था।

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